शास्त्रों में कहा गया है कि नवरात्रि के दिन अपने आप में वेदों की पावनता और दिव्यता समेटे हुये, पूरे वर्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिये उसका प्रत्येक क्षण अपने-आप में कीमती होता है और इन दिनों में जो भी साधना या दीक्षा प्राप्त की जाती है, वह तो पूर्ण सिद्धिप्रद होती ही है, इन विशिष्ट दिनों में प्राप्त की गई दीक्षा जीवन का अहोभाग्य कहलाती है।
सांसारिक सुख अनायास ही प्राप्त नहीं हो जाता, उसके लिये भी देवीय सिद्धि आवश्यक है, सुख प्राप्त करना महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु उन सुखों का उपभोग करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। आज के इस प्रतिस्पर्धावादी युग में यह कहां संभव है, कि व्यक्ति कुछ क्षण सुख से, आनन्द से व्यतीत कर सके। उसे तो आये दिन कोई न कोई समस्या तो घेरे रहती है। जिससे जूझते हुये सभी रूपों में उसकी शक्ति समाप्त हो जाती है।
महाकाली, महासरस्वती व महालक्ष्मी सांसारिक मनुष्य के जीवन को गतिशील व जाग्रत रखने के लिये उसमें शक्तितत्त्व स्थापित करती हैं। नववर्ष के प्रारम्भिक चैत्रीय नवरात्रि पर्व देवीय शक्ति की उपासना व अपने जीवन को योग-भोग सुखों से परिपूर्ण करने का श्रेष्ठतम अवसर है। यह दीक्षा व्यक्ति को त्रिविध उन्नति प्रदान करती है, जिससे बाधाओं का नाश होता है। साथ ही आज्ञा चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति अद्वैत सत्य का अनुभव करता है और स्वः से परिचित हो पाता है, जिससे वह आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करता है। जीवन में अनुकूलता प्राप्त करने हेतु नववर्ष के प्रारम्भ में ही दीक्षा सर्वश्रेष्ठ है।
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