शिष्य को अपनी पूरी क्षमता, दम-खम के साथ गुरु आज्ञा का पालन करना चाहिये। भले वह कार्य उससे हो पाये या ना, परन्तु उसको अपनी क्षमता अनुसार पूरा करना चाहिये।
सच्चा शिष्य वही होता है, जो विषम परिस्थितियों में भी गुरु के साथ खड़ा होता है। क्योंकि गुरु स्वयं ऐसी परिस्थितियां निर्मित कर शिष्य के धैर्य व श्रद्धा की परीक्षा लेते हैं।
शिष्य को गुरु से आन्तरिक रूप से जुड़ाव स्थापित करना चाहिये। बाह्य स्वरूप में शिष्य के भ्रमित होने का भय होता है। क्योंकि गुरु की महामाया शक्ति सदा लीला करती रहती हैं।
गुरु के सानिध्य में व्यतीत क्षणों को शिष्य को जीवन्त, जाग्रत स्वरूप में आत्मसात करना चाहिये।
शिष्य को सदा अपना आत्मचिंतन करना चाहिये, जिससे वह अपनी न्यूनताओं को दूर कर साधनाओं में प्रगति कर सके।
जिस हृदय में गुरु का निवास होता है, वहीं सही रूप में शिष्य बन सकता है।
अनावश्यक क्रोध शिष्य के लिये घातक सिद्ध होते हैं।
शिष्य को किसी की बुराई के पीछे नहीं पड़ना चाहिये। क्योंकि इससे उसका कुछ नहीं बिगड़ता परन्तु धीरे-धीरे शिष्य पर उस बुराई का प्रभाव पड़ने लगता है।
शिष्य को चंदन की भांति सदा शांत व शीतल रहना चाहिये।
शिष्य हजार गलतियों के पश्चात् भी क्षमा का अधिकारी बन सकता है, यदि वह अपनी गलतियों पर पश्चाताप् करे, पश्चाताप् की अग्नि ज्वाला से गुजरे।
शिष्य को सदा अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर कर्म करना चाहिये। उसकी एक चूक उसे हजारों किलोमीटर दूर फ़ेंक सकती है।
शिष्य क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ, उतावलापन, लोभ से दूर रहना चाहिये। इससे उसका साधनात्मक प्रगति बाधित होकर एक दायरे में सीमित हो जाता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,