प्रस्तुत प्रयोग में आवश्यक उपकरण के रूप में साधक के पास प्राण प्रतिष्ठित छिन्नमस्ता यंत्र, दो मधुरूपेण रूद्राक्ष ( जो छिन्नमस्ता की दो अभिन्न शक्तियां जया और विजया की प्रतीक हैं) छिन्नमस्त माला होनी आवश्यक है। इस साधना को किसी भी मंगलवार की रात्रि में 10 बजे के आस-पास प्रारम्भ करें। यह एक दिवसीय साधना है।
लाल रंग की धोती पहन कर दक्षिण मुख होकर, लाल रंग के आसन पर बैठें। सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर साधना सामग्री को साथ रखे। दो मधुरूपेण रूद्राक्ष यंत्र के दायीं और बाई ओर रखें। समस्त साधना सामग्री को पूजन सिंदूर और अक्षत से करें। संभव हो तो लाल रंग के पुष्प चढ़ायें। अगरबत्ती या धूप लगाने की आवश्यकता नहीं है। परन्तु तेल का इतना दीपक अवश्य जला लेंवे जो कि समस्त मंत्र जप काल में प्रज्ज्वलित रहे।
इसके बाद अपनी जिस मनोकामना की पूर्ति हेतु साधना कर रहे है उसका मन ही मन स्मरण करें। मनोकामना कोई भी हो, उसे व्यक्त करने में संकोच ना करें। यह प्रयोग प्रत्येक मनोकामना की पूर्ति हेतु प्रभावी है। किन्तु प्रत्येक नई मनोकामना चाहे व रोजगार प्राप्ति से सम्बन्धित हो अथवा व्यवसाय को प्रारम्भ करने से अथवा विवाह या संतान या गृहस्थ सुख से प्रत्येक बार नई साधना सामग्री के साथ प्रयोग सम्पन्न करें। मनोकामना स्मरण के बाद देवी के उग्रस्वरूप का ध्यान करें। मन में भावना करें कि उनके वरदायक प्रभाव से साधक का पथ निष्कंटक हो रहा है।
भास्वन्मण्डलमध्यगां निजशिरश्छिन्नं विकीर्णालकं स्फेरास्यं प्रतिपद्गलत्स्वधिरं वामे करे
विभ्रतीम् यामासक्त रतिस्मरोपरिगतां सख्यौ निजे
डाकिनीवार्णिन्यौ परिदृश्य मोदकलितां श्रीछिन्नमस्तां भजे।।
छिन्नमस्ता माला से निम्न मंत्र की केवल 21 माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
मंत्र जप के पश्चात दूसरी समस्त सामग्रीयों को किसी पवित्र सरोवर में विसर्जित कर दें।
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