मत्स्यपुराण में वर्णित राजा मनु व उनकी पत्नी शतरूपा जिनकी रक्षा स्वयं भगवान विष्णु ने विशाल मत्स्य के रूप में की थी उन्हीं से ही अगले कल्प में मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई थी। इन दोनों पति-पत्नी के आचरण बहुत अच्छे थे, विष्णु जी के ये परम भक्त थे। वृद्ध होने पर अपनी समस्त जिम्मेदारियों का पूर्ण निर्वहन कर मनु अपने पुत्र को राजपाठ देकर वन में चले गये। वहीं जाकर मनु और शतरूपा ने कई हजार वर्षों तक भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिये कठोर तप किया। घोर तपस्या करने के लिये इन्होंने सिर्फ जल ग्रहण कर ही हजारों वर्ष व्यतीत किये। जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हुये और उनसे वरदान मांगने को कहा। मनु और शतरूपा ने कहा कि हमें आपके समान पुत्र की अभिलाषा है। उनकी इच्छा सुन श्री हरि ने कहा कि मैं स्वयं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। कुछ समय बाद आप अयोध्या के राजा दशरथ के रूप में जन्म लेंगे और शतरूपा माता कौशल्या के रूप में आपकी पत्नी होंगी, उसी समय मैं आपका पुत्र बनकर आपकी इच्छा पूरी करूंगा। इस प्रकार मनु और शतरूपा को दिये वरदान के अनुसार भगवान विष्णु ने त्रेता युग में चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी के दिन धरती पर मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम का अवतार लिया।
वहीं दशानन रावण ने शिव जी की घोर तपस्या कर वरदान प्राप्त किया था कि केवल एक मनुष्य ही उसका वध कर सकेगा, इसीलिये भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में समस्त मर्यादाओं का पालन करते हुये साधारण मनुष्य की भांति बिना किसी माया को प्रयोग में लिये सर्वशक्तिशाली रावण का वध किया था।
प्रभु श्री रामचन्द्र जी का जीवन अनेकों स्वरूप में ज्ञान व शिक्षाओं का उपनिषद रूपी महाकाव्य है, जिसमें राजा का प्रजा के प्रति, पत्नीव्रत, पिता-पुत्र, भाई व मित्र के आदर्शों के साथ धर्मनीति, राजनीति, कूटनीति, सत्य, त्याग, सेवा, प्रेम, क्षमा, परोपकार, दान, शौर्य आदि मूल्यों से युक्त आचरण हमें उनके जीवन से सीखने को मिलता है।
निधि श्रीमाली
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