संसार में परम गुह्य क्या वस्तु है? ऐसी कौन सी क्रिया है, जो परम श्रेष्ठ है? ऐसा कौन सा योग है, जो स्वर्ग और मोक्ष को देने वाला है? ऐसा कौन सा उपाय है, जिसके द्वारा साधारण मानव बिना तीर्थ, दान, यज्ञ और ध्यान के पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर सकता है? इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं, कामनाओं को पूर्ण कर सकता है? केवल आप ही वह महाज्ञानी हैं, जो इस सम्बन्ध में मुझे पूर्ण ज्ञान दे सकते हैं।’
इस पर भगवान शिव ने कहा – ‘कार्तिकेय! तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम के वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। सत् रज एवं तम, जो महदादि एवं अन्य भूत-प्रेत, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति महात्रिपुर सुन्दरी है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है। ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है, विष्णु रूप में वह इस संसार का पालन करती है तथा वही शिव रूप में विनाश करती है, जिस महाप्रलय में आज भी यह सारा संसार परिवर्तित हो रहा है, जिस महाप्रलय में यह संसार लीन हो जाता है और जहां से पुनः उत्पन्न होता है, उसी महात्रिपुर सुन्दरी की आराधना कर मैंने भी इन तीनों लोकों में उत्तम स्थान पाया है, उसकी साधना ही जीवन में सर्वश्रेष्ठ साधना है।’
उपरोक्त कथा केवल एक कथा ही नहीं है जीवन का श्रेष्ठतम सत्य है, क्योंकि जिस व्यक्ति पर षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी की कृपा हो जाती है, जिस व्यक्ति के जीवन में षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी सिद्ध हो जाती है, वह व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण सिद्धि प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है, क्योंकि यह शक्ति शिव की भी शक्ति है, यह शक्ति इच्छा, ज्ञान, क्रिया -तीनों स्वरूपों को पूर्णतः प्रदान करने वाली है। ऐसा ज्यादातर पाया जाता है, कि ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना, जो कि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है, कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न करता है, उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है, वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता है, वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्तिस्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है, इसके बारें में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है – जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।
यह साधना करने वाला व्यक्ति कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके भीतर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन में पाप शांत होते हैं। जिस प्रकार अग्नि में घास तत्काल भस्म हो जाती है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की क्रिया प्रारम्भ कर लेता है।
वास्तव में यह साधना जीवन की एक अनोखी साधना है, जिसे व्यक्ति को निरन्तर, बार-बार सम्पन्न करना चाहिए और इसको सम्पन्न करने के लिए वैसे तो किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है, फिर भी ये दिवस इस साधना के लिए विशेष बताये गये हैं-
1- नवरात्रि – नवरात्रि के अन्तिम तीन दिवसों मे इस साधना को प्रारम्भ कर सकते है। नवरात्रि में शक्ति साधनाओं का महत्त्व एवं लाभ अधिक होता है।
2- संक्रान्ति – प्रति मास जब सूर्य एक संक्रान्ति से दूसरी संक्रान्ति में परिवर्तित होता है, वह मुहूर्त श्रेष्ठ है।
3- अमावस्या – प्रत्येक मास की अमावस्या इस साधना को करने के लिए उत्तम मुहूर्त है।
इसके अतिरिक्त
4- अष्टमी,
5- नवमी और
6- पूर्णिमा
को भी इसके लिए श्रेष्ठ दिवस कहा गया है और जो व्यक्ति इन दिनों में भी इस साधना को सम्पन्न नहीं कर सके, वह व्यक्ति किसी भी सोमवार को यह साधना सम्पन्न कर सकता है।
महाविद्या त्रिपुर सुन्दरी को जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़ है। जिस महामुद्रा में वे भगवान शिव की नाभि से निकले, कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की ओर उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।
सोलह पंखुडि़यों के कमल दल पर पप्रासन मुद्रा में विराजमान त्रिपुर सुन्दरी मातृ स्वरूपा हैं तथा सभी पापों और दोषों से मुक्त करती हुई अपने भक्तों तथा साधकों को सोलह कलाओं से पूर्ण करती हैं, उन्हें पूर्ण सेवत्व प्रदान करती है। उनके हाथ में माला, अंकुश, धनुष और बाण साधकों को जीवन में सफलता और श्रेष्ठता प्रदान करते हैं। दायें हाथ में अंकुश, इस बात को इंगित करता है, कि जो व्यक्ति अपने कर्मदोषों से परेशान है, उन सभी कर्मों पर वह पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर उन्नति के पथ पर गतिशील हो और उसे जीवन में श्रेष्ठता, भव्यता, आत्मविश्वास प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त शिष्य के जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधा, शत्रु, बीमारी, गरीबी अशक्तक्ता सभी को दूर करने का प्रतीक उनके हाथ में धनुष-बाण है।
वास्तव में मां देवी त्रिपुर सुन्दरी साधना पूर्णता प्राप्त करने की साधना है। यह साधना सिद्ध करने के बाद दूसरी साधनाएं सिद्ध करना सहज और सामान्य हो जाता है।
यह साधना पूर्ण सिद्धिदायक साधना है। इस साधना सामग्री के रूप में विशेष रूप से सर्वकामना सिद्धि युक्त ‘त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र’, ‘नवदुर्गा त्रिभुवन मोहिनी माला’ एवं ‘कल्पवृक्ष साफल्य’ ये तीन चीजें अत्यन्त आवश्यक हैं।
इसके अतिरिक्त यदि कोई साधक किसी विशेष इच्छा से और कार्य से यह साधना करना चाहता है, तो ‘मनोवांछित सिद्धि गुटिका’ भी अवश्य प्राप्त करें।
इस साधना में प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर सर्वप्रथम विशेष पूजन सामग्री से, जिसमें आसन, जलपात्र, गंगाजल, प्लेट, कुंकुम, अक्षत, केशर, पुष्प, पुष्पमाला, पंचामृत, नारियल, कलावा, यज्ञोपवीत, अबीर-गुलाल, धूप, अगरबत्ती, दीपक, नैवेद्य, इलायची इत्यादि सामग्री रखें।
सर्वप्रथम गणपति पूजन सम्पन्न करें और उसके बाद त्रिपुर सुन्दरी का ध्यान करें।
बालार्कद्युतितेजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लासिनीं
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट्शेखराम्।
हस्तैरिक्षुधनुः सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं
श्री चक्रस्थित सुन्दरी त्रिजतामाधारभूतां स्मरेत्।।
उदित होते सूर्य के समान तेज युक्त, तीन नेत्रों वाली, लाल वस्त्रों से सुशोभित। अनेक विधि अलंकारों से अलंकृत, द्वितीया के चन्द्रमा को शिर पर धारण किये हुए। हाथों में धनुष-बाण, खड्ग एवं पाश धारण किये हुए, श्री चक्र में विराजमान, तीनों लोकों की आधारभूता भगवती त्रिपुर सुन्दरी का मैं ध्यान करता हूं।
सारी सामग्री एक पात्र में रख दें और सर्वप्रथम एक थाली के मध्य में स्वस्तिक बनाकर त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र स्थापित करें और यंत्र के चारों ओर त्रिपुर सुन्दरी की शक्तियां – ज्ञान क्रिया, कामिनी, कामदायिनी, रति, रतिप्रिया, नन्दा, मनोमालिनी, इच्छा, सुभगा, भगा, भगसर्पिणी, भगमाल्या, अनंग नगाया, अनंग मेखला और अनंग मदना का ध्यान करते हुए उसे पुष्प अर्पित करें।
तत्पश्चात् यंत्र पर कल्पवृक्ष साफल्य अर्पित करें। कल्पवृक्ष साफल्य आपके जीवन में जो न्यूनताओं को पूर्ण करने की प्रार्थना के साथ ही इसका अर्पण किया जाता है और यह सिद्ध कल्पवृक्ष साफल्य यंत्र के मध्य में अर्पित करें।
इसके पश्चात् ऊपर लिखी सामग्री त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र पर एक-एक कर चढ़ाए और यह एक प्रकार से सामग्री अर्पण है तथा अबीर, गुलाल, कुंकुम इत्यादि से विशेष पूजन करें।
जब यह पूजन समाप्त हो जाय, तब पुनः त्रिपुर सुन्दरी का ध्यान करें, गुरू का ध्यान करें एवं अति विशिष्ट ‘नवदुर्गा त्रिभुवन मोहिनी माला’ से निम्न मंत्र का 5 माला जप उसी स्थान पर बैठ कर सम्पन्न करें।
मंत्र जप के पश्चात् यदि आपने किसी विशेष इच्छा से यह साधना सम्पन्न की है अथवा कोई कार्य तत्काल पूर्ण करना चाहते हैं, तो मनोवांछित सिद्धि गुटिका को अपने बायें हाथ में लेकर पुनः इसी मंत्र की एक माला जप अवश्य करें यह साधना ग्यारह दिन तक सम्पन्न करनी है। इन ग्यारह दिनों में साधक को यह अनुभव अवश्य होता है, कि उसे एक विशेष शक्ति का पूर्ण सहयोग निरन्तर प्राप्त हो रहा है एवं उसके शरीर में, मन में, कार्य में शीघ्र परिवर्तन हो रहे हैं।
ग्यारह दिन के पश्चात् षोडशी त्रिपुर सुन्दरी महायंत्र को कल्पवृक्ष साफल्य को और गुटिका को वरूण देवता को अर्थात् जल में अवश्य ही प्रवाहित कर दें। जब भी कोई विशेष साधना करनी हो या त्रिपुर सुन्दरी साधना की इच्छा उत्पन्न हो, तो इस माला से यह मंत्र जप करें। यह माला आपके पूजा स्थान में पूरे वर्ष अवश्य ही रहनी चाहिए।
वास्तव में त्रिपुर सुन्दरी साधना जीवन की सभी शक्तियों को प्रदान करने वाली साधना है। इस साधना से सिद्ध साधक वास्तव में ही एक विशेष शक्ति का स्वामी हो जाता है और उसके अपने जीवन में ही मनोभाव पूर्ण होते हैं, उसकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, वाणी सिद्ध होती है और उसके जीवन के समस्त पाप क्षय होते हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,