गुरु तो प्राणमय कोश में होते हैं, आत्ममय कोश में होते हैं। वह केवल मानव शरीर धारी नहीं होते, उनमें ज्ञान होता है, चेतना होती है उनकी कुण्डलिनी पूर्ण जाग्रत होती है, सहस्त्रार पूर्ण चैतन्य होता है, उन्हें भूख, प्यास आदि नहीं सताते, जमीन से छः फुट ऊंचे शून्य में उनका आसन लगता है, वे ही सही अर्थों में मनुष्य हैं और जीवन की धन्यता तो इसी बात में है, कि व्यक्ति ऐसा बन सके और ऐसा बनना मनुष्य जीवन में सम्भव है।
यह दीक्षा शिष्य के जीवन की कोई सामान्य घटना नहीं होती, यह तो उसके साधनात्मक जीवन का एक टर्निंग प्वाइंट होता है, एक सुनहरा मोड़ जिसके बाद फिर उसके दोष, उसके विकार उसकी सफलता में आड़े नहीं आते। परन्तु इसके लिये यह भी आवश्यक है, कि दीक्षा बहुत ही विनीत भाव से ग्रहण की जाये, इस प्रकार की दीक्षा में साधक का गुरुदेव के प्रति विश्वास बहुत अधिक महत्त्व रखता है, क्योंकि अविश्वास और अश्रद्धा ऐसे दो विषय हैं, जिनके प्रभाव से साधक द्वारा अर्जित सभी सिद्धियां या आशीर्वाद निष्क्रिय हो जाते हैं।
यह सद्गुरू आत्मएक सहस्त्रार जागरण ब्रह्माण्ड भेदन दीक्षा के तेज से जब साधक चैतन्य शुद्ध-बुद्ध हो जाता है, तब उसकी वाणी में सागर के समान गम्भीरता आ जाती है, उसकी नेत्रों में असीम करुणा और सम्मोहिनी व्याप्त हो जाती है, उसके चेहरे पर अद्भूत शान्ति विद्यमान हो जाती है, क्योंकि उसे तो साक्षात गुरुदेव की उपस्थिति का भान होता रहता है, क्योंकि बाहर कहीं नहीं स्वयं उसके भीतर ही सद्गुरुदेव व ब्रह्माण्डीय ऊर्जा पूर्णता के साथ स्थापित हो चुके होते हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,