किसी भी व्यक्ति के लिये मनुष्य जन्म लेना महान घटना नहीं है। जिस क्षण वह अपने सद्गुरूदेव से मिलता है और उसके हृदय से आवाज आती है, कि यही मेरे सद्गुरू है, मार्गदर्शक है, दृष्टा है, पिता है, मित्र हैं और उस क्षण वह उनसे दीक्षा प्राप्त कर पूर्व जन्म से छूटा हुआ सम्बन्ध पुन:स्थापित कर लेता है। उस क्षण के साथ ही जब सद्गुरू देव कहते है- ‘त्वं देह मम देह, त्वं प्राण, मम प्राण, त्वं चित्ते मम चित्ते’ उस महान क्षण में शिष्य अपने देह, मन और प्राण तीनों सद्गुरू के श्रीचरणों में अर्पित कर देता है। ऐसा विचारशील दीक्षित शिष्य अपने वंश, कुल, गोत्र का नाम तो उजाकर करता ही है, साथ ही स्वयं चेतनायुक्त होकर अपने सद्गुरू के ज्ञान का प्रकाश जगत में फैलाता है। वही तो सच्चा शिष्य है।
जिस शिष्य धर्म की बार-बार बात करते है और जो शिष्य धर्म कर्त्तव्यों से भरा है, उनमें से कितने कर्तव्यों का निर्वाह किया गया है।
प्रत्येक मास ‘संकल्प समर्पण दिवस’ पर जो संकल्प लिये है क्या, उन्हें पूरा किया है?
क्या प्रत्येक शिष्य ने गुरूदेव की प्राणश्चेतना स्वरूप ‘प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान’ पत्रिका के प्रचार-प्रसार हेतु दस, बीस, पचास, सौ नए सदस्य जोड़े है?
संगठन में ही शक्ति होती है, अतः क्या आपने अपने स्थान पर गुरू भाइयों के साथ एकत्र होकर एक संगठन बनाया है?
क्या प्रत्येक सप्ताह विधि-विधान से गुरू-पूजन किया है?
क्या शिष्य संगठन ने अपने-अपने स्थान पर साधनात्मक शिविर आयोजन करने का निश्चय किया है?
शिविर के माध्यम से शिष्य अपने गुरू को विवश कर देता है, कि गुरू उसके स्थान पर पधारे, इसीलिये तो सद्गुरूदेव को प्रिय भजन था- ‘गुरूवर! तुमसे मिलने का शिविर बहाना है।’
क्या शिष्य कर्तव्य की पूर्ति में गुरू साहित्य मंगवाकर धर्म प्रेमी बंधु-मित्रों इत्यादि को देने का प्रयास किया है?
क्या आपने सद्गुरू के चित्र को प्राप्त कर स्थान-स्थान पर लगाने का प्रयास किया है?
क्या एक बार भी गुरू सानिध्य प्राप्त करने हेतु, पूजनीय माताजी के दर्शन हेतु, जोधपुर दिल्ली अथवा किसी शिविर में गये है?
यह सारे प्रश्न है, जिनका उत्तर अपना मस्तष्क झुकाकर हृदय में झांकेगा, तो हृदय से ही इसका उत्तर प्राप्त होगा। शिष्य जब योग्य हो जाता है, तो बार-बार गुरू को उसका कान पकड़कर सिखाने की आवश्यकता नहीं रहती है। विचार कीजिये, मनन कीजिये, चिन्तन कीजिये, अपने आपको कभी भी अकेला अनुभव नहीं करे, क्योंकि सद्गुरू तो सदैव आपके हृदय में विराजमान है।