शंकराचार्य के जीवन का गोपनीय प्रयोग और जिसे सम्पन्न कर आप भी लक्ष्मी को सम्मोहित आबद्ध कर सकते है।
शंकराचार्य द्वारा स्तुति करने पर स्वयं लक्ष्मी ने ब्राह्मणी के घर में धन की अजस्र वर्षा की थी, यह तो सर्वविदित है और यह आश्चर्यजनक भी है, कि स्तुति के माध्यम से किस प्रकार शंकराचार्य ने लक्ष्मी को आबद्ध कर दिया था, कि वह धनवर्षा करे ही। इसके पृष्ठ में तो सिर्फ स्तुति ही सम्भव नहीं है, क्योंकि व्यक्ति तो उम्र भर स्तुति करता है, परन्तु उसके घर में धन की वर्षा नहीं होती।
शंकराचार्य ने ऐसा कौन सा प्रयोग किया था, जिससे वह समर्थ हो सके लक्ष्मी को आबद्ध करने और अपनी इच्छानुसार धन की वर्षा करा सकने में?
इसके मूल में अनेक रहस्य उद्घाटित होते है, सम्भवतः उन सबका विवेचन करना तो सम्भव नहीं है, परन्तु मूल विषय है, कि क्या स्तुति के माध्यम से धनवर्षा सम्भव है या शंकराचार्य ने किस मार्ग को अपनाया, कि वह लक्ष्मी को आबद्ध कर इच्छित स्थान पर धनवर्षा कराने में सक्षम हो सके?
इस प्रश्न का उत्तर यही है, कि मात्र स्तुति के माध्यम से लक्ष्मी आबद्ध करना सम्भव नहीं है, यदि स्तुति के माध्यम से ही लक्ष्मी आबद्ध की जा सकती, तो प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति के घर तथा वह व्यक्ति जो नित्य अपने व्यवसाय स्थल पर जाकर लक्ष्मी की स्तुति करता है, इनके घरों में अब तक तो धन का ढेर लग जाना चाहिये था!
परन्तु ऐसा प्रायः सम्भव नहीं होता, कोई भी व्यक्त्ति, जो स्तुति करता है, उसके घर धन की वर्षा नहीं होती, उनके घरों में धन का ढेर नहीं लगता, वे अपने पूरे जीवन में लक्ष्मी की स्तुति तो करते है, फिर भी कर्जदार ही बने रहते है, धन का उन्हें कोई अजस्र स्त्रोत नहीं मिलता, अतः स्पष्टतः शंकराचार्य ने अवश्य ही कोई ऐसा प्रयोग सम्पन्न किया होगा, जिसके माध्यम से वे लक्ष्मी को आबद्ध कर सकने में समर्थ हुये।
‘तंत्र’ एकमात्र ऐसा माध्यम है, जिसमें अनेक ऐसी विधाएं, अनेक ऐसे प्रयोग है, जिनका ज्ञान यदि व्यक्ति प्राप्त कर लेता है तो उसके माध्यम से वह किसी भी देवी-देवता को आबद्ध करने में समर्थ हो सकता है।
शंकराचार्य तो तंत्र के उच्चकोटि के ज्ञाता थे, उन्होंने ही बौद्ध धर्म को सम्पूर्ण भारतवर्ष से विस्थापित कर पुनः हिन्दुत्व की स्थापना की। तंत्र ही वह सबल माध्यम था, जिसके द्वारा शंकराचार्य कम उम्र में ही अपने लक्ष्य की पूर्णता प्राप्त कर सके। वास्तव में देखा जाये, तो शंकराचार्य का जीवन अनेक रहस्यों से ओत-प्रोत है, जिनकी विवेचना करना अनेक गोपनीय रहस्यों को उजागर करना ही होगा।
शंकराचार्य के जीवन का गोपनीय तथ्य ही है, कि संन्यासी होते हुये भी, संन्यास धर्म का पालन करते हुऐ भी किसी समक्ष याचना नहीं की, वरन स्वयं तो समर्थ हुए ही, साथ ही सब कुछ प्रदान करने में समर्थ भी हुए।
जब शंकराचार्य ने देखा, कि समाज की व्यवस्था में असन्तुलन आ जाने के कारण उच्चकोटि की आध्यात्मिक विभूतियां भी भीक्षा मांग कर जीवन यापन करने पर विश्वास करने लगी है एवं साधनाओं का महत्त्व न्यूनतर होता जा रहा है, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि कर्मक्षेत्र एवं साधनापक्ष को छोड़कर भिक्षावृति में विश्वास करने लगे है, तब शंकराचार्य को इन सभी परिस्थितियों से बहुत ग्लानि हुई। वे चाहते थे, कि भारतवर्ष का कोई भी व्यक्ति भूखा, गरीब, लाचार, बीमार तथा ज्ञान के अभाव में न जीये, जिये तो पौरूषता का जीवन जिये, श्रेष्ठता का जीवन जिये और तब उन्होंने अथक परिश्रम एवं खोजबीन के पश्चात् अत्यन्त दुर्लभ एवं गोपनीय प्रयोगों का अन्वेषण किया। इन प्रयोगों को स्वयं सिद्ध कर दिखा दिया, कि एक संन्यासी भी सभी दृष्टियों से पूर्णता युक्त जीवन जी सकता है, एक गरीब से गरीब व्यक्ति भी साधना के माध्यम से आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त कर सकता है… और यह सिद्ध किया एक ब्राह्मणी के घर में इस प्रयोग के माध्यम से धन वर्षा करवा कर….. जिससे उस समय के लोग तो अचम्भित हुये ही और निश्चित रूप से आज भी इस प्रयोग को सम्पन्न कर लोग अचम्भित हुये बिना नहीं रह सकेंगे।
व्यक्ति के जीवन में इतनी अधिक विषमताएं उत्पन्न हो चुकी है कि उसे समाज में प्रतिष्ठित व सम्मानित होने के लिये धन की आवश्यकता पड़ती है, बिना धन के तो वह समाज में अपनी प्रतिष्ठा व सम्मान स्थापित कर ही नहीं सकता।
आज छोटी-छोटी वस्तु की भी यदि आवश्यकता होती है, तो बिना धन के हम उसे खरीद नहीं सकते, ललचायी नजरों से दूसरों की ओर ताकेंगे या किसी अन्य माध्यम से उसे प्राप्त करने का प्रयास करेंगे, क्योंकि वस्तु की आवश्यकता हमें यह सब करने पर मजबूर करेगी, परन्तु यह नैतिकता की ओर समाज के नियमों के विपरीत है।
ऐसी दशा में यह आवश्यकता हो गयी है, कि हम साधना के महत्त्व को समझे, हम सभी अपने जीवन में साधनाओं को स्थान दे और अपनी हर आवश्यकता की पूर्ति हेतु साधनाओं को बनायें।
शंकराचार्य कृत विविध प्रयोग ‘लक्ष्म्योत्त्मा प्रयोग’ भी है, जो धन वर्षा कराने में सक्षम है। यह अपने आप में अद्वितीय प्रयोग है। यह साधना अत्यन्त सरल, सटीक तथा शीघ्र प्रभाव देने वाली कही गई है, यदि यह प्रयोग पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा, विश्वास एवं पूर्ण प्रामाणिक सामग्री तथा विधि विधान के साथ किया जाय, तो अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है।
यह प्रयोग तो अब तक गोपनीय ही रहा है, किन्तु पत्रिका के उद्देश्य को ध्यान में रख कर साधकों के समक्ष उच्चकोटि की इस साधना को पत्रिका के इन पन्नों पर जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रस्तुत कर रहे है-
इस साधना में आवश्यक सामग्री है- ‘लक्ष्म्योत्तमा यंत्र’ तथा ‘कमलगट्टे की माला’ ।
देवी का ध्यान करें-
कमलगट्टे की माला से नित्य 21 माला निम्न मंत्र का जप करें-
साधना समाप्त होने पर अगले दिन यंत्र व माला को बाजोट पर बिछे लाल रंग के कपड़े में बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें।
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