तुम्हें मुझमें एकाकार होना चाहिये, जिस दिन तुम मुझमें मिल जाओगे, उस दिन सारा विश्व सुन्दर आकर्षक सुगन्धमय नृत्ययुक्त बन जायेगा क्योंकि संगम ही तो जीवन की पूर्णता है।
शिष्य को गुरु से सीखना है कि जीवन के प्रत्येक क्षण को नृत्य में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है और यह परिवर्तन तुम्हें जीवन जीने का सलीका सिखा देगा।
शिष्य को गुरु से सीखना है कि जीवन में मौन रह कर भी कितना कुछ कहा जा सकता है, ऊ न करते हुये भी कितना कुछ सहा जा सकता है।
शिष्य, शक्ति को मानव के कल्याण के लिये इस्तेमाल करना चाहिये पीडा पहुंचाने के लिये नहीं। मैंने सूरज से रोशनी झटक कर इन शिष्यों को दी है, अब इन की लौ कांपे नहीं, ये बुझ न जायें, इनको सही सलामत जलाये रखना है, यह शिष्य की जिम्मेवारी है।
जीवन का पहला और अन्तिम पाप है, गुरु को धोखा देना, अपने आप को पतित करना और प्रभु की नजरों में भ्रष्ट कर देना।
शिष्य को पाखण्ड, संदेह शीलता, शक, न्यूनता, ओछापन निर्लज्जता को त्याग करना ही है। श्रेष्ठ शिष्य वह है जो गुरू उच्चरित प्रवचन को हृदय उतारते है, अपने रक्त में एकाकार कर देते है, अपने व्यक्तित्व में एक रस कर देने के हैं।
अगर तुम पूर्णता प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें निष्ठा धारण करनी होगी, एकाग्रता, सामीप्यता, सर्वांग पूर्णता और अन्तरंगता।
सिद्धियों का अधिपति बनने के लिये बनना पड़ेगा प्रेमी। क्योंकि अचूक एकाग्रता केवल प्रेमी के पास ही होती है।
तुम प्रेमी की आंख देखो गुलाबीपन के अलावा और कोई रंग उसकी आंख में नहीं होता।
मस्ती ऐसी कि जैसे पिये हुये हो, शराबी, अल्हड़ मौजी अपनी धुन में चलने वाला।
आंख की पुतली पर प्रेमिका के अलावा और कोई बिम्ब और कोई दृश्य नहीं।
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