जिनकी साधना, आराधना और अनुकूलता से व्यक्ति पूर्णतः भयमुक्त होकर अपने जीवन में उत्तरोतर प्रगति करता ही रहता है। शनि से डरने की आवश्यकता नहीं है, उसे अपने अनुकूल बनाकर शनि को अपने जीवन में उतार कर तीव्रता और तेजस्विता लायें।
भारतीय ज्योतिष में एक भ्रामक धारणा दिनो दिन बलवती हो रही है, शनि सदैव अहित ही करता है, उसका प्रभाव सदैव अमंगलकारी, अशुभ एवं विघटनकारी ही होता है। अशांति का कारण शनि ही है। दुःख का कारण भी शनि ही है लड़का भाग गया, स्त्री भाग गई, संतान कुमार्गी हो गई, व्यापार में घाटा हो गया आदि सभी शनि ग्रह के कारण बताए जाते हैं।
शनि को ज्योतिष में ‘विच्छेदात्मक ग्रह’ माना गया है। जहां एक ओर शनि मृत्यु प्रधान ग्रह माना गया है, वहीं शनि दूसरी ओर शुभ होने पर भौतिक जीवन में श्रेष्ठता भी देता है।
समस्त ग्रहों में शनिदेव ही ऐसे ग्रह है, जो अत्यन्त क्रोधी होते हुए भी अत्यन्त दयालु कहे गए है। उनके विषय में कहा गया है कि जब ये किसी पर क्रोधित होते है, तो उसका सर्वनाश कर डालते है। इसी प्रकार जब ये किसी से प्रशन्न होते होते है, तो रंक को भी राजा बना देते है।
शनि सर्वदा प्रभु भक्तों को अभय दान देते है और उनकी हर प्रकार से रक्षा करते है। शनि समस्त सिद्धियों के दाता है। साधना, उपासना द्वारा सहज ही प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की समस्त कामनाओं को पूरा करते है।
शनैश्चराय अंगुष्टाभ्यां नमः।
मन्दगतये तर्जनीभ्यां नमः।
अधोक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः।
कृष्णांगाय अनामिकाभ्यां नमः।
शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
छायात्मजाय करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः।
शनैश्चराय हृदययाय नमः।
मन्दगतये शिरसे स्वाहा।
अधोक्षजाय शिखायै वशट ।
शुष्कोदराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
छायात्मकजाय अस्त्राय फट्।
‘शनि साफल्य माला’ से निम्न मंत्र की 24 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप पूर्ण होने के बाद यंत्र पर तीन काले अथवा नीले रंग के फूल चढ़ाएं, यदि काले रंग के फूल न मिल सकें, तो सफेद फूल को (काजल के तिल के तेल में घोल कर) रंग ले।
साधना के पश्चात शनि की प्रार्थना इन दस नामों से करनी चाहिये।
हिन्दी में इस शनि स्त्रोत का पाठ किया जा सकता है-
कोणस्थ, पिंगल, वभु, कृष्ण, रौद्र, अन्तक, यमः सौरि, शनिश्चर, मन्द इन दसों नामों का उच्चारण जो व्यक्ति प्रातः काल करता है, उसे शनिदेव पीड़ा नहीं देते। इस का ग्यारह बार पाठ करना चाहिए।
हाथ जोड़ कर श्रद्धापूर्वक निम्न वन्दना करें-
साधना समाप्ति के बाद यंत्र तथा माला को उसी स्थान पर रहने दे तथा अगले दिन प्रातः या सायं काल यंत्र के सम्मुख हाथ जोड़कर पुनः उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करें तथा ‘ऊँ शं ऊँ ’ मंत्र बोलते हुए यंत्र या माला का किसी काले वस्त्र में लपेट कर पूजा स्थान में रख दें। अगले शनिवार को वस्त्र सहित यंत्र व माला को जल में प्रवाहित कर दे।
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