जिस तरह रेगिस्तान में एक बूंद की तलाश व्यक्ति को रहती है, उसी तरह किसी स्त्री को भी अपने सूने जीवन को खुशियां से भरने के लिये एक नन्हें शिशु की ललक मन में रहती ही है। यदि विवाह के दो तीन साल बाद भी कोई स्त्री माँ नहीं बनती, या पुत्र की प्राप्ति नहीं होती, तो उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है और यदि वह माँ बनने योग्य न हो, तो समाज उसे बांझ, कुलटा, आदि अपशकुनी नामों से पुकारा जाता है और वह घुट-घुट कर जीने पर मजबूर हो जाती है। संतान का न होना सामाजिक दृष्टि से स्त्री के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप माना गया है।
जीवन के सोलह संस्कारों की पूर्णता का भाव तभी प्राप्त होता है जब विवाह के बाद सही समय पर श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति हो सके। जिससे कुल की वृद्धि हो सके। जिससे पुरूष पूर्ण पुरूषत्व से युक्त होता है और स्त्री मातृत्व शक्ति से युक्त होती है जबकि इसके विपरित निःसंतान दम्पती का गृहस्थ जीवन बिल्कुल ही रूखा-सूखा सा बन जाता है विशेष रूप से भारतीय समाज में स्त्रियों को प्रताड़ित किया जाता है। साथ ही अनेक लाँछनों से युक्त नारकीय जीवन भोगना पड़ता है।
इसके लिये निराश होने की आवश्यकता नहीं है, आवश्यकता है हमारे ऋषियों द्वारा प्रदत ज्ञान से लाभ उठाने की। इस साधना हेतु साधक या साधिका पौष मास में पुत्रदा एकादशी पर साधना क्रम प्रारम्भ करें। इस साधना हेतु ‘इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र’ दो गर्भ धारण कुण्डल तथा ‘आठ शक्ति विग्रह’ आवश्यक है।’
अपने सामने सर्वप्रथम बाजोट पर पुष्प ही पुष्प बिछा दें और उन पुष्पों के बीचों-बीच ‘इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र’ स्थापित करें। इस यंत्र का पूजन केवल चन्दन तथा केसर से ही सम्पन्न करें। अपने सामनें कृष्ण का एक सुन्दर चित्र स्थापित करें, चित्र पर भी तिलक करें तथा प्रसाद स्वरूप पंचामृत हो, जिसमें घी, दही, शक्कर तथा गंगाजल हो। इसके अतिरिक्त अन्य नैवेद्य भी अर्पित कर सकते है। इच्छा पूर्ति गोविन्दं यंत्र के दोनों और गर्भ धारण कुण्डल स्थापित कर उस पर केसर का टीका लगाये और दोनों हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण का ध्यान करें। इनके शक्ति स्वरूप आठ शक्ति विग्रह स्थापित करें। ये आठ शक्तियां लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, कान्ति, तुष्टि एवं पुष्टि हैं। प्रत्येक शक्ति विग्रह को स्थापित करते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले, ऊँ सरस्वत्यै नमः आग्नेयदले, ऊँ रत्यै नमः दक्षिणदले, ऊँ प्रीत्यै नमः नेऋत्यदले, ऊँ कीर्त्ये नमः पश्चिमदले, ऊँ कान्त्यै नमः वायव्यदले, ऊँ तुष्टये नमः उत्तरदले, ऊँ पुष्टयै नमः ईशानदले।
शक्ति पूजन के पश्चात् इच्छा पूर्ति मंत्र का जप प्रारम्भ किया जाता है। इसकी भी विशेष विधि है, इसमें अपने बायें हाथ में पुष्प अथवा पुष्प की पंखुड़ी लें और प्रत्येक बार इच्छा पूर्ति मंत्र का उच्चारण करते हुये पुष्प की पंखुड़ी अर्पित करते रहे।
मंत्र
इस प्रकार 5 माला मंत्र उच्चारण कर विधि से सम्पन्न करना है। यह साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात् पहले से प्रज्जवलित दीप, अगरबती तथा धूप से विष्णु आरती सम्पन्न कर प्रसाद ग्रहण करें। यदि कोई साधिका एक महीने तक प्रतिदिन 5 माला मंत्र जप सम्पन्न करें, तो उसको इच्छित संतान की प्राप्ति अवश्य ही होती है।
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