प्रेम तो एक उत्फुल्ल सुवास है, एक सुगन्ध है, प्रेम तो एक छन-छन बहता हुआ झरना है, जिसके नीचे स्नान करने से पूरे तन-मन को मस्ती की हिलोर सी आकर के एक फुहार सी पड़कर के भिगो देती है।
प्रेम एक ऐसी पुरवाई है, जिसके स्पर्श से ही एक अजीब खुमारी आ जाती है, शरीर के तार-तार झंकृत हो जाते हैं, पूरा शरीर नृत्य करने लग जाता है।
केवल किसी मंत्र की साधना और आँखे बन्द करके पालथी मार कर बैठना ही जीवन की श्रेष्ठता नहीं है। जीवन की श्रेष्ठता तो जीवन को परितृप्त कर देने में है और यह आनन्द, यह मस्ती, यह पूर्णता, यह श्रेष्ठता और जीवन का यह सौन्दर्य तो प्रेम में ही है।
तालाब का जल अगर स्थिर है, तो उसमें सड़ांध आ जायेगी क्योंकि उसमें गति नहीं है, उसमें चंचलता नहीं है, इसलिये मैं तुम्हें तालाब नहीं बनाना चाहता, मैं तो तुम्हें छलकती हुई प्रेम की नदी बना देना चाहता हूँ।
जीवन में सब कुछ प्राप्त हो सकता है- ज्ञानश्चेतना, सुख-सौभाग्य, आनन्द, मस्ती, भौतिक सुविधायें, मगर तब भी यह जरूरी नहीं, कि प्रेम प्राप्त हो ही।
इसीलिये मैं कहता हूँ कि तुम नदी बन जाओ, क्योंकि प्रेम की कल्पना, प्रेम की भावना नदी जानती है। नदी इस बात को नहीं जानती के यह पहाड़ है, पत्थर है, चट्टान है, वह तो बस आगे की ओर गतिशील रहती है उसका लक्ष्य, उसका चिन्तन, उसकी धारणा एक ही है कि मुझे उस समुद्र में जाकर लीन हो जाना है।
मैं तुम्हें आनन्द में छलांग लगाने की क्रिया सिखा रहा हूँ मैं तुम्हें उस महासमुद्र में छलांग लगाकर लहर बनने की क्रिया बता रहा हूँ, जिससे तुम गुरू से आत्म साक्षात्कार कर सको, इष्ट में लीन हो सको, …और यही प्रेम की पूर्णता है।
और जिस समय तुम पूर्ण लीन होना चाहो, अपने गुरू में एकाकार होना चाहो… उस समय मेरे साथ लहर बनकर बहो, प्रेम की परिभाषा सीखो… और तब तुम्हारे जीवन में एक मस्ती की हिलोर आ सकेगी, तुम पहली बार एहसास कर सकोगे कि जीवन का सर्वोत्तम चेतना और आनन्द प्रेम ही है।
परन्तु गुरू से प्रेम का यह रास्ता इतना आसान नहीं है, यह तो तलवार की धार है जिस पर चलने से पैर लहुलूहान हो जाते हैं। यह ऐसी पगडण्डी नहीं है जिसके नीचे पुष्प बिछे हों… प्रेम करना तो बहुत कठिन है, तकलीफ दायक है। पूर्ण हृदय से प्रेम करने की क्रिया बिरले को ही आ पाती है।
मैंने अपने इष्ट से प्रेम किया है, अपने गुरू से प्रेम किया है, ईश्वर से प्रेम किया है, मैने उस प्रेम के आनन्द को अनुभव किया है और मैं उस आनन्द को तुम्हारे अन्दर भर देना चाहता हूँ। मैं तुम्हें ठूंठ नहीं, एक मुस्कुराता हुआ शिष्य बनाना चाहता हूँ जो प्रेम से सरोबार हो।
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