भूतल पर समस्त प्राणियों में सब ओर सर्वदा मेरा ही दर्शन करना चाहिये, क्योंकि सम्पूर्ण लोकों में जो पदार्थ हैं, वे मुझसे रहित नहीं हैं। उन सबमें मेरी ही शक्ति सत्ता विद्यमान है। माँ भगवती स्वरूपा आद्या शक्ति ने स्वयं को इन्हीं शब्दों द्वारा शास्त्रों, पुराणों में वर्णित किया है। इन्हीं आद्या शक्ति में आस्था, विश्वास, प्रेम और भक्ति रख कर कोटि-कोटि जन नतमस्तक हो मन्त्रोच्चारण करते हैं-
शक्ति दर्शन- परा शक्ति से ही शब्द एवं वस्तुओं की उत्पत्ति हुई है। शक्ति के स्फूर्ति रूप धारण करने पर शिव ने उसमें तेजस रूप से प्रवेश किया, तब बिन्दु का प्रादुर्भाव हुआ जब शक्ति का शिव में प्रवेश हुआ तब स्त्री तत्त्व का नाद व्यक्त हुआ। ये ही दोनों तत्त्व-नाद-बिन्दु मिलकर अर्धनारीश्वर हुये। यही कामतत्त्व है। पुरुषत्त्व श्वेत एवं स्त्री तत्त्व लाल है। दोनों के संयोग से कला की उत्पत्ति हुई है। इस काम व कला के तथा नाद एवं बिन्दु के योग से सृष्टि उत्पन्न हुई। मूल तत्त्व अनन्त एवं अव्यक्त है। सृष्टि के प्रत्येक विकास में शिवत्व का आगम है। उन शिव की आद्या शक्ति ही प्रकृति रूपा हैं। शक्तिमान का आदि ड्डोत हिमालय पर शिव-शिवा रूप में विराजमान है। कहा गया है-
श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों ने जिसकी सराहना की है, जो सबका कल्याण करने वाली हैं, परम पवित्र तथा व्यावहारिक है, वही सनातन और यज्ञ मूलक शिव-शिवा काम शक्ति स्वरूप हैं।
इसका विस्तार हिमालय से कन्या कुमारी तक और सोमनाथ से कामाख्या तक 108 शक्ति पीठों, 52 महाशक्ति पीठों और द्वादश ज्योतिर्लिंगों के रूप में हजारों वर्षों से तेजस्वी चेतना के साथ विद्यमान है।
शक्तिपीठ- योग शास्त्र के मन्त्र योग संहिता में पीठ के सोलह भेद माने गये हैं। यथा, वह्नि, अम्बु लिंग, स्थण्डिल, कुड्य, पट, मण्डल, विशिख, नित्य यन्त्र, भावयन्त्र, पीठ, विग्रह, विभूति, नाभि, हृदय और मूर्धा। पीठ शब्द का अर्थ है तीर्थ, क्योंकि तीर्थों में विशेष शक्ति का आविर्भाव हुआ है।
वैदिक दर्शन शास्त्रों में लेख है जहां आकर्षण और विकर्षण शक्ति का समन्वय होता है, वहां पीठ की उत्पत्ति होती है। आकर्षण शक्ति रजोगुण व विकर्षण शक्ति तमोगुण प्रसूत है, दोनों का जहां समन्वय होता है, वहां ही सत्त्वगुण है और उसी सत्त्वगुण में धर्म की धारिका शक्ति का विकास होता है, इसी को शक्ति पीठ कहा जाता है। विभिन्न शक्ति पीठों में अनेक आध्यात्मिक विशेषताओं का वर्णन है। प्रत्येक पीठ का अलग-अलग संस्कार है।
यज्ञ मूलक वैदिक संस्कृति से आविर्भूत भारतवर्ष के विभिन्न स्थलों में अनेक शक्तिपीठों, तीर्थों और मन्दिरों से जुड़े व्याख्यान विभिन्न शास्त्रों, पुराणों में वर्णित हैं। एक सौ आठ शक्ति तीर्थों, बारह ज्योतिर्लिंगों और 52 शक्तिपीठों के विवरण विस्तार से देवी भागवत, पद्मपुराण, स्कन्द पुराण तथा तन्त्र चूड़ामणि आदि ग्रन्थों में उपलब्ध हैं।
52 शक्तिपीठों का व्याख्यान मूल रूप से यज्ञ से जुड़ा है। जो इस प्रकार है- दक्ष प्रजापति की कन्या महाशक्ति भगवती का आध्यात्मिक पाणिग्रहण महाशक्तिमान के साथ हुआ। महाशक्ति भगवती और महाशक्तिमान सदाशिव जगत के कल्याण के लिये ही आविर्भूत हुये।
शास्त्रों में कहा गया है- ब्रह्म का शिव रूपी चिदाभास जब अन्तः करण की बुद्धि रूपा महाशक्ति में प्रतिबिम्बित होता है, तभी जीव की उत्पत्ति होती हैं, वही जीव-संसृति महाप्रलय तक निरन्तर संसार चक्र चलाती है।
सृष्टि के कल्याणार्थ ही शक्ति और शक्तिमान का महामिलन हुआ। दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में शक्ति और शक्तिमान को आमन्त्रित नहीं किया गया, फिर भी देवर्षि नारद के परामर्श से महाशक्ति पितृ गृह गयी थीं। वहाँ यज्ञ में शक्तिमान को यज्ञ भाग की प्राप्ति न देख कर महाशक्ति भगवती ने पिता दक्ष प्रजापति को अभिशापित कर दिया और स्वयं योगाग्नि में समाहित हो गयीं। तीनों लोक कम्पित हो उठे। शक्तिमान सदाशिव शंकर ने महारौद्र रूप धारण कर महाशक्ति के छायातन (पार्थिव देह) को निज स्कन्धों पर उठा लिया। त्रैलोक कम्पित होने लगा। महारौद्र रूप धारी शक्तिमान् आकाश मार्ग पर उन्मत्त हो विचरण करने लगे। दुःखित देवों ने महाविष्णु से प्रार्थना की प्रभो! सदाशिव की इस प्रकार की स्थिति से संसृति-संचालन ही थम जायेगा। जगत के कल्याणार्थ कुछ भी कीजिये। प्रभो! महाविष्णु के आदेश से अमोघ शक्ति सम्पन्न सुदर्शन चक्र संचालित हुआ। उसने महाशक्ति के छायातन खण्डित करने की प्रक्रिया आरम्भ की। महाशक्ति के अंग एवं आभूषण खण्डित होकर पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ भी गिरे, वे सभी स्थान 52 महाशक्ति पीठ बन गये।
कामाख्या महाशक्ति पीठ यज्ञोत्सव-
कामगिरि पर्वत पर सती की पूजा कामाख्या शक्ति स्वरूप यज्ञोत्सव के रूप में सम्पन्न होती है, इस यज्ञ का सम्बन्ध वेदों की यज्ञ संस्कृति से है।
कामगिरि पर्वत पर शक्ति के छायातन से खण्डित होकर भगवती की मुख्यद्वार गिरी थी। यहाँ पर शक्ति पीठ की आराध्या देवी आद्या शक्ति भगवती कामाख्या हैं। कहा जाता है कि इस शक्ति पीठ में दीर्घकाल तक योगी गोरक्षनाथ के गुरु योगी मत्स्येन्द्रनाथ ने शक्ति साधना के द्वारा आदि शक्ति भगवती कामाख्या के दर्शन किये थे। देवी पुराण में कहा गया है-
देवीपुराण के 12 वें अध्याय में शक्तिमान सदाशिव शंकर के सती भगवती-वियोग की कथा वर्णित है। जीव संस्कृति के संवर्धन, पोषण और संरक्षण से उदासीन सदाशिव शंकर को महाविष्णु ने पुनः सती की प्राप्ति के लिये तपस्या का परामर्श दिया। त्रिदेवों ने एक साथ मिल कर कामगिरि पर्वत पर उसी स्थान पर तपस्या की, जहाँ सती का योनि द्वार गिरा था। आद्या शक्ति ने प्रकट होकर सदाशिव शंकर से कहा कि मैं गंगा तथा पार्वती के रूप में अवतीर्ण होकर दोनों रूपों में आप का वरण कर जीव संसृति को पुनः सुनियोजित करूँगी। कामरूप पीठ की महिमा तीर्थ, तप, धर्म ओर सभी कामनाओं की पूर्ति के साथ पूर्णता प्रदायक माना जाता है।
इस स्थान का सम्बन्ध सती भगवती के गुह्यभाग से है, जिसे पुत्रेष्टि यज्ञ के लिये शास्त्रों में परम आराध्य कहा गया है। इस प्रकार यह महाशक्ति पीठ मानव पोषण, वर्धन, संतान सुख का मुख्य काम शक्ति पीठ है।
कामाख्या शक्ति पीठ की सम्यक् उपासना से भगवती की कृपा शक्ति तथा ममतामयी वात्सल्य शक्ति से सांसारिक जीवन में भोग-विलास सहज प्राप्त होता है। इस धर्म क्षेत्र में जीव को उत्तम गति मिलती है। यहाँ ब्रह्मद्रव्य रूपा ब्रह्मपुत्र नदी है, जिसका जल लाल रंग का है। इसमें स्नान करने से ब्रह्म हत्या का दोष जलकर नष्ट हो जाता है। यहाँ भगवती देवी जी का नित्य वास है।
अर्थात् योनि साक्षात् भगवती हैं और लिंग साक्षात् शिव हैं। इन दोनों के पूजन से सभी देवताओं का पूजन हो जाता है।
जो भगरूप से सम्पूर्ण जगत की जननी हैं, सृष्टि स्थिति तथा लय स्वरूपा हैं, दस महाविद्याओं की आत्म रूपा हैं, वे योनि रूपा भगवती मेरी सभी मनोकामना पूर्ण करें। कामगिरी क्षेत्र की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं। इस शक्ति पीठ में काली तारा भुवनेश्वरी षोडशी भैरव छिन्नमस्ता बगलामुखी मातंगी महात्रिपुर सुन्दरी धूमावती दस महाविद्या स्वरूप में विद्यमान हैं।
इस स्थान की महिमा के एक अन्य व्याख्यान में कहा गया है कि देवताओं के कहने पर भगवान् शंकर जी की तपः साधना में कामदेव ने अवरोध उत्पन्न किया था। उस समय भगवान् शिवजी ने तृतीय नेत्र खोलकर कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। कुछ दिन बाद शिव-पार्वती के विवाह के मंगल प्रसंगों में कामदेव की पत्नी रति ने कामदेव के जन्म हेतु भगवान शिव के सामने कृपा का वरदान माँगा। भोले नाथ प्रसन्न हो गये और अपनी अमृतमयी दृष्टि से कामदेव की भस्म राशि पर दृष्टिपात कर कामदेव को प्रकट किया, परंतु उसमें तेज नहीं था। तेज प्राप्त करने के लिये शिव ने कामदेव से कहा कि पूर्व दिशा में नीलांचल पर्वत पर स्थित गुप्त पीठ पर भगवती की आराधना करो, इससे तुम्हें तेज प्राप्त हो जायेगा।
कामदेव ने इसी शक्ति पीठ पर भगवती की आराधना की जिससे कामदेव को पूर्ण स्वरूप प्राप्त हुआ। इसीलिये इस क्षेत्र को कामरूप के नाम से भी जाना जाता है और साधक इस स्थान पर भगवती की आराधना से सांसारिक जीवन में पौरूष शक्ति से आपूरित होते हैं, जिससे वे अपने जीवन के आवश्यक तत्वों को सरलता से प्राप्त कर पाते हैं व धर्म, अर्थ, काम व पूर्णता की ओर अग्रसर होते हैं।
यहाँ भगवती मन्दिर गुफा में स्थित है। इसी क्षेत्र में नरकासुर का राज्य था। यहाँ नरकासुर ने 16000 कन्याओं को बन्दी बना रखा था। श्रीकृष्ण ने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को नरकासुर का वध करके उन कन्याओं को मुक्त कराया ओर उनके साथ विवाह करके उनको प्रतिष्ठा प्रदान की। इसलिये यह क्षेत्र नारकीय जीवन की मुक्ति का अभिप्रायः भी माना जाता है। यहां पर आराधना, पूजन, स्तुति कर व्यक्ति अपने जीवन की नारकीय स्थितियों से निवृति होती है। कालिका पुराण और योगिनी तन्त्र में इस शक्तिपीठ का विस्तार से विशेष वर्णन आया है-
भक्तों की इच्छा पूरी करने वाली, शिव की प्रिया, भक्तों को भोग-योग और पूर्णता मुक्ति देने वाली कामाख्या देवी को साष्टांग प्रणाम है। कामाख्या शक्ति जीवन की रस साधना है, जिससे सांसारिक जीवन का पूर्ण भोग और आनन्द प्राप्त होता है। भौतिक कामनाओं इच्छाओं की पूर्ति पूर्ण रूप से सहज संभव हो पाती है। कामाख्या काम रूपिणी महाशक्ति जीवन निर्माण शक्ति पीठ है। जिससे सांसारिक गृहस्थ जीवन में रस, आनन्द, जोश, उत्साह, प्रेम और जीवन के प्रति सकारात्मक भाव प्राप्त होता है। शक्ति का शुद्ध भौतिक स्वरूप कामाख्या शक्ति ही है। यह सांसारिक गृहस्थ सुख की आधार शक्ति है, कामरूप शक्ति की क्रियात्मक चेतना साधक के वंश वृद्धि, सुसंस्कारवान संतान प्रदाता है।
पौषीय अष्टमी शक्ति दिवस पर सद्गुरु सानिध्य में माता पार्वती स्वरूपा गौरी लक्ष्मी कामरूप दैवीय गर्भ गृह के दर्शन युक्त शक्ति साधना, पूजा, मंत्र जाप की क्रिया का प्रभाव द्वाद्वश ज्योर्तिंलिंग से भी सर्वश्रेष्ठ है। नववर्ष के पूर्व बेला पर ऐसी दिव्यतम साधनाओं व दीक्षाओं से जीवन में दुर्गति, दुःख, विषाद, रोग, पीड़ा, शत्रु बाधा, दुर्भाग्य, धन हीनता समाप्त होती ही है। आने वाला नूतन वर्ष हर स्वरूप में कामदेव अनंग सौभाग्य सुहाग संतान वृद्धि व सहस्त्र लक्ष्मियों से युक्त हो सकेगा।
सद्गुरु सानिध्य में कामाख्या मंदिर प्रांगण में साधक सांसारिक जीवन के सभी रंग सौन्दर्य, सम्मोहन, वशीकरण, अक्षय धन लक्ष्मी, जीवन निर्माण ऊर्जा से अपने लक्ष्यों को तीव्रता से प्राप्त कर सकेगें और धन-वैभव- यश-लक्ष्मी, काम शक्ति, शत्रु स्तंभन, दीर्घायु जीवन, आरोग्य शक्ति से आपूरित होकर सफलता और श्रेष्ठता की दीक्षा, साधना से विभूषित हो सकेंगे। जिससे आने वाला नूतन वर्ष हर स्वरूप में श्रेष्ठ गृहस्थ सुखों से युक्त होगा।
आपका अहोभाग्य होगा कि ऐसे दिव्य अलौकिक 52 शक्ति पीठों में सर्वश्रेष्ठ महातीर्थ कामाख्या में सद्गुरुदेव के सानिध्य में सपरिवार आकर दर्शन, पूजा, साधना और दीक्षा ग्रहण करने से गृहस्थ जीवन की विषमतायें समाप्त होगी।
कामाख्या शक्ति सौभाग्य वृद्धि साधना महोत्सव
24-25 दिसम्बर कामाख्या शक्ति पीठ धाम, गुवाहाटी, आसाम
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