यही सामर्थ्य तो प्रदान करती है वज्र प्रस्तारिणी, जिसकी साधना कर जीवन को निर्द्वन्द्व व निर्मुक्त रूप से जीना आ जाता है।
जीवन में विभिन्नताओं का समावेश है, क्योंकि हर क्षण परिवर्तित होती प्रकृति जीवन को विविध रंगों से भर देती है और इसी नित नूतन परिवर्तन से जीवन में उल्लास, आह्लाद अपने लुभावने स्वरूप में विद्यमान रहता है। यदि जीवन में सम्पूर्ण रस न हो, तो जीवन कठिन हो जाता है।
जीवन में जहां एक ओर श्रृंगार, वात्सल्य, हास्य आदि अनिवार्य रस है, वहीं भय, जुगुप्सा आदि भी आवश्यक रस है, हर रस का जीवन में महत्त्व है। किसी एक की भी अनुपस्थिति जीवन में संतुलन को बिगाड़ देती है।
यदि जीवन में भय, घृणा, असम्मान, अव्यवस्था हो, तो जीवन के संतुलन क्रम में विघ्न उत्पन्न हो जाता है या फिर सिर्फ रास-रंग ही हो, तो भी फीका सा ही लगता है। आप अपने जीवन के अव्यवस्थित क्रम को व्यवस्थित कर सकते हैं इस ‘वज्र प्रस्तारिणी साधना’ से क्योंकि यह साधना सम्पन्न करने पर साधक का जीवन संतुलित क्रम में आता ही है। इसे करने से साधक स्वयं पर नियंत्रण स्थापित कर हर प्रकार की परिस्थितियों की साधना करने का सामर्थ्य प्राप्त कर उनको अपने अनुसार ढालने का सहज उपाय ढूढ़ लेता है। उसके अन्दर लक्ष्य को प्राप्त करने का अडिग विश्वास उत्पन्न हो जाता है, जिस कारण वह किसी भी कार्य को अत्यन्त सहजता से करने में समर्थ हो जाता है।
वज्र प्रस्तारिणी अपने साधक पर कृपा कर, उसे जीवन में सफल बनने में पूरा सहयोग प्रदान करती है। युग के अनुसार समाज की कार्यविधि और चिन्तन में परिवर्तन आता चला गया। जो कार्य सतयुग में संभव थे, वे त्रेता में नहीं हो सके और जो कार्य द्वापर में हो सकते थे, वे अब इस युग में संभव नहीं है, क्योंकि प्रत्येक युग के साथ समाज की विचारधारा परिवर्तित होती चली गई। युग के अनुसार ही परेशानियों के हल भी परिवर्तित होते चले गये। पुरातन युग के हल अब इस काल में प्रयुक्त नहीं हो सकते, इस युग के अपने ही प्रकार के हल है, जिन्हें इस काल में प्रयोग किया जा सकता है…. और व्रज प्रस्तारिणी की यह साधना इस युग के अनुरूप ही फल देने वाली है। जो साधक के जीवन की बाधाओं एवं समस्याओं को समाप्त कर, उसे व्यवस्थित जीवन संचालन का मार्ग प्रशस्त करती है।
कई बार बड़ी-बड़ी साधनाओं से भी जो कार्य सिद्ध नहीं हो पाते है, वे ही कार्य कभी-कभी किसी छोटी सी साधना विधि के द्वारा तुरंत गतिशील हो जाते हैं।
इस साधना को सम्पन्न करने से साधक के जीवन की निम्न बाधाएं दूर होती हैं-
तनाव ग्रसित जीवन आनन्दप्रय नहीं हो सकता है। वज्र प्रस्तारिणी साधक पर अपनी कृपा का आवरण डालकर समस्त प्रकार की व्याधियों का नाश कर उसे जीवन के आनन्द से परिचित करवाती है। यह साधना किसी भी साधक के जीवन को ऊर्ध्वोन्मुखी बनाने में सहायक है।
ध्यान करें-
रक्ताव्धौ रक्त-पोते रविदल
कमलाभ्यन्तरे सन्निषणाम्
रक्ताक्षीं रक्त-मौलि स्फरित-राषि
कलां स्मेर वक्त्रां त्रिनेत्राम्
बीजापूरेषु पाषंकुष
मदन-धनुःसत् कपालानि।
यंत्र के चारों और चावल की बारह ढेरियां बनाकर बारह शक्तियों का पूजन करें-
ऊँ हल्लेखायै नमः।
ऊँ क्लेदिन्यै नमः।
ऊँ क्लिन्नायै नमः।
ऊँ क्षोभिण्यै नमः।
ऊँ मदनावत्यै नमः।
ऊँ मेखलायै नमः।
ऊँ द्राविण्यै नमः।
ऊँ रमेरायै नमः।
ऊँ कपालोप्पलाय नमः।
ऊँ शक्तिभ्यो नमः।
ऊँ रक्त विग्रहाय नमः।
ऊँ त्रिष्टुलभ्यों नमः।
निम्न मंत्र का 5 माला जप पांच दिन तक करें।
साधना सम्पन्न होने पर हलवा का भोग लगावें।
पांच दिन इसी प्रकार साधना करें तथा छठवें दिन यंत्र और माला को नदी में विसर्जित कर दें।
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