‘‘तुमने महान तप किया है, तुम इन्द्र आदि सभी देवताओं के गुरू होओगे तथा सभी ग्रहों में पूज्य होओगे और ‘बृहस्पति’ नाम से पुकारे जाओगे। तुम बड़े वक्ता और विद्वान होओगे, तुम्हारी या तुम्हारे द्वारा जो मेरी अर्चना करेगा, वह तुम्हारे समान ही विद्वान एवं श्रेष्ठ वक्ता बनेगा।’’
तदन्तर बृहस्पति को देवताओं का आचार्य पद प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए। धनबल, राज्य बल से भी अधिक श्रेष्ठ ज्ञान बल है। इस ज्ञान को, समस्त शास्त्रों के ज्ञान को, आध्यात्मिक सूक्ष्मताओं को जानने वाले ज्ञानी की सर्वत्र पूजा होती है-विद्वान सर्वत्र पूज्यते’। देवगुरू बृहस्पति की शिव साधना से व्यक्ति की पूर्ण आध्यात्मिक उन्नति होती है, मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है और यदि पूर्ण श्रद्धा से साधना सम्पन्न कर ली जाये तो भगवान शिव के परोक्ष-अपरोक्ष दर्शन भी सम्भव होते है। बृहस्पति की यह साधना करने से गुरू कृपा भी प्राप्त होती है, क्योंकि बृहस्पति गुरू के ही रूप हैं।
इस साधना को सोमवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। इस साधना को प्रातः काल ही सम्पन्न करना चाहिये। उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर, गुरू चित्र एवं शिव चित्र का संक्षिप्त पूजन करें। गुरू मंत्र की एक माला अवश्य जप करें। फिर अपने सामने एक थाली में कुंकुंम से गुरू मंत्र अंकित करें। इसके ऊपर पुष्प का आसन देकर तांत्रोक्त रूद्र यंत्र’ को स्थापित करें। यंत्र की दाई ओर पुनः पुष्प का आसन देकर ‘गुरू गुटिका’ रखते हुए देवगुरू बृहस्पति की स्थापना करें। फिर ‘चैतन्य माला’ से निम्न मंत्र की 7 माला 26 दिन तक नित्य करें-
आठवें दिन गुरू गुटिका को हाथ में अथवा गले में धारण कर लें। साधना समाप्ति होने के बाद कम से कम एक सप्ताह तक अन्य सामग्री को पूजा स्थान में ही रहने दें, फिर बाद में उसे जल में विसर्जित कर सकते है।
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