भौतिक संसार में लक्ष्मी की कामना-इच्छा और वरण करना अनिवार्य ही है, प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य क्षेत्र में लक्ष्मी प्राप्ति के लिये ही अग्रसर होता है, उसके साथ ही साधनात्मक रूप से लक्ष्मी की पूर्ण अनुकम्पा भी चाहिये, जिससे उसका कार्य रूके नहीं वह जो भी कार्य करें उससे अर्थ प्राप्ति अवश्य हो।
सद्गुरूदेव जी ने एक नवीन परम्परा स्थापित की, हर वर्ष दीपावली के शुभ अवसर पर शिष्यों को आवाहन किया कि जिस प्रकार बिछड़ा बालक दीपावली के दिन घर आने के लिये लालायित रहता है, प्रदेश में नौकरी व्यापार करने वाला ही यह इच्छा रखता है कि वह दीपावली के दिन अपने घर अवश्य पहुँचे।
सद्गुरूदेव जी ने एक बार अपने प्रवचन में कहा कि तुम शिष्य लोग अलग-अलग स्थानों पर नौकरी, व्यापार इत्यादि कर रहे हो। यह ठीक है लेकिन यह मत समझ लेना कि वो तुम्हारा घर है तुम्हारा घर तो गुरू गृह है और तुम सब मेरे बच्चे हो और दीपावली पर्व अपने बच्चों के साथ सम्पन्न करके ही मुझे प्रसन्नता होती है।
यह महान उदगार शाश्वत है और प्रत्येक शिष्य का कर्त्तव्य है कि वह धन त्रयोदशी, रूप चतुर्दशी और दीपावली गुरू गृह में सम्पन्न करे।
इस वर्ष 10-11-12 नवम्बर को आपको कैलाश सिद्धाश्रम, जोधपुर अवश्य ही आना है। गुरू परिवार के आप सदस्य हैं दीपावली पर्व केवल साधनात्मक शिविर अथवा उत्सव ही नहीं है अपितु इन दोनों से ऊपर एक महान दिवस है। जब परिवार के सारे सदस्य एक साथ बैठकर आनन्द मग्न होते हैं। उस अवसर पर मनुष्य तो क्या देवगण और भगवान भी साक्षात् पूर्ण आशीर्वाद प्रदान करते ही हैं।
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