प्रातः स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत होकर पूजा स्थान में शुद्ध धोती पहन कर आसन पर बैठें। सामने चौकी पर श्वेत या पीत वस्त्र बिछा कर सुन्दर गुरू चित्र स्थापित करें। अपने समीप ही साधना सामग्री – गुरू स्थापन यंत्र’ ‘चेतना माला’ रूद्राक्ष’ एवं गुरू गुटिका’ तथा पूजन की अन्य सामग्री रखें। गुरू चित्र के सामने किसी थाली में कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर उस पर गुरू स्थापन यंत्र’ को स्थापित करें। यंत्र के दाहिनी ओर गुटिका तथा बाई ओर रूद्राक्ष को रख कर धूप, दीप प्रज्वलित करें। पहले पवित्रीकरण और आचमन करके दोनों हाथ जोड़ कर गुरू प्रार्थना करें।
प्रार्थना
ऊँ सर्व मंगल मांगल्यं चैतन्यं वरदं शुभम्।
नारायणं नमस्कृत गुरू पूजां समाचरेत्।।
अपने सामने किसी पात्र में थोड़ा जल लेकर उसमें कुंकुंम, अक्षत और पुष्प की पंखुडियां मिला ले, उसके बाद उसमें सभी तीर्थो का आवाहन करें-
ऊँ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू।।
भूतापसारण
बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से ढक दें तथा निम्न मंत्र बोलते हुए सभी दिशाओं में अक्षत छिड़केः-
अपर्सन्तु ते भूता ये भूता भुवि संस्थिताः।
ये भूता विघ्नहर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।
इसके बाद ‘सर्व विघ्नान् उत्सारय-हूं फद् स्वाहा’
का उच्चारण करते हुए दाएं पैर की एड़ी से 3 बार भूमि पर आघात करें। इसके बाद समस्त गुरूओं को हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
ऊँ ऐं गुरूभ्यो नमः।
ऊँ ऐं परम गुरूभ्यो नमः।
ऊँ ऐं परत्पर गुरूभ्यो नमः।
ऊँ ऐं पारमेष्ठि गुरूभ्यो नमः।
गुरू पंक्ति को प्रणाम करने के बाद अपने हृदय में गुरू तत्व को स्थापित करें-
फिर गुरू आरती सम्पन्न करके पुष्पांजलि समर्पित करें। यह 3 माह की साधना है, इसमें नित्य उपरोक्त मंत्र की एक माला जप करना अनिवार्य है, नित्य पूजन सम्पन्न करने की आवश्यकता नहीं है। उपरोक्त पूजन को हर माह की 21 तारीख को दुहरा ले तथा प्रसाद घर में सभी को वितरित करें। 3 माह बाद सभी सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
इस साधना द्वारा शनैः शनैः साधक के अन्दर गुरूदेव की समस्त शक्तियां स्वतः ही उतरने लगती है, आवश्यकता है तो धैर्य और संयम की।
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