कोई नहीं कह सकता कि किस शिष्य में, किस साधक में चेतना की कौन सी भावभूमि छिपी है। केवल सद्गुरू ही शिष्य या साधक की क्षमता को जानकर उसे सही मार्ग पर अग्रसर करता हुआ उसे पूर्णता तक पहुँचा सकता है।
जीवन में वास्तविक आनन्द को प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को आध्यात्म में प्रवेश करना ही पड़ेगा और अध्यात्म में प्रवेश केवल और केवल गुरू के माध्यम से संभव है क्योंकि गुरू ही जानता है कि किसी व्यक्ति को किस साधना में अग्रसर करना है।
जिस प्रकार एक कुम्हार बाहर से चोट करता हुआ एवं अंदर का सहारा देता हुआ एक घड़ा तैयार करता है उसी प्रकार गुरू भी शिष्य को अपना आध्यात्मिक बल देकर उसे कठोर परीक्षाओं से गुजारता है ताकि शिष्य अत्यधिक उच्च एवं श्रेष्ठ आध्यात्मिक स्तर तक पहुँच सके।
गुरू तुम्हें मोह की निद्रा से बाहर निकालने के लिए झटका दे सकता है, वह प्रहार कर सकता है जो इन ठोकरों को झेल लेता है, गुरू के प्रहारों को सहन कर लेता है वह पूर्णता तक पहुँच सकता है।
तुम स्वयं नींद से नहीं उठ सकते। सभी महान पुरूष चाहे वह तुलसी हो, सूर हो, बुद्ध हो, या महावीर हो सभी ने कठिनाईयां झेली, ठोकरे खाई……
पर ठोकर खाने के बाद वे और मजबूत होकर उठे। वे सामान्य मनुष्य ही थे पर आध्यात्म की उतनी ऊँचाईयों तक पहुँचे। तुम भी पहुँच सकते हो अगर तुममें जूझने की शक्ति है तो।
अगर तुम गुरू की परीक्षाओं से घबराते हो तो तुमसे अधिक दुर्भाग्यशाली कोई नहीं। वास्तव में तो गुरू वह है जो शिष्यों को ठोकर मारकर नींद से जगाये, वे समाज की रूढ़ियों पर बिजली की तरह टूट पड़े, जो शिष्य को बताये कि जो जीवन वह जी रहा है वह आत्म साक्षात्कार का सही पथ नहीं हैं।
गुरू तो चाहते है कि शिष्य दिव्यता के मार्ग पर अग्रसर हो, पूर्णता के रास्ते पर अग्रसर हो और शिष्य ऐसा करता है तो उसे पहली बार एहसास होता है कि संतोष क्या है, आन्नद क्या है, पूर्णता क्या है, जीवन की उमंग, उल्लास क्या है।
तुम भी अपनी असली प्राकृतिक छवि को जाग्रत कर सकते हो। अपना स्वयं का आत्म साक्षात्कार कर तुम बौद्धतत्व को प्राप्त कर सकते हो और यह सत्य है कि हर शिष्य बुद्ध बन सकता है अगर वह सद्गुरू के बताए मार्ग पर चले।
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