एरंडी का तेल एक निरापद रेचक होता है। कोष्ठशुद्धि के लिए यह एक परमोपयोगी औषधि तथा साथ ही यह उत्तम वात-शामक औषधि है। वात-प्रकोप से उत्पन्न कब्ज में तथा वात-व्याधियों में कम मात्रा में इसका उपयोग औषधि के रूप में भी कर सकते हैं। औषधि-कर्म के साथ ही यह पोषण का भी कार्य करता है।
एरंडी तेल के अंजन से नेत्रों में जलस्राव होता है, इसलिए इसे नेत्र-विरेचक कहते हैं। 2 बूंद एरंड तेल को नेत्रों में डालने से नेत्र विकारों का शमन होता है, कुकूणक रोग में उसकी तीक्ष्णता भी कम होती है। एरंड-पत्तों को जौ के आटे के साथ पीसकर, पुल्टिस बनाकर आँखों पर बांधने से पित्त के कारण जो सूजन होता है वह कम होने लगता है।
एरंड के बीजों की मींगी पीसकर, चार गुना गाय के दूध में पकाएं, जब खोवा (मावा) की तरह हो जाए तो उसमें 2 भाग खांड़ मिलाकर या चीनी की चाशनी मिलाकर अवलेह बना लें। प्रतिदिन 10 ग्राम खाने से पेट की बीमारी से राहत मिलती है।
जीर्ण उदर-वेदना में रोज रात्रि को सोने से पूर्व समय 200 मिली गुनगुने जल में एक नींबू का रस तथा 5-10 बूंद एरंड तेल डाल कर पीने से जीर्ण उदर-शूल में लाभ होता है।
अरंडी के पत्तों का रस नित्य 2-3 बार बच्चे की गुदा में लगाने से उदरात्र कृमि (चुन्ने) मर जाते हैं। कृमि को नष्ट करने के लिए अरंडी के पत्तों के रस का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है।
गर्भवती स्त्री को यदि कामला हो जाये और शुरूआती अवस्था हो तो, 5-10 मिली एरंड पत्र-स्वरस को प्रात काल पांच दिन तक पिलाने से कामला में लाभ होता है तथा सूजन भी दूर हो जाती है।
5 मिली एरंड पत्र-स्वरस में 500 मिग्रा पीपल का चूर्ण मिला के नस्य देने से या अंजन करने से कामला में लाभ होता है।
6 मिली एरण्ड मूल स्वरस में 250 मिली दूध मिलाकर पिलाने से कामला में लाभ होता है।
20-30 मिली एरण्ड मूल-क्वाथ में 2 चम्मच मधु मिलाकर पिलाने से कामला में लाभ होता है।
10 ग्राम एरंड बीज गिरी को दूध में पकाकर, खीर बनाकर खिलाने से गृध्रसी, कटिशूल तथा आमवात में लाभ होता है एवं कोष्ठबद्धता से राहत मिलती है।
एरंड और मेंहदी के पत्तों को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से वातज वेदना का शमन होता है।
10 मिली एरण्ड तेल को एक गिलास दूध के साथ सेवन करने से वातरक्त में लाभ होता है।
एरंड के बीजों को पीसकर जोड़ों में लेप करने से छोटी सन्धियों और गठिया की सूजन मिटती है।
कटिशूल, गृध्रसी, पार्श्वशूल, हृदय-शूल, कफजशूल, आमवात और सन्धिशोथ, इन सब रोगों में 10 ग्राम एरंड मूल और 5 ग्राम सोंठ चूर्ण का क्वाथ बना कर सेवन करना चाहिये तथा वेदना स्थल पर एरंड तेल की मालिश करनी चाहिये।
इस रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही अरंडी का तेल 5 से 10 मिली की मात्रा में प्रतिदिन देने से सर्जरी की आवश्यकता नहीं रहती।
कील मुंहासों का कारण अधिकतर पित्त या कफ दोष का असंतुलन माना जाता है। ऐसे में एरंड में कफ शामक एवं कषाय गुण होने के कारण यह इस अवस्था में लाभ पहुँचाता है चुकी यह एक तेल है इसलिये इसकी मात्रा कम लेनी चाहिये।
एरंड के तेल के स्निग्ध गुण के कारण झाइयों को दूर रखने में भी मदद मिल सकती है। दाग- धब्बों और झाइयों से राहत पाने के लिये एरण्ड के तेल का इस्तेमाल फायदेमंद साबित होता है।
30-50 मिली एरण्ड पत्र-स्वरस पिलाकर वमन कराने से सर्पदंश तथा वृश्चिकदंशजन्य दाह, वेदना आदि विषाक्त प्रभावों का शमन होता है।
एरण्ड के 10-15 ग्राम फलों को पीस-छानकर पिलाने से अफीम का विष उतरता है।
मनुष्य प्राचीन काल से ही अरंडी के तेल का उपयोग इसके मॉइस्चराइजिंग प्रभाव, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण करता रहा है। जब लोग गठिया और नेत्र रोगों के इलाज के लिये इसका उपयोग करते हैं तो इस तेल ने सकारात्मक प्रभाव दिखाया है। साथ ही, यह घाव भरने और कब्ज से राहत दिलाने में भी मदद करता है। एक उत्तेजक रेचक के रूप में, अरंडी का तेल कब्ज से राहत देने और प्रसव पीड़ा को प्रेरित करने में मदद करता है। आज, अरंडी स्थानीय और ऑनलाइन स्टोर पर शुद्ध उत्पाद या मीठे बादाम और नारियल तेल सहित कई तेलों के मिश्रण के रूप में उपलब्ध है। फिर भी, स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञ किसी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता की सावधानीपूर्वक निगरानी में अरंडी के तेल का सेवन करने की सलाह देते हैं क्योंकि इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं। साथ ही, गुणवत्तापूर्ण अरंडी के तेल-आधारित बाल और त्वचा देखभाल उत्पादों का उपयोग करने से आपको इसके पूर्ण लाभों का आनंद लेने में मदद मिलेगी।
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