प्रत्येक व्यक्ति का जीवन गुरू के बिना अधूरा होता है। गुरू का सहारा प्राप्त कर जीवन यात्रा में तीव्रता से आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर होते हैं साथ ही उस पर चल सकने योग्य साहस, बल और उत्साह भी प्राप्त होता है। गुरू वरण करने का तात्पर्य उस व्यक्ति की आत्मा के साथ अपनी आत्मा को जोड़ देना है। ‘गु’ शब्द का अर्थ है- अंधकार और ‘रू’ शब्द का अर्थ है- रोकने वाला। अंधकार को दूर करने वाला गुरू होता है।
जब तक हम ज्ञान का विकास करते रहते हैं तब वास्तविक ज्ञान प्राप्त होता है। गुरू भी ज्ञान और शक्ति देने से पहले शिष्य को कई प्रकार की कड़ी परीक्षाओं से गुजारते हैं, उसे अपने कर्मों से और कर्मों की वास्तविकताओं से परिचित कराते हैं और जब एक भाव भूमि तैयार हो जाती है तो गुरू उसे पूर्णता से और शक्ति तत्व से भर देते हैं। गुरू कृपा से ही साधक निर्द्वन्द्व होकर अपने लक्ष्य को अपने पूर्णता को प्राप्त करने के लिये अग्रसर हो पाता है और उसे निरन्तर शक्ति प्राप्त होती रहती है।
दिव्य शक्ति किसी एक स्वरूप अथवा विचार और क्रिया में बांधी नहीं जा सकती। यह तो संसार में सभी प्राणियों में विचरण करती है और शक्ति उसी की हो सकती है जो शक्ति को जानना चाहता है, उसे अपने भीतर जाग्रत करना चाहता है। इस हेतु सद्गुरूदेव जी प्रत्येक साधक को शक्ति तत्व से पूर्ण करने हेतु सद्गुरू निखिल कृपा प्रदत्त पूर्णमदः पूर्णमिदं दीक्षा प्रदान करेंगे। जिससे वह स्वयं शक्तिमान होकर कर्मयोगी का जीवन जी सके। शिष्य का कार्य तो विशुद्ध मन से अहंकार रहित हो, तब ही उसे निखिल ज्ञान और निखिल शक्ति प्राप्त होती है। इसी से जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सकेगी।
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