छठें दिन की शक्ति कात्यायिनी है। इनके पूजन आराधना से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है और श्राप और वरदान देने की क्षमता विकसित होती है। सातवें दिन की शक्ति है कालरात्री। इनके ध्यान आराधना से सहस्रार चक्र जाग्रत होता है और अहं ब्रह्मास्मि का भाव प्राप्त होता है। आठवें दिन की शक्ति महागौरी है। ऊर्ध्वकुण्डलीनी में इनके ध्यान करने से उज्जवलता, शुभता और दिव्यता का भाव जाग्रत होता है। नौवें दिन की शक्ति सिद्धिदात्री है, इनका ध्यान निर्वाण चक्र में करने से समस्त सिद्धियां व मोक्ष की प्राप्ति होती है और जिससे वह स्वयं जितेंद्रिय एवं नवशक्तियों से परिपूर्ण हो शक्तिस्वरूप बन जाता है।
प्रत्येक मांगलिक पूजा यज्ञ आदि कार्य के प्रारंभ में कलश स्थापन किया जाता है। यह कलश शुभ मंगल शांति ऋद्धि-सिद्धि, चेतना और देवता का प्रतीक स्वरूप होता है। कलश को कुम्भ, घट आदि नाम से नामित किया गया है। कलश के मुख में विष्णु, कंठ में भगवान रूद्र, अधोभाग में ब्रह्मा, मध्य में अष्टादश मातृगण, कुक्षी में स्पत सागर, सप्तद्विप सम्पूर्ण पृथ्वी और उदर में सभी तीर्थों का अवस्थान माना गया है। ऐसे मांगलिक घट में श्रद्धा विश्वास के साथ इष्ट देवता का ध्यान, आवाहन, पूजन सम्पन्न किया जाता है।
07 अक्टूबर को प्रातः 05:00 बजे स्नान आदि से निवृत होकर लाल पीला वस्त्र पहनकर पूजा स्थान में बैठे। सर्व प्रथम पूजा स्थान में लकड़ी के बाजोट के ऊपर सफेद कपड़ा बिछाकर रंगोली या कुंकुम से अष्टदल पद्म बनाये। शुद्ध जल में धोया हुआ कलश लेकर, उस कलश के ऊपर कुंकुम से स्वास्तिक बनायें, कलश में मौली धागा बांधे और गंगा जल, शुद्ध जल, अक्षत, पुष्प, सुपारी, सिक्का स्थापन करें। फिर आम, अशोक आदि का पत्ता रख कर लाल कपड़े में बंधा हुआ नारयल स्थापित करें अब उस कलश के ऊपर स्थापन करें। कलश की ओर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंहकर बैठें-
बायें हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र पाठ करते हुये दायें हाथ से पूरे शरीर पर छिड़कें।
ऊॅं अपवित्रः पवित्रे वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहृाभ्यन्तरः शुचिः।।
अक्षत और पुष्प आसन के निचे रखें।
ऊॅं पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरू चासनम्।।
कुंकुम से अपने ललाट में तिलक करें, दीपक प्रज्वलीत करें, अगरबती जलायें और दीपक का कुंकुंम, पुष्प और अक्षत से पूजन करें। हाथ जोड़कर गणपति स्मरण करें-
ऊॅं श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः। मातापितृचरण्रकमलेभ्यो नमः।
इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। ग्रामदेवताभ्यो
नमः। स्थानदेवताभ्यो नमः। वास्तुदेवताभ्यो नमः। सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः। ऊॅं
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
संकल्प- दायें हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊॅं विष्णु र्विष्णु र्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णेराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्वेत वाराहकल्पे जम्बू द्वीपे। भारतवर्षे (अपना गांव, जिला का नाम उच्चारण करें) संवत् 2078 आश्विन मासि नवरात्रि समये शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ अमुक वासरे (वार का उच्चारण करें), निखिल गोत्रेत्पन्न, अमुकदेव शर्मा (अपना नाम उच्चारण करें) अहम, मम सपरिवारस्य तंत्रबाधादि सर्वबाधा निवारणार्थं, धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्बिध पुरूषार्थ सिध्यर्थं, शृति-स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं, अभीष्ट सिध्यर्थं, श्री गुरू कुलदेवता इष्टदेवता प्रीत्यर्थं, श्री नवदुर्गा ललिता सिद्धिदात्री महानवमी शक्ति चेतना प्रात्यर्थं, अदय नवरात्री प्रथम दिवसे घटस्थापन पूजन कर्माहम करिष्ये। (जल भुमि पर छोड़ दें)
पुष्प्, अक्षत लेकर हाथ जोड़कर देवताओं का आवाहन करें-
ऊॅं श्रीमन महागणाधिपतये नमः, गणपतिं आवाहयामि,
गणपतिं इहागच्छः इहतिष्ठः, मम पूजा गृहाण।
ऊॅं बं वरुणाय नमः, ऊॅं आदित्यादि नवग्रहेभ्यो नमः,
ऊॅं इन्द्रादि दश दिगपालेभ्यो नमः, ऊॅं ग्रामदेवतायै नमः,
एता देवता आवाहयामि, ऐता देवता इहागच्छः इहतिष्ठः, मम पूजा गृहाण।
(अक्षत,पुष्प कलश में अर्पित करें)
ऊॅं गणपत्यादि आवाहित देवताभ्यो नमः।
यथा विभागं आसनं-गन्धं-पुष्पं समर्पयामी।
धुपं-दीपं दर्शयामी। अमृत-नैवेद्यं निवेदयामी।
आचमनियं-जलं समर्पयामी।
अक्षतं समर्पयामी नमो नमः
अब संक्षिप्त गुरू पूजन करके गुरू मंत्र एक माला जप करें।
हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र 11 बार उच्चारण कर कलश में अर्पित करें- ऊॅं भं भैरवाय नमः।
हाथ में पुष्प् लेकर जगदम्बा का ध्यान आवाहन पूजन करें, कलश पर पुष्प चढ़ायें
बालार्क मण्डला भाषां चतुर्वाहु त्रिलोचनाम्।
पाशांकुशः शराश्चापं धारयन्तिं शिवां भजे।।
(पुष्प् अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। आवाहयामि, जगदम्बे इहागच्छः इहतिष्ठः, मम पूजा गृहाण।
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। पुष्पासनं समर्पयामी।
(पुष्प् अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। पाद्यं समर्पयामी।
(जल अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। अर्घ्यं समर्पयामी।
(जल अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। आचमनियं समर्पयामी।
(जल अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। स्नानियं समर्पयामी।
(जल अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। वस्त्रं-उपवस्त्रं समर्पयामी।
(मौली का 2 धागा अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। यज्ञोपवीतं समर्पयामी।
(जनेउ अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। चन्दन समर्पयामी।
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। सिन्दुरं समर्पयामी।
(चन्दन, सिन्दुर अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। पुष्पाणि समर्पयामी।
(पुष्प् अर्पित करें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। धुपं समर्पयामी।
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। दीपं समर्पयामी।
(अगरबत्ती, दीपक दिखायें)
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। अमृत नैवेद्यं समर्पयामी।
ऊॅं भगवती जगदम्बायै नमः। आचमनियं समर्पयामी।
(भोग अर्पित करें पांच आचमन जल अर्पित करें)
ऊँ भगवती जगदम्बायै नमः,
सपरिवारायै सायुधायै सवाहनायै सशक्तिकायै सभैरावायै
गंध, पुष्पं, धुपं, दीपु, नैवेद्यं, अक्षतान् समर्पयामी
निम्न मंत्र का 10 बार जप करें-
ऊॅं नारायणै विद्महे भगवतै धिमही तनो दुर्गा प्रचोदयात।
जगदम्बा आरती, गुरू आरती सम्पन्न करें।
हाथ में पुष्प लेकर क्षमा प्रार्थना करें-
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरणये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
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