लेकिन आज मनुष्य का जीवन इस भांति नहीं है। मनुष्य के जीवन में डर, भय, आशंका ने अपनी जगह बना ली है। जिसके जीवन में डर है, भय है, आशंका है वह व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी नही कर सकता है, जिसने अपने जीवन में भय, डर और आशंका को हटा दिया है वही अपना जीवन उत्तम रूप से जी सकता है। वीर व्यक्ति के लिये संसार में कुछ भी असंभव नहीं है , वह हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करता है।
विजया एकादशी का महापर्व होता ही है कुछ नई शुरूआत के साथ विजय प्राप्ति के लिये। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी ने चौदह वर्ष के वनवास के समय वकदालभ्य ऋषि जी के मार्गदर्शनानुसार लंका विजय हेतु विजया एकादशी के दिन व्रत करके लंका पर विजय प्राप्त की तथा दैत्यों पर विजय पाई।
विजया एकादशी के दिन भगवान श्री हरि की उपासना, आराधना की जाती है। भक्त भगवान श्री हरि को प्रिय है यही कारण है कि भक्तों के बुलानें पर आ जाते हैं। जगत में भगवान श्री हरि अपने सहस्त्र हाथों, सहस्त्र सिर के रूप में विराजमान हैं और अपने भक्तों पर कल्याण करने वाले हैं। सृष्टि का प्रारम्भ भगवान श्री हरि से माना गया है, और संसार श्री हरि की ही माया, लीला का स्वरूप है, भगवान श्री हरि का सगुण स्वरूप भी है और निर्गुण स्वरूप भी, माया रूपी स्वरूप में वे लक्ष्मी के साथ अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करते हैं। भगवान श्री हरि के आशीर्वाद से साधक को वह सुदर्शन चक्र शक्ति प्राप्त होती है, जिससे उसके मार्ग की बाधाये अपने आप कटती चली जाती हैं और हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी के महापर्व पर सद्गुरूदेव जी द्वारा ‘सर्व भय-बाधा-आशंका निवारक विजय प्राप्ति एकादशी श्री हरि दीक्षा ’ प्रदान किया जायेगा। इस अवसर पर साधनात्मक क्रियायें करने व सद्गुरूदेव जी से यह दीक्षा ग्रहण कर हर क्षेत्र में विजय प्राप्ति के साथ बल, पराक्रम, बुद्धि और तेजस्वितामय जीवन प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ समय है।