चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियाँ सभी गायत्री से ही पैदा हुए हैं। वेदों की उत्पति के कारण इन्हें वेदमाता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिये इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता है। माँ पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी की अवतार भी गायत्री को कहा जाता है। जो व्यक्ति माता गायत्री को आत्मसात कर लेता है उसकी आन्तरिक ऊर्जा, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जुड़ने लगती है, वह अनन्त सिद्धियों का स्वामी बन जाता है, आत्मा की उन्नति और आध्यात्मिक प्रगति अवश्य होती है।
जीवन में दीर्घायु जीवन प्राप्ति, आरोग्य, ज्ञान बुद्धि की चेतना और वाक् चातुर्यता युक्त जीवन अभिलाषा सांसारिक व्यक्ति करता है। इन सभी स्वरूपों को प्राप्त करने के लिये अल्प समय में ऐसी कोई युक्ति अपनायें जिससे आप अपनी कामनाओं की पूर्ति कर सकें और यह सब केवल और केवल ‘आत्मा शुद्धिकरण ज्ञान-चेतना वृद्धि वात्सल्यमयी माता गायत्री दीक्षा’ के माध्यम से ही संभव है तथा यह दीक्षा ही सर्वोपरि स्वरूप में मानव जीवन के लिये उपयोगी है।
अतः अपने अन्दर देवी गायत्री की दैविक चेतना का समावेश करने पर ही हमारे जीवन में देवत्व रूपी शक्तियाँ विद्यमान होनी प्रारम्भ हो जाती है। देवी गायत्री आराधना से ही हमारे अन्दर देव गुण जाग्रत हो पायेंगे। इस दीक्षा के माध्यम से ब्रह्माण्ड के सारे देवी-देवताऐं व्यक्ति को पूर्ण सुख प्रदान में सहयोगी बनेंगे। जिससे व्यक्ति के जीवन में प्रज्ञा, ज्ञान, बुद्धि सुभावों की वृद्धि के साथ ओज, आनन्द, प्रेम, वात्सल्य, सकल पदार्थ उपलब्ध होते ही हैं।
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