हम सबका जीवन कहानियों सरीखा होता है। हर कहानियों में फीके और गाढ़े रंग हैं। उदासी और उत्साह के रंग, खुशी, निराशा और कुंठा का चहकते हुये क्रिया से ही जिंदगी आगे बढ़ती है, और जिंदगी के कैनवास की रेखायें अलग-अलग आकार लेने लगती हैं।
बस एक फर्क होता है-कुछ लोग जिंदगी में आयी मुश्किलों से टूट जाते हैं, उनसे हार जाते हैं और कुछ इसे चुनौती मानते हुये दिक्कतों की आंखों में आंखें डालते हुये मुस्कुराते हैं तथा मैदान में और मजबूती से डट जाते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दृढ़ इच्छाशक्ति के जरिये वह जीतते हैं। उदाहरण बनते हैं, हम सभी के लिये दुनिया ऐसी कहानियों से भरी पड़ी है। हमारे ही इर्द-गिर्द न जाने कितने ही ऐसे लोग होंगे, जिन पर आपने मुसीबतों का पहाड़ टूटते देखा होगा, मदद के दरवाजे बंद होते देखे होंगे, लेकिन क्या मजाल उनके जीवन में कोई खरोंच पड़ जाये। दरअसल दुनिया को ऐसे ही लोगों ने गढ़ा है, ऐसे ही लोगों ने जिंदगी को ज्यादा मायनेदार बनाया है।
अच्छे काम के लिये धन की कम आवश्यकता पड़ती है, पर अच्छे हृदय और संकल्प की अधिक। एक गांव का मामूली किशोर नाम का लड़का था उसे खेतों में काम करना पड़ता था। ज्यादा पढ़ाई-लिखाई नहीं हो सकी थीं मशीनों में खास रूचि थी, जबकि पिता को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। 12-13 साल की उम्र में गांव का सबसे बढि़या घड़ीसाज बन गया। पिता से अनबन ज्यादा रहने लागी, तो वह खाली हाथ शहर आ गया।
एक फैक्ट्री में सहायक मैकेनिक की नौकरी मिल गयी। पैसे बहुत मामूली थे। दिन भर फैक्ट्री में काम करते और रात भर मशीनों पर ठोका-पीटी करते। सारे पैसे मशीनों के लिये सामान खरीदने में खर्च कर देता। वैसे उसको उस जमाने में बहुत कम पैसे मिलते थे। पत्नी भी उसके इस रंग-ढंग से परेशान हो गई। उनके घर से रात में जिस तरह से ठोका-पीटी की आवाजें आती, तो लोग उसे पागल समझने लगे। कोई उससे बात करना पसंद नहीं करता था। कोई कुछ भी समझता रहे, पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। अजीब से दिन थे ये उसके, दिन-रात जमकर काम करने के चलते स्वास्थ्य खराब रहने लगा। जब वह अपनी खुद की मोटर बनाने पर काम करने लगे, तो नौकरी भी छूट गई। कुल मिलाकर न तो उन्हे पिता पसंद करते थे, न पड़ोसी और न फैक्ट्री में सहयोगी। सभी को लगता था कि उसके दिमाग का स्क्रू ढीला है। कई साल वे यूं ही तिरस्कार में जीते रहे। फैक्ट्री में उनके हुनर की तारीफ तो होती थी, लेकिन हर किसी की शिकायत थी कि वह न जाने कहां खोया रहता है। वह अपनी ही धुन में मस्त रहता था।
उसकी जिंदगी उस कमरे में सिमटती जा रही थी, जिसे उसका वर्कशाप कहना ज्यादा ठीक होगा। उसको सबने कहा कि क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रहे हो, मशीनों के साथ ज्यादा पागलपन छोड़ो, क्योंकि इससे उन्हें कोई फायदा तो हो नहीं रहा था, अगर इसी तरह की मेहनत व अपने कारखाने में करते तो अच्छी-खासी तरक्की होती। पर हालात उल्टे ही थे, लेकिन कोई उन्हें डिगा नहीं पाया। आर्थिक तंगहाली भी नहीं। शुक्र है कि इन हालात में उनकी पत्नी ने उनका भरपूर साथ दिया। फिर एक दिन वो आया, जब उन्होंने एक मोटर बनाई, उसे दौड़ाकर भी दिखाया। बस ये उनकी जिंदगी का टर्निग प्वाइंट था, यहां से सब कुछ बदल गया। उन्होंने दुनिया की सबसे सस्ती कारें बनाई। हर कोई इसे खरीद सकता था। बाद में उन्होंने दुनिया भर के उद्योगों को ऑटोमेशन का मंत्र भी दिया। जब उनकी मृत्यु हुई, तो उस समय तक वे दुनिया के सबसे शोहरतमंद और धनी शख्स थे। कहा जाता है कि उनके इरादे लौहपुरूष की तरह पक्के थे।
एक बार फिर साबित हुआ कि जो खराब हालात में धैर्य और खुदी को बुलंद रखता है, उसके रास्ते से बाधायें हटती ही हैं, बेशक देर लग जाये। अगर पत्थर पर लगातार रस्सी की रगड़ से निशान उभर आते हैं। तो अकूत संभावनाओं से भरी इस दुनिया में क्या नहीं हो सकता? जहां सभी के लिये पर्याप्त अवसर और पर्याप्त रास्ते हैं, अक्सर हम बाधाओं से तब टकराते रहते हैं, जब सही रास्ते की तलाश कर रहे होते हैं और सही रास्ता मिलने पर सफलता की ओर हमारे पैर खुद ही बढ़ने लगते हैं, लेकिन अक्सर इस तलाश में ही बहुत सारे लोग निराश हो जाते हैं, धैर्य खो देते हैं, और किस्मत को कोसने लगते हैं।
असंभव कुछ नहीं जब तक आप जिंदा हैं तब तक सब कुछ संभव हैं-असंभव कुछ नहीं। सफल लोगों की कहानियां हमें यही बताती हैं कि यदि सफल होना है तो संकल्प को मजबूत रखना होगा। एक सूत्र हमेशा याद रखिये-
अपेक्षाओं को दूर रखिये-अपनी अपेक्षाओं को कम करिये। ये भी तय है कि जिन्हें जल्दी और बगैर मेहनत के सफलता मिलती हैं। उन्हें वह उतनी ही जल्दी गंवा भी देते हैं। उनके लिये ये स्थायी नहीं हो पाती, क्योंकि सफलता तभी ठहरती है, जब आप में कुछ साबित करने के तत्व हों। सफल लोगों का ये कहना है कि अपेक्षाओं की गठरी को वे खुद से जितना दूर रखेगें उतना अच्छा रहेगा।
आप जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा मजबूत हैं अक्सर आपको लगता होगा या आप कभी-कभार सोचते होंगे कि आप इतना दबाव बर्दाश्त नहीं कर सकते। आपको लगता है कि आपने सब कुछ कर लिया, लेकिन हालात काबू से बाहर हैं। शायद इसका जवाब खुद से मांगिये- जवाब में आप खुद महसूस करेंगे कि आपने अपना सौ फीसदी नहीं दिया है। कसर कहीं है-कहां है वो भी आप खुद-ब-खुद अपने अंदर महसूस करेंगे। जब आप सौ फीसदी देने लगेंगे तो परिणाम अलग ढंग से सामने आयेगा। आप सबसे झूठ बोल सकते हैं, लेकिन अपने आप से नहीं। अतः अपने से ही पूछिये कि क्या आप वाकई खुद से संतुष्ट हैं? अगर आप सौ फीसदी हैं और वांछित परिणाम नहीं पा रहे हैं। तो भी हताश होने की जरूरत नहीं है।
अगर आप खुद से संतुष्ट हैं और आपको लग रहा है कि आप सौ फीसदी दे रहे हैं तो लगे रहिये-दरवाजा खुलेगा ही कभी-कभी दरवाजा जब ज्यादा मजबूती से बंद होता है या उस पर ज्यादा जंग लगी होती है तो खुलने में ज्यादा समय और मेहनत लगती है। अक्सर जीवन में हम भंवर में फंस जाते हैं। ऐसा लगता है कि संभावनाओं से भरे हुये सारे दरवाजे बंद होते जा रहे हैं (वास्तव में ऐसा होता नहीं हैं) वे अवसर रूपी दरवाजे होते हैं, जिनसे हम उम्मीद करते हैं। अक्सर ऐसी स्थिति पहले निराश करती है, फिर कुंठा देती है, और तन-मन को निराशाओं से भरने लगती है बिखराव शुरू हो जाता है। चरित्र बदलने लगता है, लेकिन कुछ लोग इन्हीं स्थितियों में मजबूत होते हैं और खराब समय को ही अपने जीवन को स्वर्णिम ढ़ग से रूपांतरित करने वाला समय बना देते हैं।
ध्यानचंद जिस पृष्ठभूमि से आये थे, उसमें खेल का कोई नामो निशान नहीं था। सेना में गये, तो एक खेल चुनना था, उन्होंने हॉकी चुनी। फिर दिन-रात एक करके हॉकी का अभ्यास किया। सुबह उठने से पहले लोग ध्यानचंद को मैदान पर अकेले गेंद के साथ ड्रिबलिंग करते देखते थे। चांदनी रात की रोशनी में अभ्यास कर रहे होते थे। उनके मन में बस यही विचार था कि ये खेल ही है, जो उन्हें आगे ले जा सकता है। दृढ़ इच्छाशक्ति ने संकल्प और समर्पण बढ़ाया। फिर दिनो दिन अभ्यास से ध्यानचंद अपनी बटालियन और सेना के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन गये। जब दृढ़ इच्छाशक्ति से आप खुद को पूरी तरह झोंक देते हैं, तो संपूर्णता की ओर भी बढ़ते हैं, ऐसा नहीं कि ध्यानचंद, सचिन और मैरी कॉम असाधारण बनकर पैदा हुये, लेकिन तीनों में एक बात सामान्य थी-लगन और इच्छाशक्ति, जिसने उन्हें भीड़ से निकालकर अलग खड़ा कर दिया। एक दिन में या कुछ हफ्रतों में कुछ भी नहीं बदलता, अगर लंबी सफलता चाहिये तो बगैर उम्मीद किये लंबे समय तक डटे रहना होता है। इच्छाशक्ति दरअसल एक ऐसी ऊर्जा है, जो आपके बिखरे हुये अनियंत्रित विचारों को एक दिशा व सही रास्ता देती है।
ढेरों उदाहरण हैं जो ये बताते हैं कि वाकयी हर साधक, शिष्य अपने आपको बदलने में सक्षम होता है, बशर्ते अगर वह खुद ऐसा करना चाहे तो आप खड़े हो जाइये, इरादों को मजबूत करिये और एक-एक कदम मजबूती से आगे बढ़ाना शुरू कर दीजिये। ये भूल जाइये कि कौन क्या सोचेगा और क्या कहेगा।
शोभा श्रीमाली
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