क्या सूर्य के बिना जीवन की कल्पना की जा सकती है ? सूर्य ही तो ऐसे प्रत्यक्ष देव हैं, जो जगत के नेत्र हैं, जो काल-चक्र के प्रणेता हैं। सूर्य से ही दिन-रात्रि, घडी, पल, मास आदि की गणना की जाती है, सूर्य से ही तो संसार प्रकाशमान है और सूर्य के चारों ओर ही तो सभी ग्रह और यह पृथ्वी निरन्तर परिक्रमा करती है, सूर्य से çप्रकाशित तेज के कारण ही तो इस संसार में ऊष्मा और तेज है, तात्पर्य यह है, कि सूर्य ही जीवन, तेज, ओज, बल, यश, नेत्र, श्रोत, आत्मा और मन के कारक हैं और तीनों लोक सूर्य के ही तो अंग हैं।
अन्य देवताओं को तो साधना-उपासना द्वारा, उनके स्वरूप को भीतर ही भीतर भावना द्वारा ही समझा जा सकता है, लेकिन सूर्य देव तो नित्य-प्रति प्रत्यक्ष होने वाले, साधक के सामने ही स्थित हैं, तो इनको क्यों न सिद्ध किया जाये ? सूर्य की साधना साधक के भीतर ज्ञान और क्रियाशक्ति का उद्दीपन करती है, यह तेज कभी शांत नहीं हो सकता, सूर्य की शक्ति संज्ञा, कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया का प्रारम्भ नहीं, अपितु प्रारम्भ से पूर्णता तक है।
साइंस ने भी इस बात को स्वीकार किया है, कि सूर्य की रश्मियों द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता मानव के शरीर में उत्पन्न होती है, और सभी असाध्य बीमारियों में सूर्य की पूजा-उपासना लाभप्रद सिद्ध होती है।
दिन-रात, ऋतु परिवर्तन, पृथ्वी के सभी क्रियाकलाप सूर्य पर ही आधारित होते हैं। प्रत्येक माह सूर्य एक राशि से दूसरी राशि पर संक्रमण करता है और उस राशि पर एक माह तक रहता है। इस प्रकार प्रत्येक माह सूर्य संक्रान्ति आती है। इन संक्रान्तियों में सर्वश्रेष्ठ संक्रान्ति ‘मकर संक्रान्ति’ को माना गया है। इस संक्रान्ति दिवस पर ही शिशिर ऋतु, वसन्त ऋतु में परिवर्तन होता है तथा उत्तरायण सूर्य दक्षिणायन हो जाते हैं।
इन विशेष क्रियाओं के फलस्वरूप ही सभी तांत्रिक ग्रंथों, उपनिषदों, पुराणों एवं शास्त्रों में मकर संक्रान्ति सूर्य साधना का विशिष्ट सिद्धिदायक पर्व माना गया है। अतः इस विशेष दिवस पर सभी योगी, ऋषि, महर्षि, संन्यासी तथा गृहस्थ सूर्य की साधना, आराधना कर पूरे वर्ष पर्यन्त अपने आप को रोग मुक्त व स्वास्थ्य युक्त बनाये रखते हैं।
मकर संक्रान्ति का साधना क्षेत्र में अद्वितीय महत्व है, क्योंकि यह एक ऐसा समय है, जब सूर्य उस कोण पर आ जाता है, जहां से वह अपनी पूर्ण तेजस्विता मानव की देह में उतार सकता है।
मनुष्य शरीर विभिन्न प्रकार के राग-द्वेष, छल-कपट आदि से भरा हुआ है, हमसे जाने-अनजाने निरन्तर गलतियां होती ही रहती हैं, और इसके फलस्वरूप उन दोषों के समावेश से हमें साधना में सफलता नहीं मिल पाती। इसलिये सिद्धाश्रम ने यह व्यवस्था की है कि यदि मकर संक्रान्ति के अवसर पर ‘रवि तेजस साधना’ सम्पन्न कर ली जाये, तो निश्चय ही अन्य सभी साधनाओं में सफलता प्राप्त होती ही है।
1 साधक कोई भी साधना करे, उसे प्रातः उठ कर सर्वप्रथम सूर्य नमस्कार करना तो आवश्यक है।
2 सूर्योदय होने से पूर्व ही साधक नित्य क्रिया से निवृत हो कर, स्नान कर, शुद्ध वस्त्र अवश्य धारण कर ले।
3 सूर्य की मूल पूजा उगते हुये सूर्य की पूजा ही है और यही फलकारक है, अतः सूर्योदय के पश्चात् पूजन से कोई प्रयोजन सिद्ध ही नहीं होता।
4 सूर्य को लाल कनेर के पुष्प विशेष प्रिय हैं, अतः साधक यही पुष्प सूर्य को अर्पित करें।
5 सूर्य देव को सूर्योदय के समय पुष्पों के साथ ताम्रपात्र से तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिये।
6 रोग तथा निर्बलता से पीड़ित सूर्य-उपासक को रविवार के दिन नमक व तेल रहित भोजन केवल एक समय ग्रहण करना चाहिये ।
मकर संक्रान्ति के दिन इस साधना को प्रारम्भ करने हेतु ऊपर लिखे हुये नियमों का पालन करते हुए, साधक अपने सामने ‘सूर्य यंत्र’ को स्थापित कर, उस पर चन्दन, केसर, सुपारी तथा लाल पुष्प अर्पित करें, इसके साथ ही गुलाल तथा कुंकुम के साथ-साथ सिन्दूर भी अर्पित करें और अपने सामने सिन्दूर को शुद्ध जल में घोल कर, दोनों ओर सूर्य चित्र बनाएं तथा पुष्पांजलि अर्पित करते हुये प्रार्थना करें, कि-
‘हे आदित्य! आप सिन्दूर वर्णीय, तेजस्वी मुखमण्डल, कमलनेत्र स्वरूप वाले, ब्रह्मा, विष्णु तथा रूद्र सहित सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारक हैं, आपको इस साधक का नमस्कार! आप मेरे द्वारा अर्पित कुंकुम, पुष्प, सिन्दूर एवं चन्दन युक्त जल का अर्घ्य ग्रहण करें।’
इसके साथ ही ताम्रपात्र से जल की धारा को, अपने दोनों हाथों में पात्र लेकर, सूर्य को तीन बार अर्घ्य दें और इसके पश्चात् ‘सूर्य मणिमाल्य’ धारण कर अपने पूजा-स्थान में स्थान ग्रहण कर, पूर्व दिशा में सूर्य की ओर मुंह कर निम्न सूर्य मंत्र का 15 मिनट जप करें-
सूर्य साधना का यह प्रयोग यदि साधक प्रति दिन करें, तो अत्यन्त श्रेष्ठ रहता है और उनकी समस्त साधनायें तथा समस्त इच्छायें पूर्ण होती है।
सूर्य तो आरोग्य के देव हैं, इनके सामने निर्बलता, रोग, जड़ता ठहर ही नहीं सकती, सूर्य का तात्पर्य ही आयु, बल, आरोग्य है।
नित्य प्रति सूर्य नमस्कार और प्राणायाम से शरीर का दूषित रक्त साफ होता है और इस पूजा के निरन्तर अभ्यास से शरीर स्वस्थ, बलिष्ठ एवं दीर्घजीवी बनता है।
‘गायत्री मंत्र साधना’ मूल रूप से यही साधना ही है, जिसमें सविता अर्थात् सूर्य से बल, बुद्धि, वीर्य, पराक्रम, तेज तथा सब प्रकार से उन्नति, प्रगति की प्रार्थना की गई है।
बत्तीस यंत्र भी सूर्य का स्वरूप माना जाता है और इस यंत्र को स्थापित कर प्रतिदिन ‘ऊँ ह्रीं हंस’ बीज मंत्र का आरोग्य वर्द्धनी माला से जप कर, सूर्य को अर्घ्य देने से नेत्र रोग के अलावा पेट सम्बन्धित एसीडीटी रोग, पीलिया, गठिया, शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
लाल रंग की बोतल में जल भर कर, सूर्य के प्रकाश में दिन भर रख कर वह जल ग्रहण करने से पेट सम्बन्धित बीमारियां दूर होती है।
यह सूर्य ही है, जिसके द्वारा प्रकृति की समस्त शक्तियां मनुष्य को प्राप्त होती हैं। नवग्रहों में ये प्रथम देव हैं, इनकी साधना-उपासना विजय की साधना है।
एक दिन प्रातः जरा उठ कर, उदय होते हुये सूर्य की पूजा कर, नमस्कार कर इस साधना का आनन्द तो लें, यह आनन्द शरीर को ही नहीं मन को भी, कुण्डलिनी जागरण के बिन्दुओं को भी कंपित कर आनन्द से ओत-प्रोत कर देने वाला होता है।
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