पुरातन काल में, जब उच्चकोटि के ऋषियों ने यह निश्चय किया, कि जनमानस में दिव्यता और चेतना का विस्तार निरन्तर करते रहना होगा, तो उनके सामने मुख्य प्रश्न जो उठा, वह था, कि किस स्थान को आध्यात्मिकता का केन्द्र बनाया जाये ? ऐसा कौन सा प्रदेश है, जिसे आत्म ज्ञान का सर्वोच्च सोपान घोषित किया जाये ?
इस समस्या का समाधान किया सप्त ऋषियों ने, जिन्होंने अपने अनुभव के आधार पर एक चतुर्भुज स्थान का चयन किया, जिसके एक ओर शिव का धाम कैलाश मानसरोवर था, तो दूसरी ओर ब्रह्मा ताल एवं तीसरी ओर विष्णु तीर्थ था, चौथी ओर उच्च श्रेणी के देवों के स्थान से घिरा यह प्रदेश आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में चुना गया।
अब दूसरी कठिनाई जो सामने आई, वह थी निर्माण कार्य की। प्रदेश का चयन तो हो चुका था, परन्तु अब इस उच्चकोटि की योजना को ठोस रूप कौन दे ? मंत्रणा के बाद सभी ने एक स्वर से एक ही नाम का उच्चारण किया….और वह नाम था विश्वकर्मा का।
विश्वकर्मा, जो देवताओं के शिल्पकार हैं, जो सृष्टि में छोटे-मोटे रूप में ब्रह्मा के सहायक हैं और सही अर्थाँ में स्वयं ब्रह्मा के ही अंश हैं…और विश्वकर्मा ने अपनी कला के माध्यम से वहां एक दिव्य केन्द्र की संरचना की, एक अद्वितीय आश्रम की रचना की, एक स्वास्तिक के आकार की चैतन्य स्थली को मूर्त रूप प्रदान किया, जो कि बाद में ‘सिध्दाश्रम’ के नाम से पुकारा गया।
उस सिध्दाश्रम की विशेषता यह है, कि वहां न तो मृत्यु है, न ही शोक, भय, कोलाहल, घृणा, प्रतिस्पर्धा आदि। वह पूर्ण रूप से मानवीय पंच विकारों के प्रभाव से मुक्त है। वहां 24 घंटे निरन्तर एक आनन्द, एक मस्ती एवं आध्यात्मिकता का एक निर्झर बहता रहता है और यही स्थली आज भी आध्यात्मिकता का सर्वोच्च केन्द्र है।
यदि उच्चकोटि के ऋषि-मुनि विश्वकर्मा की सहायता प्राप्त करने को लालायित हुये, तो यह अपने आपमें ही विश्वकर्मा की सर्वोच्चता एवं अद्वितीयता का द्योतक है।
आज मानव जीवन चारों ओर से विभिन्न परेशानियों से जकड़ा हुआ है। व्यक्ति चाह कर भी इच्छित स्थिति को प्राप्त नहीं कर पाता और उसके द्वारा किये गये सभी प्रयास प्रायः विफल ही होते हैं। आज जब महंगाई आसमान को छु रही है, सामान्य मानव के लिये सुन्दर भवन, वाहन, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आदि मात्र कल्पना बन कर ही रह गये हैं। इसके अलावा व्यक्ति, चाहे वह किसी भी श्रेणी का हो, उसका जीवन, शोक, मोह, रोग, भय, ऋण, व्याधि आदि से घिरा रहता है, वह एक-एक पग आशंकित सा उठाता हुआ चलता रहता है और खुद हमेशा आनन्द से वंचित रहता है।
परन्तु यह मानव की नियती नहीं, कि वह इस प्रकार का चेतना शून्य जीवन जिये, इस प्रकार का पशुवत् जीवन जिये, क्योंकि उसके स्वयं के अन्दर दिव्यता का स्त्रोत स्थित है, जो उसे साधना मार्ग पर अग्रसर कर उसकी समस्त न्यूनताओं को समाप्त करने में सहायक हो सकता है एवं उसे सफलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचा सकता है।
जीवन की एक ऐसी ही अद्वितीय साधना है ‘विश्वकर्मा सप्तमणि साधना’, जो समस्त साधनाओं में अग्रणी है, जिसका कोई मुकाबला नहीं, क्योंकि जीवन में इस साधना से स्वतः ही प्राप्त होती हैं ये सात अनुपम स्थितियां-
यदि ऊपर बताई गई स्थितियां किसी के जीवन में उतर जायें, तो फिर व्यक्ति को और क्या चाहिये? वास्तव में ही यह साधना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है और यह अत्यधिक हर्ष का विषय है, कि पत्रिका के माध्यम से इसे प्रथम बार साधकों एवं प्रिय पाठकों के लाभ हेतु प्रस्तुत किया जा रहा है।
यह एक तांत्रिक साधना है, जो अत्यधिक तीव्र एवं शीघ्र प्रभाव देने वाली है। इसकी श्रेष्ठता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि कई बार तो साधक को साधना काल में ही अनुकूल अनुभव होने लगते हैं। इस एक दिवसीय साधना को किसी भी बुधवार को शुरू करना चाहिये। वैसे विश्वकर्मा जयन्ती को सम्पन्न करें, तो अत्यधिक सफलतादायक माना जाता है। इस साधना में निम्न सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती है-
1.विश्वकर्मा सृजन यंत्र 2.श्रष्ठत्व माला 3.सप्त मणियां
इन सभी सामग्रियों का अभिमंत्रित एवं चैतन्य होना आवश्यक है।
साधक को सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर, स्नान आदि से निवृत होकर, पीले वस्त्र धारण कर, पीले आसन पर उत्तराभिमुख होकर बैठ जाना चाहिये और फिर अपने सामने पीले वस्त्र से ढके बाजोट पर ‘विश्वकर्मा सृजन यंत्र’ को स्थापित कर उसका सामान्य पूजन सम्पन्न करना चाहिये।
इसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए एक-एक कर सप्त मणियों को यंत्र पर चढ़ायें-
OM FLOUM FLOUM PHAT
आखिरी मणि अर्पित करते समय यदि कोई इच्छा विशेष हो, तो उसका उच्चारण कर दें और फिर ‘श्रेष्ठत्व माला’ से निम्न मंत्र का ०५ माला मंत्र जप करें-
OM HLEEM FLOUM NAMAH
यह मंत्र देखने में भले ही छोटा है, पर यह अनुभूत प्रयोग है और आज तक असफल नहीं हुआ। जो व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न करता है उसे कुछ दिनों के भीतर ही अनुकूलता प्राप्त होती ही हैं।
यह साधना तीन दिनों तक निरन्तर करनी चाहिये। इसके उपरान्त समस्त पूजन सामग्री को किसी नदी या जलाशय में अर्पित कर देना चाहिये। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है।
निश्चय ही यह साधना वर्तमान काल की परेशानियों को देखते हुये वरदान स्वरूप है और जो व्यक्ति जीवन में सब प्रकार से आनन्द, सुख, समृद्धि, धन, यश, मान, प्रतिष्ठा का आकांक्षी है, उसे यह साधना सम्पन्न करनी ही चाहिये।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,