व्यक्ति ने कहा, आप देख सकते हैं, मैं लकड़हारा हूं। राजा ने कहा, हां मैं देख सकता हूं, लेकिन मैं आपके गुरु से मिलने आया हूं। उसने कहा, मेरे गुरु? मेरा कोई गुरु नहीं है। राजा ने सोचा कि यह कोई पागल आदमी लगता है। फिर भी पूछा कि यहां कोई आश्रम है? व्यक्ति ने उत्तर दिया शायद।
यह सुनकर राजा आगे बढ़ गया। आगे घने जंगल के बीच एक घरनुमा कुटिया में पहुंचा और उसने उसी लकड़हारे को वहां देखा, वह व्यक्ति सद्गुरु का वस्त्र पहन ध्यान की मुद्रा में बैठा था और बहुत तेजस्वी दिख रहा था। राजा ने उसके चेहरे की ओर देखा और पूछा, यह सब क्या हो रहा है? क्या आपका कोई जुडवां भाई है? उन्होंने कहा शायद। राजा ने बोला द्वार के निकट लकडि़यां काटने वाला कौन था ? व्यक्ति ने कहा- वह जो लकड़ी काट रहा था, वह लक्कड़हारा था।
यह सब सुनकर राजा बहुत संदेहास्पद में पड़ गया। फिर उस व्यक्ति ने कहा- परेशान मत हो, जब मैं लकड़ी काट रहा होता हूं, तब मैं किसी और कार्य के लिए जगह नहीं छोड़ता और जब मैं गुरु होता हूं तो मैं केवल और केवल गुरु होता हूं। आप दो व्यक्त्यिों से नहीं एक ही व्यक्ति से मिले जो सदा समग्र है। अगली बार शायद आप मुझे गाय चराते देखें तो मैं केवल चरवाहा हूं। मैं जो कुछ भी करता हूं, वही कृत्य हो जाता हूं- अपनी समग्रता में।
यह बोध कथा एक सद्गुरु की है, लेकिन वास्तव में ऐसे दिव्य सद्गुरु भारतवर्ष में हुये है, जो वास्तविक सद्गुरु तो थे ही साथ ही पूरी तन्मयता के साथ अपने-अपने कार्यों में तल्लीन भी हो जाते थे। कबीर जुलाहे थे, रविदास- चमड़े के जूते बनाते थे और ये दोनों अपने समय के महान सद्गुरु थे। ये सद्गुरु होते हुए भी ऐसे छोटे और निम्न कोटि के समझे जाने वाले कार्य करने में कोई संकोच नहीं करते थे। उनके शिष्यों को कभी-कभी अटपटा भी लगता था कि हमारे सद्गुरु ये किन कामों में लगे हैं? लेकिन सद्गुरुओं को ऐसे कार्य करने में कोई परेशानी न थी, उन्हें तो अपने कार्य में भगवत्ता के दर्शन होते थे। कबीर जो चादर बुनते थे, उनके लिए चादर खरीदने वाले सभी ग्राहक राम थे, भगवान थे।
आस्तिक के पास प्रमाण नहीं होता, आस्तिक स्वयं में प्रमाण है। इसलिए यदि आस्तिक के भावों को वास्तविक रूप से समझना चाहते हो तो तर्क से तुम उसको नहीं जान सकते। उसको जानने का एक ही रास्ता है और वह है सुवास का। किसी दिन किसी अन-अपेक्षित क्षण में वह तुम्हारे नथुनों के माध्यम तुम्हें भीतर तक सुवासित कर देगा, अन-अपेक्षित क्षण इसलिए कि तुम अपेक्षित क्षण में सुरक्षा के सारे इंतजाम कर लेते हो, संवेदनाशीलता बंद कर लेते हो और सुवासित होने के लिए, आस्तिक को जानने के लिए संवेदन- शील होना अनिवार्य है।
क्योंकि आस्तिक का वह फूल किसी और लोक का है, वह फूल अदृश्य है। उसकी सुवास अतिसूक्ष्म है, महासूक्ष्म है। यदि तुम संवेदनशील हो जाओगे तो ही थोड़ी सी झलक तुम्हें उसकी मिलेगी। उसकी रोशनी ऐसी नहीं है कि तुम्हारी आंखो को चका- चौंध से भर दे, उसकी रोशनी बहुत ही शीतल और निर्मल है। यदि तुम आंख बंद करके बैठ सकोगे आस्तिक के पास, तो ही तुम्हें उसकी रोशनी का आभास होगा। ये रोशनी आंखों से देखी जाने वाली रोशनी नहीं, उसकी रोशनी तो आंख बंद करके ध्यानस्थ अवस्था में ही जानी जा सकती है।
इसलिए सद्गुरु के सारे प्रयास, सारी चेष्टायें यही रहती हैं कि कैसे तुम्हारी आंखें खुल जायें, कैसे तुम्हारे तर्क की ज्वाला शांत कर दी जाये और तुम शांत भाव से एकान्तस्थ होकर कुछ क्षण चिंतन कर सको, जान सको और समझ सको कि तुम्हारे लिए, तुम्हारे जीवन में क्या आवश्यक है और तुम्हें कहां होना चाहिए, इस समय तुम कहां पर हो?
इसलिए सद्गुरु निरन्तर तुम्हें ठोकरे मारता रहता है, तुम्हें जगाने का हर संभव प्रयास करता है। जिस दिन तुम जाग जाओगे, जिस दिन तुम्हारी तन्द्रा अवस्था टूटेगी, उस दिन तुम्हें यह एहसास होगा कि तुमने अब तक जो किया वह सब तुम्हारे किसी काम का नहीं है, जीवन का बहुत बड़ा भाग व्यर्थ में निकल गया। तुम्हारे सामने ऐसा सत्य होगा जो तुम्हें अन्दर तक बदल देगा।
यह वर्ष भी अपनी पूर्णता की ओर है, एक बार फिर तुम्हारे सामने नई चुनौतियां, जिम्मेदारियों का बोझ होगा, जिसे ना चाहते हुए भी तुम ढ़ोने के लिए विवश होगे और किसी मोड़ पर हार कर, थक कर तुम स्वयं को, भाग्य को कोसते रहोगे, लेकिन स्पष्ट रूप से तुमसे एक बार फिर कहना चाहता हूं- उठो, खड़े हो, फिर प्रयास करो अपने कदमों पर चलने का, साधना के मार्ग पर, अध्यात्म के मार्ग पर, धर्म के मार्ग पर, निखिल पथ पर बढ़ने का, जो प्यास तुम्हारे आत्मा को है, वह इसी पथ पर पूरा होगा।
जीवन की झंझावतें चलती रहेंगी, संघर्ष चलता रहेगा, इन्हीं के बीच तुम्हें अपने जीवन का मार्ग, चेतना का मार्ग बनाना होगा, साधना, पूजा, तप, ध्यान का मार्ग बनाना होगा, पथरीले चट्टानों को काट कर रास्ता सुगम तुम्हें स्वयं बनाना है, तुम्हें अपनी जीवन ऊर्जा लगानी होगी। तुम एक कदम आगे बढ़ाओं मैं तुम्हारे जीवन के प्रत्येक मोड़, दुख, बाधा में तुम्हारे साथ हूं, सद्गुरुदेव नारायण – माँ भगवती का वरदहस्त तुम्हारे साथ है, तुम्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है। केवल और केवल तुम आगे बढ़ने का साहस दिखाओ, आगे का रास्ता गुरु की चेतना शक्ति से तुम सरलता से पूरा कर सकोगे और तुम्हारा जीवन निखिलमय – सद्गुरुमय बन सकेगा।
।। कल्याण हो ।।
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