यों तो काली महाकाली और दक्षिणकाली से सम्बन्धित कई साधनायें, साधना ग्रंथों में प्रकाशित हैं, परन्तु दिगम्बरी दक्षिण काली साधना, साधना क्षेत्र में अत्यन्त उच्चस्तरीय साधना मानी गई है, वामा क्षेपा जैसे तांत्रिक ने भी स्वीकार किया है कि दिगम्बरी दक्षिण काली साधना सर्वाधिक गूढ गुप्त अलौकिक अद्वितीय और अनुपम है, पूरे जीवन काल में बिरले लोगों को ही यह सौभाग्य प्राप्त होता है, कि वे ऐसी उच्च स्तरीय साधना को प्राप्त करे, इसके साधना रहस्य को समझें जब जीवन के पुण्योदय प्रारम्भ होते हैं तभी ऐसी साधना साधक सम्पन्न करता है।
त्रिजटा अघोरी तो विश्व का अद्वितीय आचार्य है और उसने साधनाओं के क्षेत्र में कीर्तिमान कायम किये है, उसने भी अपने ‘तंत्र समुच्च सपर्या’ ग्रंथ में स्वीकार किया है कि कई वर्ष भटकने के बाद और हजारों तांत्रिकों से मिलने के उपरान्त ही स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी से मुझे दिगम्बरी दक्षिण काली साधना प्राप्त हुई और मेरे पास तंत्र के हजारों रत्नों में से यह अपने आप में अलौकिक अनुपम रत्न है।
दिगम्बरी दक्षिण काली साधना जन साधारण में कम प्रचलित है, इसका कारण इस साधना का महत्वपूर्ण होना है, यह साधना एक प्रकार से पूरे जीवन का वरदान है और उच्च स्तरीय योगी उसी शिष्य को यह साधना प्रदान करते थे, जो जीवन भर उनकी सेवा करता था और जो मन-वचन-कर्म से उनके प्रति अनुरक्त रहता हुआ साधना मार्ग पर अग्रसर होता था, जीवन के अन्तिम काल में उसी को यह दिव्य साधना प्रदान की जाती थी।
भारतीय आचार्यों ने भगवती काली को दस महाविद्याओं में सर्व प्रमुख स्थान दिया है, आचार्य भट्ट ने काली के तेरह अर्थ बताये हैं-
जैसे ऊपर बताया कि दिगम्बरी दक्षिण काली पूर्ण रूपेण शिव है, जिस प्रकार से भगवान शिव दिगम्बर रूप में समस्त प्रकार से कल्याण करने में समर्थ है, उसी प्रकार से दिगम्बरी दक्षिण काली निश्चय ही साधना में सफलता , पूर्णता देने के साथ-साथ मनोवांछित रूप से प्रत्यक्ष दर्शन देने में समर्थ, सहायक है।
नीचे मैं सैकड़ों उदाहरणों में से मात्र तीन-चार उदाहरण देना ही पर्याप्त है जिससे पता चलता है कि उच्चकोटि के योगियों ने भी अद्वितीय साधना की सफलताओं को समझा है।
बहुत ही बिरले लोगों को ही दिगम्बरी दक्षिण काली साधना रहस्य प्राप्त होता है, जो जीवन में पूर्णता चाहते है, उन सभी स्त्री-पुरूषों को यह साधना सम्पन्न करनी ही चाहिये। -स्वामी विशुद्धानन्दजी
लक्ष्मी की प्राप्ति तो लक्ष्मी साधनाओं के द्वारा की जा सकती है, परन्तु कई-कई पीढियों के लिये घर में लक्ष्मी को स्थापित कर देने का रहस्य तो दिगम्बरी दक्षिण काली साधना से ही सम्भव है। -त्रिजटा अघोरी
वास्तव में ही वह नर सौभाग्यशाली कहा जा सकता है, जिसके जीवन में गुरू हों, जिन्हें अपने जीवन में दिगम्बरी दक्षिण काली साधना का रहस्य प्राप्त हुआ हो,
ऊपर के उदाहरण इस बात के लिये पर्याप्त है कि साधक के जीवन में दक्षिण काली साधना कितना अधिक महत्वपूर्ण है, यह अत्यन्त सरल और सहज साधना है, इस साधना को पुरूष या स्त्री कोई भी बिना भय के सम्पन्न कर सकता है, क्योंकि इस साधना से किसी प्रकार का कोई अहित नहीं होता, किसी भी प्रकार की भय व्याप्ति नहीं होती और यदि किन्हीं कारणों से सफलता नहीं मिलती या साधना अधूरी रह जाती है तब भी किसी प्रकार का अहित नहीं होता।
साधना में साधक लाल वस्त्र धारण करें, नीचे लाल धोती पहिनी हुई हो और लाल धोती ही ऊपर कन्धों पर डाली हुई हो, इसी प्रकार साधिकायें भी लाल साड़ी और लाल कंचुकी ही धारण करें।
इस साधना में पूर्ण सिद्धि प्राप्ति के लिये पांच दुर्लभ वस्तुओं की आवश्यकता होती है, जिसके माध्यम से यह साधना पूर्ण सिद्ध की जा सकती है।
इस साधना की सिद्धि के लिए दक्षिणकाली गुटिका हो, फिर साथ में ही दिगम्बरी दक्षिण काली यंत्र हो, दिगम्बरी दक्षिण काली का महारूप चित्र हो, एकोन्मुखी रूद्र अर्थात् एक मुखी रूद्राक्ष हो और काल्यं अर्थात् काल सिद्धि यंत्र हो, जो साधक इन पांचों दुर्लभ पदार्थों के द्वारा साधना सम्पन्न करता है, उसे निश्चय ही पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है और ऐसा व्यक्ति पूरे विश्व में विजयी होता है।
इसी श्लोक में आगे बताया गया है कि ये सारी वस्तुये दिगम्बरी काल मंत्र से सिद्ध एवं प्रयोगित हों,
गुप्त नवरात्रि के प्रारम्भ 10 फरवरी 2024 की रात्रि को साधक-साधिका लाल आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर बैठ जायें और सामने तेल का दीपक लगा लें फिर सामने ही लाल वस्त्र बिछा कर दीपक के आगे ही दक्षिण काली गुटिका रख दें और उस पर सिंदूर का तिलक लगा लें, फिर अपने ललाट पर भी सिंदूर का तिलक लगावें इसके बाद सामने ही दिगम्बरी दक्षिण काली यंत्र और चित्र को स्थापित कर दें, और उसके सामने मधुरूपेण एक मुखी रूद्राक्ष एंव काल सिद्धि यंत्र को स्थापित कर इन दोनों पर भी सिंदूर का तिलक लगावे।
इसके बाद सामूहिक इन सभी तत्वों पर पंच पूजन करें, पंच पूजन में जल, केसर, अक्षत, पुष्प और प्रसाद समर्पित करें, पुष्प यथा सम्भव लाल रंग के ही उपयोग में लाने चाहिये और प्रसाद में दूध का बना हुआ, किसी भी प्रकार का पदार्थ भोग के रूप में रखा जा सकता है।
इसके बाद साधक को चाहिये कि वह दिगम्बरी माला से इस साधना को सम्पन्न करें।
इस पूरे साधना काल में केवल 51 माला मंत्र जप करने का विधान है, साधक चाहें तो इससे ज्यादा भी मंत्र जप सम्पन्न कर सकता है।
यह मंत्र अपने आप में अत्यन्त गोपनीय और दुर्लभ है, साधकों को चाहिये कि वे मंत्र को गलत लोगो के हाथ में न दें, और इस साधना को कुमार्ग, आलोचक और निन्दक लोगों को भी इसा साधना रहस्य को नहीं समझायें।
इस साधना को सम्पन्न करने से 12 लाभ तुरन्त अनुभव होते हैं, अधिकतर साधकों को इन लाभों की अनुभूति हुई है, और निश्चय ही वे इन लाभों को प्राप्त कर जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सके हैं, ‘साधना समुच्य सपर्या’ ग्रंथ में इस साधना के सम्पन्न करने पर निम्न द्वादश लाभ बताये हैं-
वास्तव में ही केवल मात्र एक दिन की साधना से ही ऐसी अद्वितीय सफलता और सिद्धि प्राप्त हो फिर तो कोई अभागा ही होगा जो ऐसे अद्वितीय अवसर को हाथ से जाने दे या साधना सम्पन्न नहीं करे।
साधना समाप्ति के बाद यंत्र और चित्र को तो साधक घर में किसी स्थान पर रख दें, दक्षिण काली गुटिका को भी घर में ही जहां रूपये पैसे रखते हैं, वहां रख दें तथा एक मुखी रूद्राक्ष एवं काल यंत्र को धारण कर लें या पूजा स्थान में स्थापित कर दें, ऐसा करने पर साधक अद्वितीय सफलता और सिद्धि प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,