गृहस्थ जीवन का आदर्श स्वरूप भगवान सदाशिव और माता पार्वती ही हैं। प्रत्येक गृहस्थ शिव-गौरी को अपना आराध्य मानता है। जिस प्रकार भगवान शिव का गृहस्थ जीवन सभी कामनाओं से पूर्ण है। पुत्र के रूप में भगवान गणपति और कार्तिकेय हैं और सदैव साथ में गौरी रूपा पार्वती हैं। स्थान भी पूर्ण शांति युक्त हिमालय है, जहां पूर्ण आनन्द से विराजित होते हैं। शिव शब्द का अर्थ है कल्याण और शिव ही शंकर है। शं का अर्थ है कल्याण, क का अर्थ है करने वाला अर्थात् शंकर ही कल्याणकारी देव हैं, ब्रह्म ही शिव है, सृष्टि की उत्पत्ति और पूर्णता शिव में ही है। भगवान शिव के महादेव, भव, दिव्य, शंकर, शम्भु, उमाकांत, हर मृड, नीलकंठ, इश, इशान, महेश, महेश्वर, परमेश्वर, सर्व, रूद्र, कालरुद्र, त्रिलोचन, विरुपाक्ष, विश्वरूप, कामदेव, काल, महाकाल, कालविकरण, पशुपति आदि नाम हैं।
जिस प्रकार पुष्प में गंध, चन्द्र में शीतलता, सूर्य में प्रभा सिद्ध है। उसी प्रकार शिव में शक्ति भी सिद्ध है, शक्ति को किसी भी रूप में भी कहा जाये उमा, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, ब्रह्माणी, श्री विद्या, इन्द्राणी, महाकाली सब शिव के साथ ही निहित हैं। शिव पुरूष रूप हैं तो उमा स्त्री स्वरूप, शिव ब्रह्म है तो उमा सरस्वती, शिव विष्णु और उमा लक्ष्मी, शिव सूर्य तो उमा छाया, शिव चन्द्र हैं तो उमा तारा, शिव यज्ञ हैं तो उमा वेदी, शिव अग्नि हैं तो उमा स्वाहा, शिव-शक्ति अभेद हैं, इनकी अभ्यर्थना संयुक्त रूप से की जाती है।
विभिन्न वातावरण में पले बढ़े पुरूष-स्त्री की जीवन यात्रा, जिसे गृहस्थ जीवन कहा जाता है में किसी न किसी रूप में मतभेद अवश्य बन जाते हैं। छोटे-छोटे मतभेद जीवन में मायने नहीं रखते हैं, परन्तु कई बार स्थितियां विपरित हो जाती हैं। शास्त्रों में लिखा है-भाग्यवान मनुष्य को ही जीवन में पूर्ण अनुकूल सौभाग्यशाली पति-पत्नी मिल पाती है, अन्यथा विपरित विचार-धाराओं के कारण मानसिक तनाव बढ़ जाता है कि जीवन, विशेषकर गृहस्थ जीवन, भार स्वरूप हो जाता है, व्यक्ति की उन्नति रूक जाती है।
ऐसे विषम स्थितियों में ईश्वरीय आराधना ही सहायक होती है। महाशिवरात्रि पर्व भगवान शिव व माता पार्वती का परिणय दिवस है। साथ ही शिव परिवार गृहस्थ व्यक्तियों के लिये प्ररेणा स्वरूप है। इस दीक्षा द्वारा गृहस्थ जीवन में अनुकूलता आती है। एक दूसरे के सोचने-विचारने का तरीका एक सा हो जाता है। व्यक्ति पूर्ण रूप से सम्पन्न, धन-ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति करता है। अतः शिव गौरी की कृपा से ही महामृत्युंजय शतायु जीवनमय सुख-शांति और जीवन में पूर्ण सुख आता है।