वीर शब्द का अर्थ बलशाली होता है, लेकिन तांत्रोक्त और मांत्रोक्त रूप से वीर का तात्पर्य बिल्कुल अलग है, यह यक्ष का स्वरूप है, जिसके सेवक भूत-प्रेत इत्यादि होते हैं और यक्ष योनि केवल अभिशप्त देवता को ही प्राप्त होती है और जब यक्ष योनि में यह वीर साधकों के कल्याण हेतु कुछ शुभ कार्य सम्पन्न कर लेता है तो उसकी यह शाप योनि समाप्त होकर पुनः देव योनि प्राप्त हो जाती है, तंत्र के क्षेत्र में तो इस दीक्षा का सर्वोपरी महत्त्व है, और तांत्रिक साधना में शिष्य की यह इच्छा रहती है कि उसके गुरू उस पर कृपा कर वीर वैताल साधना में सिद्धि दिलायें।
वीर वैताल सिद्धि का तात्पर्य ऐसी विशेष क्रिया है, जिसे आपूरित होने पर वीर वैताल आपके वश में हो जाता है, वीर एक ऐसा बलिष्ठ पुरूष है, जो अत्यन्त ही ताकतवर और जीवन भर वश में रह कर साधक का आज्ञापालक बन जाता है।
वीर विक्रमादित्य की कहानी सर्वविदित है, कि उन्होंने वीर सिद्धि कर रखी थी, और वह वीर हमेशा उनके नियंत्रण में और उनकी आज्ञा में निमग्न रहता था, जब भी जो भी आज्ञा विक्रमादित्य देते वह वीर एक पल में ही उस कार्य को पूरा कर देता, विक्रमादित्य ने उस वीर की सहायता से ही अपने सारे शत्रुओं को काबू में किया, वीर की सहायता से ही उसने अपने राज्य पर पड़ोसी राज्य की जब फौजें चढ़ाई तो पूरी फौज का सफाया किया, वीर की सहायता से ही उन्होंने अपने राज्य में अटूट धन सम्पत्ति जोड़ दी और वीर की सहायता से ही विक्रमादित्य पूरे संसार में विख्यात हुये।
जिस प्रकार से भूत सिद्धि या शून्य सिद्धि सम्पन्न कर जीवन की प्रत्येक आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है उसी प्रकार से वीर वैताल दीक्षा के द्वारा भी संसार का कठिन से कठिन कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, वीर का तात्पर्य भूत मजबूत, इस दीक्षा के प्रभाव से व्यक्ति अत्यन्त ही बलिष्ट, पौरूषवान, ऊर्जावान, चतुर, निडर बनने के साथ ही सरल, उदार, सभी का प्रिय बन जाता है। प्रत्येक प्रकार की मुसीबत से निदान मिलता है और कठिन से कठिन कार्य भी चुटकियों में हल होता है।
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