देवी कमला महालक्ष्मी स्वरूप जगत की आधार हैं जिनके बिना सृष्टि के सारे चक्र अधूरे रह जाते हैं। महामाया कमला आद्या शक्ति हैं, जिनकी कृपा दृष्टि से ही ब्रह्मा एवं अन्य देवता शक्ति प्राप्त करते हैं और जो साधक महामाया पूर्ण लक्ष्मी भगवती कमला को हृदय से नमन करता है, उसकी कभी भी दुर्गति नहीं हो सकती। ऐसा साधक निश्चय ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर अनन्त, अलौकिक वैभव, धन-धान्य, सम्मान, कीर्ति प्राप्त करता है।
वास्तव में ही लक्ष्मी की साधना तंत्र मार्ग से ही सम्भव है और यह कमला साधना द्वारा सहज सम्भव है। कमला तंत्र में तो स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि जीवन में अतुलनीय धन, वैभव प्राप्त करने के लिये कमला साधना आवश्यक है, क्योंकि इस साधना के द्वारा ही जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है, जो कि आज के मनुष्य को चाहिये।
सबसे बड़ी बात यह है कि कमला साधना एक तरफ जहाँ पूर्ण मानसिक शांति और सिद्धि प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर इसके माध्यम से अतुलनीय वैभव और अनायास धन प्राप्ति होती रहती है। तंत्र में इसके द्वादश नाम स्पष्ट हुये हैं। यदि कोई साधक केवल इन द्वादश नामों का उच्चारण नित्य कर लेता है, तो भी उसे सिद्धि प्राप्त हो जाती है। फिर यदि कोई कमला जयंती के अवसर पर एक बार भली प्रकार से कमला साधना सम्पन्न कर लेता है, तो उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव रह ही कैसे सकता है। कमला के द्वादश नाम निम्नलिखित हैं-
1 महालक्ष्मी, 2 ऋणमुक्ता, 3 हिरण्यमयी, 4 राजतनया, 5 दारिद्रयहारिणी, 6 कांचना, 7 जया, 8 राजराजेश्वरी, 9 वरदा, 10 कनकवर्णी, 11 पासना, 12 सर्वमांगल्य युक्ता।
यदि तांत्रिक दृष्टि से कमला साधना सम्पन्न की जाती है, तो निश्चित ही साधक आश्चर्यजनक उपलब्धियां अनुभव करने लगता है, जो तंत्र के क्षेत्र में थोड़ी बहुत भी रूचि रखते हैं, वे कमला तंत्र के नाम से परिचित है, और वे यह भी जानते हैं कि यह तंत्र कितना महत्वपूर्ण और दुर्लभ है। एक प्रकार से देखा जाये तो कमला तंत्र सर्वथा गोपनीय ही रहा है, मगर जो साधक पूर्ण निष्ठा के साथ इस कमला तंत्र को सिद्ध कर लेता है, उसे जीवन के समस्त सुख, वैभव और सौभाग्य प्राप्त हो जाते है। दरिद्रता तो हमेशा-हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है, अनायास धन प्राप्ति की सम्भावनाये बन जाती हैं, और साधक अपने जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करता हुआ सही अर्थों में वैभव युक्त बन जाता है।
साधक प्रातः काल उठकर स्नान कर अपने पूजा स्थान में बैठ जाये और फिर साधना प्रारम्भ करे। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व पूजन सामग्री अपने सामने रख दें, जिसमें जलपात्र, केसर, अक्षत, नारियल, फल, दूध का बना प्रसाद, पुष्प आदि हो। कमला साधना में अष्टगंध का प्रयोग ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, अतः साधकों को चाहिये कि वे पहले से ही अष्टगंध प्राप्त कर उसे घोल कर अपने सामने रख लें।
तांत्रोक्त कमला साधना का आधार कमला यंत्र ही है। क्योंकि यह पूर्ण रूप से प्रभाव युक्त और सिद्धिदायक है। कमला तंत्र में यंत्र के बारे में बताया है, कि यह पूर्ण विधि के साथ षट्कोण सहित अष्टदलों से युक्त महत्वपूर्ण यंत्र हो-
यह यंत्र ताम्र पत्र पर अंकित हो, साथ ही साथ कमला तंत्र में बताया गया है, कि जब तक तंत्रोद्वार सम्पन्न यंत्र न हो तो उसका प्रभाव नहीं होता, तंत्रोद्वार में बारह तथ्य स्पष्ट किये गये हैं, बताया है कि इन तत्वों को सम्पन्न करके ही यंत्र का प्रयोग करना चाहिये।
1 यह शुद्धता के साथ विजय काल में अंकित किया जाना चाहिये।
2 इसका पूर्ण रूप से मंत्रोद्वार हो।
3 यह वाग बीज से सम्पुटित हो।
4 लज्जा बीज के द्वारा इसका अभिषेक हो।
5 श्री बीज के द्वारा यह यंत्र सिद्ध हो।
6 काम बीज के द्वारा यह वशीकरण युक्त हो।
7 प बीज के द्वारा यह प्रभाव युक्त हो।
8 जगत बीज के द्वारा यह आकर्षण युक्त हो।
9 रूद्र बीज द्वारा वह शौर्य युक्त हो।
10 मनु बीज के द्वारा मन पर नियंत्रण प्रदान करने वाला हो।
11 ऐं बीज के द्वारा वैभव प्रदान युक्त हो।
12 रमा बीज के द्वारा सिद्धि दायक हो।
वास्तव में ही कमला यंत्र पूर्ण रूप से सिद्ध करना अत्यन्त पेचीदा और श्रमसाध्य कार्य है। इस प्रकार का यंत्र पूजा स्थान में स्थापित कर साधना प्रारंभ करें। ऐसा यंत्र जहां उनके स्वयं के जीवन के लिये तो सौभाग्यदायक तो रहेगा ही, आने वाली कई-कई पीढ़ियों के लिये भी यह यंत्र भाग्योदयकारक बना रहेगा।
इस प्रकार के यंत्र को जल से फिर पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल से धोकर लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर इस ‘कमला यंत्र’ को स्थापित करना चाहिये। फिर साधक अलग पात्र मे गणपति की स्थापना करें। दूसरे बाजोट पर नवग्रहों के प्रतीक स्वरूप में नौ सुपारी खाने बनाकर स्थापित करें और फिर एक थाली रख कर उस पर नया पीला वस्त्र बिछा दें, कपड़े के ऊपर सिंदूर से सोलह बिंदियां लगावें सबसे ऊपर चार फिर उनके नीचे चार-चार बिंदियां चार पंक्तियों में, इस प्रकार कुल 16 बिंदियां लगाकर प्रत्येक बिंदि पर एक-एक लौंग तथा इलायची रख कर फिर इसका अष्टगंध से पूजन करें और हाथ जोड़ कर निम्न ध्यान मंत्र का उच्चारण करें-
जो साधक संस्कृत पढ़े-लिखे नहीं है, उनको चिन्ता नहीं करना चाहिये और धीरे-धीरे उच्चारण करते हुये यह ध्यान पढ़ सकते हैं।
इसके बाद ताम्र पात्र पर अंकित कमला यंत्र को जहां सोलह बिंदियां लगाई है, उसी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ स्थापित करें, और अष्टगंध से इस यंत्र पर सोलह बिंदियां लगा दें। ये सोलह बिंदियां सोलह लक्ष्मी की प्रतीक मानी जाती है।
इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न मंत्र से अपने घर में भगवती कमला का आवाहन करते हुये यंत्र पर पुष्प, अक्षत समर्पित करें-
इसके बाद साधक अपने सामने शुद्ध घृत का दीपक लगावें उसका पूजन करें तत्पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्ज्वलित करें, ऐसा करने के बाद साधक इस यंत्र पर कुंकुंम समर्पित करें, पुष्प तथा पुष्प माला पहनायें, अक्षत चढ़ावें तथा नैवेद्य का भोग लगावें। सामने ताम्बूल, फल और दक्षिणा समर्पित करें।
तत्पश्चात् साधक को चाहिये कि वह निम्न दुर्लभ कवच का पांच बार पाठ करे जो महत्वपूर्ण है, इसके द्वारा उस यंत्र का साधक के प्राणों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, और साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है।
इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये किया था। कमला उपनिषद में भी इस लघु कवच का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग है-
ऐंकारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा।
जिह्वायां मुख वृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
पातु मां विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री विष्णुरूपिणी।
हृदये मणि बन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोर्द्वयोः।
स्वधा तु प्राण शक्तयां वा सीमन्ते मस्तके तथा।
पुष्टिः पातु महामाया उत्कृष्टिः सर्वदावतु।
वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु मां हर गेहिनी।
सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णु माया सुरेश्वरी।
शिव दूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा।
पातु मां देव देवी च लक्ष्मीः सर्व समृद्धिदा।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षु युग्मे च शांकरी।
ओष्ठाधरे दन्त पंक्तौ तालु मूले हनौ पुनः।
कर्ण युग्मे भुज द्वयै स्तन द्वन्द्व च पार्वती।
पृष्ठदेशे तथा गुह्ये वामे च दिक्षणे तथा।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः।
ऋद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भु वल्लभा।
रमा पातु महा देवी पातु माया स्वराट् स्वयं।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम।
भैरवी पातु भवने जया पातु सदा मम।
इति ते कथितं दिव्य कवचं सर्व सिद्धये।
वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है यह अपने आप में महत्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके 11 पाठ करता है, तो भी उसके जीवन में धन, वैभव, यश, सम्मान प्राप्त होता रहता है।
प्रयोग में इसका पांच पाठ करें, फिर कमला माला का पूजन करना चाहिये। यह कमला माला विशेष मंत्रों से सिद्ध और सूर्य मंत्रों से संगुफित होती है, जो कि वास्तव में ही अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी गई है। इस माला को पहले से ही प्राप्त कर रख लेनी चाहिये।
इसके बाद साधक घी के सोलह दीपक लगा लें, फिर निम्न मंत्र की 16 माला मंत्र जप उसी आसन पर बैठ कर करें-
जब 16 माला मंत्र जप हो जाये तब भगवती लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती सम्पन्न करें और उस यंत्र को पूजा स्थान में ही स्थापित रहने दें, तथा कमला माला को इस यंत्र के सामने या यंत्र के ऊपर स्थापित कर दें। भविष्य में जब भी कमला मंत्र का जप करना हो तो इसी कमला माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला फेंरें।
वस्तुत यह मंत्र और तांत्रिक प्रयोग अपने आप में ही दुर्लभ और महत्वपूर्ण है, साधकों को चाहिये कि वे अवश्य ही इस साधना को सम्पन्न करें और अनुभव करें कि आज के युग में भी साधनाये कितनी शीघ्र और अचूक फल प्रदान करने में समर्थ है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,