भगवती चतुर्भुजा हैं। ये भुजायें प्रतीक हैं, कि उन्होंने सृष्टिकर्ता ब्रह्मा, सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु, सृष्टि के संहारकर्ता रूद्र तथा खण्ड प्रलय के नियंत्रण यम पर पूर्ण नियंत्रण कर रखा है। अस्तु ये चारों देवी की इच्छा के अधीन हैं।
त्रिपुर सुन्दरी जहां समस्त भोग की प्रदाता हैं, वहीं वह साधक को मोक्ष मार्ग भी प्रदान करती हैं और मोक्ष के लिये आवश्यक है कि साधक के जीवन की सभी इच्छाये, कामनाये पूर्ण हो चुकी हों। यदि एक छोटी सी इच्छा भी शेष रह जाती है, तो ऐसी स्थिति में मोक्ष संभव नहीं हैं।
त्रिपुर सुन्दरी सौन्दर्य की देवी कही गई हैं, ऐसी देवी, जिस पर काल का प्रभाव व्याप्त नहीं होता, जो हमेशा ही षोडश वर्षीया एक नवयौवना की भांति कांतिमय बनी रहती हैं। त्रिपुर सुन्दरी के साधक या साधिका को भी इसी जगमग सौन्दर्य की प्राप्ति होती है, देह में ऊर्जा, उमंग व्याप्त रहती है, चेहरे पर एक दिव्य आकर्षण बना रहता है, वाणी में ऐसी मधुरता घुल जाती है, कि सभी सुनकर मुग्ध हो जाते हैं, व्यक्तित्व में आकर्षण और निखार आ जाता है।
त्रिपुर सुन्दरी पूर्ण भोग की प्रदात्री देवी कही गई हैं। उनके इसी रूप के कारण शीघ्र विवाह के लिये, या योग्य वर/वधु प्राप्ति के लिये अथवा मनोनुकूल जीवनसाथी प्राप्ति के लिये भी इनकी आराधना की जाती है। इस साधना द्वारा कई विवाहित दम्पतियों के बिगड़े दाम्पत्य सम्बन्धों में सुधार आया है, गृह क्लेश समाप्त हुये हैं, तथा सुख शांति आई है, पति-पत्नी के मध्य प्रेम व सामंजस्य का विस्तार हुआ है, जो कि गृहस्थ जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक है।
यह ‘ज्ञान-भोग-मोक्ष सौभाग्य प्रदायिनी आद्याशक्ति महात्रिपुर सुन्दरी दीक्षा’ 24 फरवरी (त्रिपुर सुन्दरी अवतरण पर्व) को सद्गुरूदेव जी प्रदान करेंगे। यह दीक्षा के माध्यम से साधक अपने आद्यात्मिक व भौतिक जीवन में सुधार के साथ-साथ धन, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करने में समर्थ होंगे।