सांसारिक मनुष्य का चिन्तन यही रहता है कि सिर्फ परिश्रम से ही धन अर्जन किया जा सकता है। इसीलिये वह अपनी भौतिक जीवन की इच्छाओं की पूर्ति के लिये धन आगम हेतु अथक परिश्रम करता रहता है और आधुनिकता के भाग-दौड़ में शामिल हो जाता है। जिसके बाद उसके जीवन में अनेक प्रकार की बाधायें आना प्रारम्भ हो जाती हैं और इन्हीं बाधाओं के कारण उसका जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता और किसी भी कार्य में पूर्णता व सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है। उक्त कुस्थितियों का कारण यही है कि व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक पक्ष को पीछे छोड़ देता है।
सांसारिक मनुष्य का जीवन भौतिक व आध्यात्मिक पक्ष दोनों के मेल से बना हुआ है, किसी भी एक पक्ष में न्यूनता या ध्यान नहीं देने से जीवन की यात्रा में बाधायें आना शुरू हो जाती है। सांसारिक जीवन में सुस्थितियों की प्राप्ति हेतु दोनों पक्षों को समान रूप से ध्यान देना आवश्यक है, तभी व्यक्ति जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है।
ये बात सत्य है कि व्यक्ति को अपने जीवन काल में बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक धन की आवश्यकता होती ही है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन को निरन्तर चलायमान रखने के लिये माँ लक्ष्मी का सहयोग महत्वपूर्ण होता है। यदि व्यक्ति अपने जीवन में दरिद्रता, धन हीनता, रोग, कष्ट, संतान बाधा, शत्रु बाधा, पराजय, पारिवारिक कलेश, असफलता आदि स्थितियों से घिरा हुआ हो तो यह निश्चित है कि उसके जीवन में महालक्ष्मी का अभाव है।
ऐसे में महालक्ष्मी के अष्ट स्वरूप आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, जय लक्ष्मी व विद्या लक्ष्मी सभी की कृपा व स्थायी रूप से उपस्थिति की प्राप्ति हेतु सहस्त्र महालक्ष्मी अष्ट सिद्धि दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है और कहा जाता है कि स्वयं भगवान श्रीराम को यह दीक्षा महर्षि वशिष्ठ से प्राप्त हुई और अयोध्या की प्रजा पूर्ण सुख-वैभव की सहस्त्र लक्ष्मियों से चेतन्यमय बनी रही। इस दीक्षा को प्राप्त करने पर माँ लक्ष्मी स्वयं साधक के शरीर में स्थित हो जाती हैं और व्यक्ति हर कार्य में उन्नति की ओर ही अग्रसर होता है। उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण होती है। माँ लक्ष्मी के स्थायी निवास से पारिवारिक जीवन में धन-धान्य, सुख-सम्पत्ति, वैभव, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति निश्चित ही होती है।
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