स्कन्द पुराण में वर्णित है कि- हे विष्णो! आप जब- जब, जो-जो अवतार स्वीकार करते हैं, तब-तब भगवती कमला अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ आपकी संगिनी स्वरूप में अवतरित होती हैं।
माता सीता सम्पूर्ण नारी जाति की श्रृंगार हैं, इनके जैसा त्यागी, शीलवान, सतीत्व शक्ति युक्त, सहनशील, धैर्य, पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली, सभी कर्तव्यों का निर्वहन करने वाली, ओजस्वी संतान की जननी, शक्ति सम्पन्न, गृहस्थ जीवन की सभी विधाओं में पारंगत अन्य कोई शक्ति स्वरूपा नहीं हो सकती।
जिस प्रकार शिव की शक्ति अन्नपूर्णा हैं और श्रीकृष्ण की शक्ति राधा, उसी प्रकार माता सीता श्रीराम की परात्परा शक्ति हैं। सीता शक्ति हैं और श्रीराम शक्तिमान हैं। श्री चण्डी में जो महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती रूप में असुर नाशिनी हैं, वही रामायण में असुरनाशिनी कालरात्रि हैं, रावण की सभा में हनुमान ने कहा था-
रावण! जिन्हें तुम सीता समझते हो, जो आज तुम्हारे घर में बंदी स्वरूप में स्थित हैं। उनके स्वरूप से तुम परिचित नहीं हो वे कालरात्रि ही सर्वलंका विनाशिनी हैं। भगवती सीता जैसी उच्च गुणों से युक्त, सुशील, सौन्दर्य के सभी अलंकारों से पूर्ण सर्वश्रेष्ठ चरित्र वाली स्त्री इस संसार में दूसरी कोई नहीं है। यह अलग तथ्य है कि राम को सामाजिक अपवाद के कारण लक्ष्मण के द्वारा सीता का त्याग करना पड़ा। लेकिन यह भी सत्य है कि जितना सीता राम के वियोग में दुखी, संतप्त थी राम भी उतने ही दुखी और संतप्त थे, फिर भी उन्हें परिवारिक, सामाजिक दवाब में सीता का त्याग करना पड़ा। सीता के वियोग में राम का हृदय हर क्षण तड़फता रहा। यही कारण था कि सीता के वाल्मिकी आश्रम जाने के बाद राम के चेहरे पर कभी भी प्रसन्नता का भाव ना आ पाया।
सीता सतीत्व तेज के साथ उच्चतम् चरित्र भूर्भवः स्वः सर्वव्यापिनी चैतन्य रूप में सभी स्त्रियों में व्याप्त हैं। वहीं राम सभी पुरुष में पुरुषोत्तम चेतना, मर्यादा, आदर्श, कर्तव्य पालन, धर्म, संस्कृति, मानवीय मूल्यों की रक्षत्व चेतना के रूप में विद्यमान हैं।
वर्तमान में गृहस्थ जीवन में जिस प्रकार कलुषमय स्थितियां दिखती हैं। उसका मुख्य कारण एक-दूसरे के प्रति समर्पण के भाव में न्यूनता ही है। पारिवारिक-सामाजिक अनेक स्थितियां ऐसी उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण घर ही कुरुक्षेत्र का मैदान बन जाता है। आज-कल तो पति-पत्नी के रिश्तों में निरन्तर मधुरता बनाये रखना दुष्कर होता जा रहा है। ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ताल-मेल बना पाना असंभव सा दिखता है। आज का व्यक्ति इतना अधिक, स्वार्थी, धूर्त हो गया है कि वह स्वयं के स्वार्थ सिद्धि के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। पति-पत्नी के मध्य राम-सीता जैसे भाव, विचार, मुश्किल से ही देखने को मिलते हैं और ना ही राम-भरत जैसा भाईयों के प्रति ऐसा प्रेम कहीं देखने को मिलता है।
अपने पारिवारिक जीवन को महाविनाश की गर्त से बचाने के लिये आवश्यक है, कि पुरुषोत्तममय चेतना शक्ति व्यक्ति के भीतर संचारित हो और वह परिवार की सभी जिम्मेदारियों में ताल-मेल बनाते हुए पारिवारिक मूल्यों की रक्षा कर सके। इसके साथ ही अपने संतान को सही दिशा प्रदान करने में सफल हो। ऐसा वही कर सकता है, जो स्वयं में पुरुषोत्तम ऊर्जा शक्ति से युक्त हो। वही व्यक्ति अपने जीवन में सभी कार्यों को पूर्णता से सम्पादित कर सकता है। भगवान राम की चेतना शक्ति धारण कर ही उनके आदर्श, चरित्र, गुण, मर्यादा को अपनाया जा सकता है और परिवार-समाज में पद, प्रतिष्ठा, पुरुषार्थ, विजय, बल, ओज, तेज से युक्त हो सकते हैं।
भगवान राम और माता सीता के समान जीवन प्राप्ति के लिए प्रत्येक साधक-साधिका को प्रयास करना चाहिये और वह प्रयास साधना मार्ग का अवलम्बन लेकर ही शीघ्रता से पूर्ण हो सकता है। इन दोनों महाशक्तियों की चेतना शक्ति स्वयं में धारण कर साधक-साधिका भौतिक और आध्यात्मिक दोनों में पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं।
इस साधना से साधक के भीतर पुरूषोत्तम शक्ति का संचार होता है और वह अपने जीवन में परिवार और समाज के मध्य सामंजस्य स्थापित कर परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का श्रेष्ठता से निर्वहन और पालन-पोषण करने की सभी क्रियाओं में पारंगत होता है। साथ ही जीवन की आसुरी शक्तियों युक्त बाधाओं, अड़चनों, परेशानियों पर विजय प्राप्त कर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो पाता है।
साथ ही इस साधना के माध्यम से साधिकायें शील स्वरूप सुहाग सौभाग्य तत्व की प्राप्ति कर पाती हैं और अविवाहित कन्यायें पुरूषोत्तम समान पति का वरण करने में सफलता प्राप्त करती हैं। इस साधना से स्त्रियां सौभाग्य लक्ष्मी तत्व से आपूरित होती हैं जिससे उन्हें आत्मिक प्रेम, स्नेह, सम्मान, श्रेष्ठ संतान सुख, धन-वैभव, ऐश्वर्य और सर्व गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है।
विवाह पंचमी के चेतनामय दिवस पर सभी साधक – साधिकाओं को यह साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए, जिससे उनके जीवन में भी राम-सीता युगल दम्पत्ति की तरह प्रेम, स्नेह, सम्मान, समर्पण, सामंजस्य आदि सुस्थितियों की प्राप्ति हो सके और वे अपने गृहस्थ जीवन का कुशलता पूर्वक निर्वहन कर सके।
विवाह पंचमी दिवस 12 दिसम्बर को प्रातः काल में स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ललाट पर सिन्दूर का तिलक लगायें। अब अपने सामने चावल की ढ़ेरी पर गृहस्थ सुख-सौभाग्य यंत्र स्थापित कर दें। यंत्र के सामने राम-जानकी चेतना शक्ति प्राप्ति जीवट एक ताम्रपात्र में रखें, पश्चात् जीवट का धूप, दीप, अक्षत, पुष्प से पूजन करें और जीवन में तीन महत्वपूर्ण सुख आरोग्यता, संतान सुख, सुहाग सौभाग्य प्राप्ति हेतु यंत्र पर कुंकुम से तीन बिन्दी लगायें।
अब अपने गृहस्थ जीवन के सभी कलह-क्लेश, मतभेद, अभाव, हीनता की पूर्ण समाप्ति और सर्व गृहस्थ सुख प्राप्ति हेतु संकल्प लेकर जल भूमि पर छोड़ दें। फिर पुरुषोत्तम शक्ति माला से निम्न मंत्र का पांच माला मंत्र जाप करें-
उक्त मंत्र जप के पश्चात् एक माला गुरु मंत्र का जप करें, फिर राम चालीसा का पाठ कर गुरु आरती करें। साधना पूर्ण होने पर सभी सामग्री किसी नदी, जलाशय अथवा व्यक्तिगत रूप से गुरुदेव से मिलकर उनके चरणों में अर्पित कर आशीर्वाद् प्राप्त करें।
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