जो प्रश्न पुस्तक से उठेंगे उसके उत्तर पुस्तकों से मिल पायेंगे। किन्तु जो प्रश्न जिन्दगी से उठेंगे उनके समाधान साधना से ही संभव है।
मनुष्य का शरीर रथ व बुद्धि सारथी है इन्द्रिया इसके घोडे है, परन्तु प्रज्ञावना पुरूष घोडो पर नियंत्रण रखकर सुख पूर्वक जीवन की यात्रा करता है।
सदा प्रिये लगने वाली मीठी-मीठी बाते कहने वाले लोग तो सरलता से मिल सकते हैं, परन्तु जो सुनने में अप्रिय हो किन्तु परिणाम में हितकर हो ऐसी बात कहने वाले सिर्फ सद्गुरु ही होते हैं।
जिस साधक की भौतिक अभिलाषायें समाप्त नहीं होती, उसके नंगे रहने से, बाल बढ़ाने से, राख लपेटने से, भगवा धारण करने से, उपवास करने से, मंत्र जप करने से, भूमि शयन करने से, अनेक प्रकार के तप करने से भी कोई लाभ नहीं हो पाता, क्योंकि उनकी आत्मा शुद्ध नही हो पा रही है, इसलिये साधक को भौतिक इच्छाओं का त्याग करना चाहिये।
बन्धन से छूटने की कोशिश ना करो, बन्धन को जानने की कोशिश करो, आखिर में बंधन है क्या ?
मन में जिज्ञासा बनी रहें, तो स्वाधयाय और सद् क्रियाओं से बहुत कुछ सीखा जा सकता है स्वयं को परामात्मा में, सद्गुरु में इतना लीन कर दो कि ईश्वर स्वयं पूछे, बता तेरी रजा क्या है ?
भली-भांति अपने कर्तव्य का पालन करके संतुष्ट हो जाओ और दूसरो को अपने विषय में इच्छानुसार कहने के लिये छोड दो।
चंदन वह होता है, जो अपने अन्दर बहुत अधिक शीतलता और सुगंध समेटे रखता है। जबकि उसके चारों ओर जहरीला सांप लिपटा रहता है। जहरीला डंक खाने के बाद भी वह पवित्र रहता है। यानि हमें चंदन जैसा बनना होगा। बुराई सुनने के बाद भी हमे अच्छाई करनी होगी। कभी स्वयं को बुराई की ओर नहीं बढाना है।
आप सिर्फ सत्य की राह पर चलकर सफ़ल हो सकते हैं, बुराई का रास्ता अपना कर आप अपना नाम तो कर सकते हैं, परन्तु सफ़लता कभी नहीं पा सकते।
इन्सान का एक बुरा काम उसकी सारी अच्छाईयों को भुला देती है, जैसे रावण के सीता हरण ने यहां तक भुला दिया कि वह कितना विद्वान और तपस्वी है।
दूसरों की नकल करना आसान होता है पर दूसरे मेरी नकल करें, स्वयं को ऐसा बनाना चाहिये, यह काम मुश्किल है, पर निरंतर क्रिया करने वाले देर से ही पर लक्ष्य तक अवश्य पहुंचते हैं।
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