भगवान श्रीराम, एक ऐसे दीपक हैं जिन्हें घर घर में पूरे परिवार में अपने हृदय में पवित्रता के साथ प्रज्ज्वलित करते हैं। क्योंकि दया, करूणा, कल्याण, सेवा, मर्यादा आदि के जीवित मूरत और सूरत ही पुरूषोत्तम श्रीराम हैं। विविध शक्तियों के अधिकारी होते हुये भी वे अपने आपको जनमानस में एक साधारण पुरूष रूप से स्थापित किये हुये है। सांसारिक जीवन की विभिन्न विपरीत क्रियाओं को समेटे हुये, मर्यादा का पालन करते हुये किस तरह से पुरूष से पुरूषोत्तम बन सकते हैं वे प्रतिपादित किये हैं जिसका साक्षी आज समाज खुद है।
आज भगवान श्रीराम जी का नाम लेते ही व्यक्ति में पवित्रता, दिव्यता, चैतन्यता का भाव स्वतः ही गतिमान होने लगता है। भगवान राम की छवि साधारण जन मानस में यह विश्वास दिलाती है कि लक्ष्य की सिद्धि, साधना में सिद्धि, असहाय, निर्वासित होने पर भी अपने संकल्प में अड़िग रहने पर प्राप्त होती हैं। विश्वामित्र जी ने श्रीराम जी की नम्रता, मानव सेवा की भावना को देखते हुये अनेक अस्त्रों तथा विद्यायें उनको प्रदान की, उन विद्याओं में से एक है काल ज्ञान सिद्धि।
काल को समझना एक कठिन क्रिया है, किन्तु असंभव नहीं। काल तो अपने महत्त्व को हर क्षण दर्शाता है। जो इसके महत्त्व को नहीं समझता है, वह जीवन की गति को भी नहीं समझ सकता है। आज भी यदि व्यक्ति चाहे तो अपने संपूर्ण जीवन काल में कालजयी बन कर रह सकता है। यदि उसे भूत-भविष्य का ज्ञान हो जाये तो वह उसके अनुसार अपने जीवन को दिशा प्रदान कर सकता है। वर्तमान में ही सावधान होकर अपने कार्यों को सफलता पूर्वक सिद्ध कर सकता है तथा भविष्य में आने वाली विपदाओं से, परेशानियों से बच सकता है। काल के विशेष क्षण पहचान कर अपने अनुकूल बना देने को काल ज्ञान सिद्धि कहते हैं।
मानव जीवन का सार पुरूषार्थ है। बिना परिश्रम, प्रयत्न एवं पुरूषार्थ के कोई वस्तु लभ्य नहीं। अतः जो व्यक्ति कठिनाइयों, संर्घषों एवं बाधाओं से उलझकर अपने लक्ष्य की ओर साहस के साथ बढ़ता है, वही सफल हो सकता है। आज समाज में व्यक्ति को धैर्यवान, पराक्रमी, मर्यादापूर्ण, नम्र, दयावान तथा कालजयी बनना नितान्त आवश्यक है।
श्री राम अवतरण पर्व के श्रेष्ठ अवसर पर यह ‘पूर्ण पौरूषमय पुरूषोत्तम श्रीराम काल ज्ञान सिद्धि दीक्षा’ ग्रहण करने का विशेष महत्त्व है। यह दीक्षा व्यक्ति को पूर्ण पौरूषमय बनने के साथ काल पर विजय प्राप्त तथा भगवान श्रीराम की दिव्य गुणों से युक्त करने में सक्षम है। आज के युग में सभी को यह दीक्षा ग्रहण करना अनिवार्य है।
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