श्री जगन्नाथ जहाँ अपने इस स्वरूप में भक्तों के समक्ष विद्यमान है, उस स्थल को ‘जगन्नाथ पुरी’ के नाम से जाना जाता है, जो सही अर्थों में अद्वैत भाव का आश्रय स्थल है। हजारो-लाखों की संख्या में भक्तजन श्री जगन्नाथ भगवान के दर्शन करने के लिये दूर-दूर से यहाँ आया करते हैं, क्योंकि ऐसा कहा जाता है, कि जो भी व्यक्ति वहाँ सच्चे मन से, श्रद्धा-भावना से कुछ मांगता है, उसकी वह इच्छा शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है।
यहाँ के वातावरण में ऐसी विशेषता है कि किसी भी व्यक्ति या साधक को यहाँ पहुँचते ही एक अजीब सी शांति अनुभव होने लगती है और वह वहाँ के वातावरण की मोहक सुगन्ध में ही कहीं खोकर ध्यानावस्था में स्वतः ही चला जाता है, उसका मन शुद्ध, परिष्कृत व अद्वैतमय बन जाता है।
जीवन में पूर्णता प्राप्ति के लिये अद्वैत अवस्था को प्राप्त करना अनिवार्य होता है, किन्तु व्यक्ति स्वयं इस स्थिति को प्राप्त करने में असमर्थ है। कहा जाता है कि एक बार द्वारिका में रोहिणी, रुक्मिनी और सत्यभामा तथा अन्य पटरानियों के साथ विश्राम कक्ष में बैठी हुई थी और यूं ही माता रोहिणी कृष्ण की लीलाओं से उन्हें अवगत कराते हुये हंसी-ठिठोली कर रही थी। तभी सुभद्रा ने हंसते हुये माता रोहिणी से कहा, कि ‘‘आप भाभियों को कृष्ण गोकुल में कैसे रखा करते थे, वह वृत्तांत सुनाइये’’ यह सुनकर रोहिणी की स्मृतियाँ, जब उन्होंने कृष्ण को पालने में झुलाया था से लेकर उनके बड़े होने तक की सभी बातें पुनः उनके मानस-पटल पर अंकित हो गई और उनकी आँखों से अश्रुकण छलकने लगे। नारद मुनि ने इस दृश्य को बड़े आनन्द के साथ आत्मसात किया और कृष्ण के निकट आकर बोले की आप प्रेममयी और करुणामयी स्वरूप में भक्तों के लिये विराजमान हो। तभी से वहाँ श्री कृष्ण अपने एक अंश स्वरूप में जगन्नाथ पुरी के नाम से विख्यात हो गये।
जगन्नाथ पुरी एक दिव्य तीर्थ स्थल है, श्री जगन्नाथ चार परम पावन धामों में एक है। बद्रीनाथ धाम, रामेश्वर धाम और द्वारकापुरी धाम तथा इस कलियुग का पावनकारी धाम तो पुरी ही है, श्री जगन्नाथ मन्दिर के शिखर पर लगा चक्र नी छत्र कहा जाता है। और इस धाम को नीलांचल धाम भी कहते हैं। इस पूरे पुण्य क्षेत्र की आकृति शंख के समान है। 51 शक्तिपीठों में एक शक्ति पीठ स्थल है। माता सती की नाभि भाग इस स्थान पर गिरी थी। श्री जगन्नाथ पुरी एक दिव्य तीर्थ स्थल है। जहाँ पहुँच कर प्रभु चिंतन में मग्न हो साधक ध्यानस्थ अवस्था में पहुँच जाता है, क्योंकि श्रीकृष्ण अपने प्रेममय स्वरूप में ही सुभद्रा और बलराम जी के साथ वहाँ हर क्षण विराजमान रहते हैं।
आर्य संस्कृति में प्रारम्भ से ही मनुष्य की ईच्छा रही है कि वह अपने जीवन को श्रेष्ठमय और भौतिक तथा आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्ति के लिये आर्यावृत में स्थित चार धाम बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम और पुरी में से एक धाम की यात्रा अपने जीवन काल में अवश्य सात्विक भाव से करे। जिससे कि वह अनेक-अनेक पापों से तथा दुर्भिक्षता और पापाचार से युक्त जीवन से पूर्ण विर्निमुक्त हो सके और हर दृष्टि से जीवन में पुण्योदय और भाग्योदय जाग्रत हो सके।
सांसारिक गृहस्थ जीवन भगवान श्रीकृष्णमय सर्व कलापूर्ण निर्मित हो सके इसी हेतु श्री काल भैरव अष्टमी व नवनिधि पुष्य ब्रह्मा योग पर्व 22-23-24 नवम्बर को जगन्नाथ पुरी धाम (उड़ीसा) में सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी प्रत्येक साधक से व्यक्तिगत रूप से बातचीत कर पूजा, मंत्र-जप, हवन, यज्ञमय युक्त साधना-दीक्षायें प्रदान करेंगे। जिससे जो भी काल रूपी कुस्थितियाँ है वे पूर्णरूपेण समाप्त हो सकेगी। जीवन में हर पल हम डर-भय, तनाव व अवसाद से ग्रस्त रहते है वह पूर्णरूपेण विलगित हो सकेगा। जिससे साधक का जीवन भैरव शक्तिमय शतायु जीवन युक्त अखण्ड सावित्री सौभाग्य कुबेर धन लक्ष्मी योग-भोगमय श्री वृद्धि युक्त सुस्थितियों की प्राप्ति के साथ ही साधक का जीवन श्रीकृष्णमय योग-भोगमय स्वरूप निर्मित हो सकेगा। जिससे आने वाला नववर्ष पूर्णरूपेण सुमंगलमय बन सकेगा।
ऐसे ही श्रेष्ठमय उपलब्धियों को प्राप्त करने तथा इच्छाओं की पूर्णता के लिये सद्गुरूदेव जी के आशीर्वाद से जगन्नाथ पुरी धाम में योग-भोग धनदा सर्वसुख प्राप्ति भगवान श्री जगन्नाथ शक्ति साधना महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। अतः इस पावन तीर्थ धाम श्री जगन्नाथ पुरी में सभी साधक सपरिवार आकर गुरू सानिध्य में इस तीर्थ की चेतना को साधनात्मक रूप से आत्मसात करेंगे तो परिवार के प्रत्येक सदस्य का जीवन योग-भोगमय सुस्थितियों से परिपूर्ण हो सकेगा।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,