भगवान विष्णु के विस्तारित रूप् एवं अन्य अवतारों का वर्णन अब शेष अंकों में प्रकाशित होगा। इस प्रकार से भगवान के 24 अवतारों के बारे में हम जानेंगे। तो प्रथमतया आता है आदि पुरूष अवतार। भगवान ने यह अवतार सृष्टि की संरचना और जीवन के आरंभ के उद्देश्य से लिया था। आदि पुरूष अवतार सर्वशक्तिशाली एवं सोलह कलाओं से युक्त है।
हिन्दु पौराणिक कथाओं में आदि पुरूष को ‘प्रथम प्राणी’ या जिनका मौलिक अस्तित्व प्रथमतया हुआ उनके रूप में संदर्भित किया जाता है, जिन्हे ब्राह्मण्ड के संरक्षक, भगवान विष्णु के पहले अवतार के रूप में जाना जाता है। आदि पुरूष अवतार का उल्लेख कई प्राचीन धर्म ग्रंथों में किया गया है। पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड के निर्माण के बाद भगवान विष्णु ने संसार में संतुलन एवं संचलन बनाए रखने के उद्देश्य से आदि पुरूष का रूप धारण किया। भगवान आदि पुरूष को चार भुजाओं और शांतिपूर्ण चेहरे वाली एक दिव्य आकृति के रूप में चित्रित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि आदि पुरूष हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ चारों वेदों के निर्माण कर्ता है। ऋग्वेद में आदिपुरूष को समस्त सृष्टि के स्त्रोत के रूप में उल्लेखित किया गया है और यह भी बताया गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उन्हीं में समाहित है। अथर्ववेद में आदि पुरूष के वर्णन में लिखा गया है कि जो भी सभी देवी-देवताओं से ऊपर है और जो अपनी शक्ति से ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करता है। शतपथ ब्राह्मणम् में आदि पुरूष को ब्रह्माण्ड का निर्माता और इसे बनाये रखने वाला कहा गया है। भागवत् पुराण में आदि पुरूष को समस्त सृष्टि व चराचर जगत का मूल कारण बताया है जो स्वयं समय से भी पूर्व से अस्तित्व में है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्वप्रथम जब सृष्टि पर भगवान विष्णु का प्राकट्य हुआ था तब सृष्टि में उन्हें चारों ओर जल ही जल नजर आ रहा था। उन्हें अपने बारे में उस समय कुछ भी ज्ञात नहीं था। तभी आकाशवाणी हुई कि अपने बारे में जानने के लिये तपस्या करो। इसके बाद भगवान विष्णु जल में बैठकर ही तप करने लगे। जल अर्थात् नीर पर निवास करने के कारण भगवान विष्णु नारायण कहलाऐ। तपस्या के दौरान उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ और फिर उस कमल पर ब्रह्मा जी का प्राकट्य हुआ।
ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को प्रणाम करके बताया कि वे ही आदिपुरूष है, आदि का अर्थ है जो सबसे पहले प्रकट हुआ हो क्योंकि उनसे पहले किसी और पुरूष का प्राकट्य नहीं हुआ था और इस प्रकार सृष्टि में प्रथम पुरूष के रूप में भगवान विष्णु का आगमन हुआ था। इसीलिए पुराणों में भगवान विष्णु को आदिपुरूष कहा गया है।
आदिपुरूष की कथा जीवन और मृत्यु की चक्रीय प्रकृति और दुनिया में सद्भाव बनाये रखने के महत्त्व की याद दिलाती है आदिपुरूष की विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है और हमें ब्रह्माण्ड में सभी वस्तुओं के अंतर्संबंध का स्मरण कराती है।