अपनी इसी प्रकृति के कारण मैं अनेक लाइब्रेरियों में जाता रहता हूं और इसी तरह मैं एक दिन ऐसे ग्रन्थागार में पहुंचा, जहां बहुत सी प्राचीन पुस्तके और हस्तलिखित पाण्डुलिपियां रखी थीं। मैं अपनी खोजी प्रवृति के कारण वहां उन पुस्तकों के मध्य बैठ उनको पढ़ने लगा। वहां मेरे हाथ में अत्यन्त जर्जर अवस्था में एक किताब आई, जो चाणक्य के विषय में थी, उसमें चाणक्य के आध्यात्मिक जीवन का विवरण था। चूंकि चाणक्य एक ऐसा पात्र है, जिसने आध्यात्मिक जीवन जीते हुए राजनीति और अर्थशास्त्र पर ग्रंथ लिखा, आज भी उसका लिखा ग्रंथ सर्वश्रेष्ठ है, अतः मुझ में इस किताब को पढ़ने की उत्सुकता बढ़ गई।
मैं पन्ना पलटता रहा, तो ऐसा अनुभव किया, कि वर्तमान राजनीतिक दशा और चाणक्य के काल की राजनीतिक दशा में काफी हद तक समानता है, बस फर्क है, तो सिर्फ शताब्दियों का। तब भी राजनीतिक उतार-चढाव आते रहते थे और आज भी राजनीति उसी प्रकार की है। ऐसा प्रतीत हुआ कि राजनीति तो प्रारम्भ से ही एक समान ही चलती आई है, बस समयानुसार पात्र बदलते रहते हैं।
चाणक्य अपने राजनीतिक जीवन में एक सफल व्यक्तित्व था, इसके पीछे उसकी तपस्या, उसका आध्यात्मिक जीवन ही था, परन्तु इसके साथ वह एक सफल तथा श्रेष्ठ तांत्रिक भी था, जिसका वर्णन अत्यल्प मिलता है, ऐसा मैं इसलिये कह रहा हूँ, क्योंकि उस पुस्तक में जो वर्णित था, उसके अनुसार चाणक्य ने अपने संकल्प को पूर्ण करने हेतु कुछ तांत्रिक व मांत्रिक साधनाएं भी सम्पन्न की थी।
इससे पता चलता है, कि चाणक्य ने अपने राजनीतिक जीवन को सफल बनाने के लिये साधनाओं का सहारा लिया और उसने निश्चिय ही अपने संकल्प को पूर्ण करने हेतु कुछ प्रयोगों को सम्पन्न किया था और प्रत्यक्ष तो नहीं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से उसने ही पूरा राजकार्य चलाया, चन्द्रगुप्त तो मात्र उसका शिष्य था।
मुझे ऐसा लगा, कि इस पाण्डुलिपि में कुछ विशेष क्रियाओं का वर्णन है, किन्तु पाण्डुलिपि स्पष्टतः नहीं समझ पाने के कारण मैं कुछ श्लोकों को उतार कर घर ले आया और एक श्रेष्ठ विद्वान से उनका सरलीकरण करवाया, तो पता चला, कि यह एक तांत्रिक प्रयोग है, जिससे गति-मति का स्तम्भन हो सकता है। इस स्तम्भन प्रयोग को करने से शत्रु की गति-मति बंध जाती है तथा वह पूर्णतः प्रयोगकर्ता के अनुकूल बन कार्य करने लगता है।
यह देखकर मैं चाणक्य के चरित्र पर अपनी आदतानुसार शोधरत हो गया, फिर मेरे समक्ष रहस्य की परत-दर परत खुलती चली गई और मैं अचम्भित हो चाणक्य के व्यक्तित्व को गहनता के साथ पढ़ने लगा और उसके प्रयोगों को पढ़ने पर एहसास किया, कि वास्तव में उसकी सफलताओं के पीछे उसकी बौद्धिकता के साथ-साथ तंत्र भी समन्वित था।
उसने अपने संकल्प को पूर्ण करने हेतु कई प्रयोगों का सहारा लिया और वास्तव में इतिहास साक्षी है, कि उसने अपने संकल्प को पूर्ण कर दिखाया। उसने अपने शत्रुओं की यह स्थिति बना दी, कि शत्रु उसके समक्ष कुछ सोचने-समझने की शक्ति से च्युत हो जाते थे और वह निरन्तर सफलता की ओर अग्रसर रहा।
आज भी, चाहे वह राजनीतिक जीवन हो या सामाजिक जीवन, प्रतिस्पर्धा तो बढ़ ही रहीं है। प्रत्येक व्यक्ति सफलता प्राप्त करने को लालायित है। इसके लिये यदि उन्हें गैरकानूनी तत्त्वों का भी सहारा लेना पड़ता है, तो वे हिचकते नहीं, वरन ऐसे तत्त्वों का उपयोग कर सफलता को हर संभव प्राप्त करने का प्रयास करते है और इस बेताबी में लोग अच्छे-बुरे का भी ज्ञान भूल जाते है।
परन्तु चाणक्य ने इन प्रयोगों का उपयोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये नहीं किया था, वरन जब देश की दशा अत्यधिक गंभीर हो गई और राज्य परिवार के सदस्य आपस में सत्ता के लिये युद्ध कर रहे थे, बाह्य देश भी इस स्थिति से लाभ उठाने की नीयत से आक्रमण करने के लिये तैयार हो गये थे, सीमाओं पर आक्रमण आरम्भ हो चुका था, ऐसी विषम परिस्थितियों में चाणक्य ने साधनाओं का सहारा लिया और शत्रुओं पर विजय प्राप्त की।
चाणक्य एक विद्वान व्यक्ति था, उसने भली-भांति इन प्रयोगों को सम्पन्न किया, मात्र अपने सुख हेतु नहीं, वरन जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर। चाणक्य द्वार प्रयुक्त किये गये प्रयोगों में से यह ‘स्तम्भन प्रयोग’ पाठकों के लिये प्रस्तुत है-
यह प्रयोग अत्यधिक तीक्ष्ण है, अतः इसे कभी हास्य के रूप में अथवा आजमाने के रूप में नहीं करें, वरन अत्यन्त विषम परिस्थितियों में इस प्रयोग को सम्पन्न करें। यह प्रयोग सम्पन्न कर अपने शत्रु की गति-मति को बांधकर अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। इसके बाद जब भी शत्रु आपके सामने आयेगा, उसमें कुछ सोचने -समझने की क्षमता नहीं रहेगी और आप अपना मनोवांछित कार्य उससे सिद्ध करवा सकते है।
इस प्रयोग में साधक को ‘नीली हकीक माला’ तथा ‘शत्रु स्तम्भन यंत्र’ का प्रयोग करना है।
पश्चिमाभिमुख होकर निम्न मंत्र की 51 माला मंत्र जप करें-
प्रयोग समाप्त होने पर पीले धागे से सभी लोहे की कीलों को बांधकर यंत्र तथा माला भी बाजोट पर बिछे कपड़े में रखकर बांध ले और किसी नदी में प्रवाहित कर दें।
साधक को इस बात का ध्यान रखना चाहिये, कि मजाक के लिये या मन में दुर्भावना रखकर इस मंत्र की साधना नहीं करनी चाहिये। यदि कोई व्यक्ति आपकी प्रगति में बाधक बन रहा है और आपको कोई दूसरा सुगम मार्ग नहीं मिल रहा है, तो उसे रोकने के लिये यह प्रयोग सम्पन्न करें।
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