पहले के समय में जहाँ माता-पिता की आज्ञा सर्वोपरि माना जाता था, वहीं आज के युग में वृद्धा आश्रम तक मनुष्य पहुँच गया है अर्थात् माता पिता के उपकार को वर्तमान समाज पूरी तरह नकारने की ओर बढ़ रहा है।
व्यक्ति इतना अधिक स्वार्थी, धूर्त हो गया है कि वह स्वयं के स्वार्थ सिद्धि के लिये अर्नगल क्रियायें करने को तैयार रहता है। वर्तमान गृहस्थ जीवन में अनेक प्रकार की कलुषमय स्थितियाँ निर्मित होती हैं। जिसका मुख्य कारण एक-दूसरे के प्रति समर्पण भाव में न्यूनता ही है। पति-पत्नी के बीच राम-सीता जैसे भाव, विचार मुश्किल से ही देखने मिलते है और न ही राम-भरत जैसे भाईयों के प्रति प्रेम देखने को मिलता है।
ऐसे में आवश्यक है कि पारिवारिक, सामाजिक सौहार्द बना रहे, आपसी प्रेम, भाईचारे में वृद्धि हो, इस हेतु हम उचित उपाय और धर्म के अनुकूल अपने सिद्धान्तों को विकसित करें व जिस प्रकार भगवान श्रीराम व माता सीता ने अपने जीवन में विजय पूर्ण स्थितियाँ प्राप्त की, उसी तरह हम भी जीवन की रावण रूपी बाधाओं का शमन कर पुरूषोत्तममय शक्ति से आपूरित हो सकें।
पारिवारिक जीवन को महाविनाश के गर्त से बचाने के लिये आवश्यक है कि श्रीराम-जानकी अखण्ड सौभाग्य पुरूषोत्तम शक्ति दीक्षा ग्रहण करें। जिससे व्यक्ति भगवान श्री राम के पौरूषार्थमय चेतना से आपूरित हो कर उनके चरित्र, गुण, मर्यादा, आदर्श, कर्त्तव्य पालन, धर्म, संस्कृति, मानवीय मूल्यमय पूर्णत्व स्वरूप सुक्रियाओं से युक्त होंगे व वहीं दूसरी ओर साधिकाएं माता सीता जैसी त्यागी, शीलवान, सत्तीत्व, सहनशील, धैर्य, पतिव्रता, शक्ति सम्पन्न, उत्तम गृहिणी, ओजस्वी जननी के सद्गुणों का समावेश कर समस्त गृहस्थ सुखों का निर्वहन करती है।
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