तुम आकाश में उड़ते हुये बादल के टुकड़े हो जो निरूद्देश्य, निरूपाय बिना लक्ष्य विचरण करते रहते है।
तुम्हें गुरु रूपी हिमालय की आवश्यकता है जिससे तुम टकरा कर बरस सके।
तुम्हें गंगा की पहली पवित्र धारा बनकर पूरी पृथ्वी की युगों-युगों की प्यास बुझाना है।
तुम सामान्य कुल के नहीं, हंसों के वंश के राजहंस हो और तुम्हारा कार्य क्षेत्र है मानसरोवर।
तुम अपने स्वभाव, जाति, गुण और कर्म ही नहीं अपने आप को ही भुला बैठे हो।
अपने आप को पहिचानो। उठो! और मेरे साथ आगे बढ़ो, मैं तुम्हें स्वच्छ मानसरोवर में डुबकी लगाने की क्रिया सिखाऊंगा।
जब डुबकी लगाकर बाहर निकलोगे, तो तुम्हारे दोनों हाथ अमूल्य मोतियों से भरे होंगे।
साधनाओं में अनुभूति आंखों से नहीं, प्राणों से होती है और तुम्हारे प्राणों पर संदेह, स्वार्थ और अविश्वास के हजार-हजार काले मोटे पर्दे टंगे हैं।
गुरु रूपी सूर्य की तेजस्वी किरणों को अपने प्राणों के अन्दर पहुंचाकर अंधकार की पर्दे को हटाना है।
तुम आंसुओं का अर्घ्य ले कर गुरु चरणों को प्रक्षालित कर सको, और ऐसा करके जब तुम सिर ऊंचा उठाओगे तो सभी देवी देवता साक्षात् सशरीर सामने स्पष्ट दिखाई देंगे।
मैं तो युगों युगों से प्रतीक्षा कर रहीं हूं आपके आने की इन्तजार में आंखे पथरा गई हैं।
मैं सांसों की सितार पर दिल का संगीत बजा कर आपको रिझा सकूं, अपने अन्दर उतार सकूं, तन मन प्राणों को आप से एकाकार कर सकूं।
तुम्हें तो बहते रहना है, छटपटाहट के साथ, वेग के साथ किनारों को तोड़ते हुये, रूकावटों को पार करते हुये, लहरें उठाते हुये, नर्तन करते हुये, थिरकते हुये, मस्ती में झूमते हुये।
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