गुरु गोरखनाथ ने तो होली के पर्व को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ तंत्र सिद्धि पर्व कहा है, उन्होंने तो यहां तक कहा है कि इस दिवस पर साधनायें अपना पूर्ण प्रभाव निश्चित रूप से छोड़ती हैं, अनेक साधनायें तो ऐसी होती हैं, जो केवल होली की रात्रि ही सम्पन्न की जाती है। चैतन्य जाग्रत साधक होली के तांत्रोक्त सिद्ध दिवस की महत्ता को समझते हैं और वे अपने गुरु के निर्देश अनुसार साधनाओं में अनुरक्त भी होते हैं। परन्तु तर्क-कुतर्क करने वाले अपनी अधिकांश ऊर्जा आलोचना और संदेह में गंवा देते हैं।
जिसके कारण वे ऐसे चैतन्य महापर्व को भी सामान्य रूप से व्यतीत कर देते हैं और जीवन में उसी सड़े-गले मार्ग पर गतिशील रहते हैं, जिस पर उनका जीवन नारकीयतामय होता है। वास्तव में तांत्रोक्त साधनायें ही सफलता से अधिक सम्बन्ध रखती हैं, क्योंकि उसके पीछे व्यक्ति की जूझने की प्रवृत्ति होती है, जिससे सफलता मिलने की सम्भावनायें प्रबल होती जाती हैं। अपने समस्त विरोधाभासों के बाद भी तंत्र की सर्वोच्चता निर्विवाद रूप से सत्य ही है और ऐसे चैतन्य पर्व पर, जब प्रकृति भी सहायक रूप में साधक के चारो ओर वातावरण में सिद्ध चेतनामय अणुओं का संचार करती हो, तो साधक को उसके परिश्रम का सौ गुना अधिक लाभ और प्रभाव प्राप्त होता है।
होली उल्लास और रंगों का पर्व है, ये रंग हमारे जीवन में स्थायी रूप से तभी घुल खिल सकते हैं, जब हम उन्हें आत्मसात करने के लिये क्रियात्मक रूप से सक्रिय हों। क्योंकि रंग-गुलाल उड़ाकर मस्ती की जा सकती है, परन्तु जीवन में सुनहरे रंगो का लेपन तब ही संभव हो पाता है जब साधक अपने गुरु के निर्देशानुसार साधनात्मक चेतना को आत्मसात करे। ऐसे ही साधनात्मक भाव को आत्मसात करने हेतु होली महापर्व पर आप एक-दो या अनेक साधनायें सम्पन्न कर अपने जीवन को सप्त रंगो से युक्त धन, कामना, सुख, सम्मोहन, सौन्दर्य से युक्त बना सकेंगे।
किसी भी त्यौहार को मनाने का सही अर्थ यही है कि सबसे पहले तो घर से धन हीनता को समाप्त किया जाये और सुख-सौभाग्य के क्षण आयें, इसके बिना न तो पर्व का कोई अर्थ है और न ही आगे की किसी साधना का। आज के भौतिकतावादी संसार में जीवन के सभी सुखद रंग का आधार भी तो धन ही है। धनहीनता जीवन के लिये अभिशाप के समान है, जिससे जीवन जीर्ण-शीर्ण युक्त बन जाता है। जीर्ण-शीर्ण अभिशाप युक्त जीवन में अनेक विसंगतियों का भार बढ़ता ही रहता है। मलिनता, अभाव, हीनता पर विजय के प्रतीक होली महापर्व पर इस साधना के द्वारा जीवन में व्याप्त धनहीनता को पूर्ण रूपेण समाप्त कर सौभाग्य शक्ति अक्षय धन नारायण लक्ष्मी से युक्त हो सकेंगे।
होलिका दहन की रात्रि में समय 8 बजे से 10 बजे के मध्य लघु मोती शंख को केसर से पूरी तरह रंग कर पीले चावलों की ढ़ेरी पर स्थापित कर मूंगे की माला से निम्न मंत्र की केवल एक माला मंत्र जप करना है। यह साधना अत्यन्त ही तीक्ष्ण और सम्पूर्ण रूप से धन हीनता, अभावों को समाप्त करने वाला है, सम्पन्न, वैभव युक्त साधकों के लिये यह और अत्यधिक अभिवृद्धि व धन वृद्धि कारक है।
मंत्र जप के उपरांत चावलों सहित मोती शंख तथा माला को होलिका अग्नि में विसर्जित कर दें, और घर आकर हाथ-पैर धोकर 10 मिनट सद्गुरुदेव का ध्यान करें।
होली पर्व को पाप मोचनी दिवस भी कहा जाता है, होली पर्व पर अनेक-अनेक साधक प्रत्येक वर्ष पाप-दोष निवारण साधना सम्पन्न करते हैं। सद्गुरुदेव नारायण सदा शिष्यों को पाप-दोषों के शमन हेतु साधनायें सम्पन्न करने का निर्देश देते रहें, जिससे साधक, शिष्य पूर्व के कर्मो से निवृत्त हो शीघ्र भौतिक-आध्यात्मिक जीवन में सफलता अर्जित कर सके। सद्गुरुदेव नारायण ने विशेष रूप से पाप मोचनी फेत्कारिणी साधना पर बल दिया है। जिसके द्वारा साधक अपने पूर्व जन्म के दोषो से मुक्त होता है और ऐसी क्रियायें सम्पन्न होने पर ही हमारे भाग्य पर लगी कालिमा साफ-स्वच्छ होती है तथा साधक सौभाग्य शक्ति से युक्त बन पाता है।
ऐसे व्यक्ति जो जीवन में अथक प्रयत्न करने पर भी सफल नहीं होते हैं अथवा किसी अन्य पीड़ा से युक्त हैं। उसका कारण पूर्वजन्म कृत दोष ही है। ऐसा भी नहीं है कि आपने पूर्व जन्म में केवल दोष युक्त कार्य ही किये हैं, लेकिन यदि इस जीवन में बार-बार बाधायें आ रही हैं तो निश्चय ही इसका स्त्रोत पूर्व जन्म से ही है।
होली दहन की रात्रि 07 बजे स्नान आदि से निवृत्त होकर पीला वस्त्र पहनें तथा पीले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें। सर्वप्रथम दोनों हाथ जोड़कर भगवान गणपति का स्मरण कर कुंकुम, पुष्प, अगरबत्ती, दीपक व प्रसाद आदि से पूजन करें, इसके पश्चात् गुरु पूजन सम्पन्न कर 02 माला गुरु मंत्र का जप करें। फिर अपने सामने तांबे की प्लेट में पाप-दोष निवारण यंत्र स्थापित करें। इस पर सिन्दूर की 7 बिन्दियां दाहिने हाथ की अनामिका से लगायें और फिर यंत्र का पूजन धूप, दीप एवं पुष्प से करें। इसके पश्चात् दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प बोलें कि मैं (अपना नाम) यह साधना गणपति व गुरुदेव को साक्षी मानकर अपने जीवन, घर, परिवार, व्यापार पर व्याप्त किसी भी तरह के पाप-दोष, बाधा निवारण के लिये कर रहा हूं। यह कहकर जल भूमि पर छोड़ दें। मूंगा माला से निम्नलिखित मंत्र का 05 माला जप करें।
मंत्र जप करने के पश्चात् पुनः गुरु मंत्र की 01 माला मंत्र जप करें। जप पूर्ण हो जाने पर सभी सामग्री होलिका दहन में विसर्जित कर दें।
समाज ऊपरी तौर पर भले ही सभ्य और आधुनिक कहा जाने लगा है, लेकिन अंदर ही अंदर जिस प्रकार से तीव्र घात-प्रत्याघात चलते हैं, उससे यही प्रतीत होता है कि मनुष्य के भीतर घोर वैमनस्यता भरी है। ऐसे में हमारे सम्मुख मूल समस्या, बाधा कहां से उत्पन्न हो रही है, इसका पता नहीं चल पाता है, और जीवन की स्थितियां भटकाव से भर जाती हैं। समस्या कुछ और ही होती है, समाधान कुछ और करते हैं, क्योंकि ऐसी गुप्त घात-प्रत्याघात में सीधे तौर पर ना कुछ मालूम पड़ता है, ना ही किसी को इसका जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। क्योंकि ये स्थितियां प्रमाणित करने वाली नहीं होती है। जिसके कारण हम सीधे तौर पर कुछ कर भी नहीं पाते हैं। यदि जीवन में कुछ भी ऐसा जो आकस्मिक विपत्तियों का कहर बनकर जीवन पर टूट पड़ा हो अथवा कोई भी ऐसी घटना जो सामान्य ना प्रतीत होती हो, तो निश्चय ही किसी उपद्रवी ने तंत्र प्रयोग किया है।
होली की रात्रि ऐसी साधनाओं द्वारा जहां एक ओर सुरक्षा-चक्र का निर्माण होता है, वहीं यदि कोई तांत्रिक प्रयोग, व्यापार बंधन, बुद्धि-स्तम्भन, गर्भ बंधन, भूत-प्रेत, पिशाची शक्तियो का प्रयोग करवाये गये हों अथवा कोई कर रहा हो तो वे प्रयोग पलट कर विपक्षी के पास लौट जाते हैं और जीवन बिना किसी बाधा, अड़चन के अपनी सद्मार्ग पर गतिशील रहता है। साधक दस बजे के बाद इस साधना में कभी भी बैठ सकता है। दस तांत्रोक्त फल लेकर भूमि पर रखें तथा प्रत्येक फल के आगे एक तेल का दीपक जला कर काली हकीक माला से निम्न मंत्र की 02 माला मंत्र जप करें-
साधना समाप्ति के दूसरे दिन सुबह सभी तांत्रोक्त फल व माला को कहीं सुनसान स्थान पर गहरा गड्ढ़ा खोद कर दबा दें। इससे व्यापार बंधन, स्तम्भन, तंत्र प्रयोग आदि से मुक्ति मिल जाती है।
होली की रात्रि तो सम्मोहन, वशीकरण, सौन्दर्य, यक्षिणी, अप्सरा साधनाओं की विशेष रात्रि है। यह दिवस इन साधनाओं को सम्पन्न करने के लिये सिद्धहस्त मुहूर्त माना जाता है और इनमें से कोई भी साधना सम्पन्न करे, उसमें अक्षुण्ण लाभ प्राप्त होता ही है। होली एक प्रकार से मधुर प्रेम के संचार का अवसर है और ऐसे में प्रेम-सम्बन्धी, विवाह सम्बन्धी या दाम्पत्य जीवन में मधुरता चिरस्थायित्व बनाये रखने की यह साधना आत्मिक सम्बन्धो को प्रगाढ़ता प्रदान करती है। यह केवल प्रेमी-प्रेमिका के सम्बन्धों को लेकर ही नहीं बल्कि विवाहित स्त्री-पुरुषों के लिये भी श्रेष्ठतम है, जिसके द्वारा जीवन में व्याप्त नीरसता और जड़ता का समूल रूप से नाश होता है। यह एक प्रकार से सम्मोहन वशीकरण की चेतना आत्मसात करने की साधना है, जिसे कोई भी सम्पन्न कर अपने व्यक्तित्व में सम्मोहन, आकर्षण, मधुरता आदि विशिष्ट गुणों से युक्त हो सकता है। यह साधना व्यापारी, कर्मचारी आदि के लिये भी आवश्यक फलप्रद है। सम्मोहन शक्ति प्रत्येक स्त्री-पुरुष की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है, क्योंकि इसके आधार पर ही सामाजिक, पारिवारिक जीवन पर हमारा प्रभाव निर्धारित होता है।
इस साधना के लिये आवश्यक है कि साधक पहले से एक शक्ति चक्र प्राप्त कर ले जो सम्मोहन मंत्रों से सिद्ध हो तथा स्फटिक माला से 2 माला मंत्र जप करें, यदि किसी को विशेष रूप से सम्मोहित करना हो, तो उसके नाम का संकल्प लेकर मंत्र जप प्रारम्भ करें-
यदि विवाहित दम्पत्ति में पति-पत्नी दोनों ही एक-दूसरे के लिये यह साधना सम्पन्न कर लें तो उनके जीवन में प्रगाढ़ मधुरता आ जाती है, इसके लिये उन्हें अलग-अलग दो शक्ति चक्र प्राप्त करने होंगे, यद्यपि माला का संयुक्त रूप से उपयोग कर सकते हैं। दूसरे दिन चक्र एवं माला को किसी आम या अशोक की जड़ में दबा दें, अथवा गुरु चरणों में अर्पित कर दें।
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