मुझसे होगा मैं करूंगा ही हमारे मन में असीम शक्तियां छुपी हुयी है आवश्यकता हैं। बाहृा मन को एकाग्र करके अन्तर्मन को जाग्रत करने की। किसी भी व्यक्ति का वास्तविक बल उसके एकाग्रता के भाव, सोच-समझने की शक्ति से ही पता चल जाता है। जिनका अवचेतन मन कुछ क्षण मात्र में ही चैतन्य हो जाता है ऐसे व्यक्ति समाज में कुछ कर दिखाने की क्षमता रखते है और ऐसे व्यक्ति मानसिक तौर पर सबल होते हैं, वे जीवन की हर परिस्थिति का सामना करते हुये अपने इच्छित लक्ष्य को प्राप्त कर लेते है। ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी दूसरों का मार्गदर्शन करने में सक्षम होते हैं। हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों ने अनेक-अनेक तंत्र साधनाओं का प्रचलन किया है, इसके माध्यम से मन और शरीर के ऊपर शीघ्रता के साथ नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है और हर दृष्टि से हम शक्ति युक्त और सबल बन सकते है।
अपने आप को कोसने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिये दुःख और सुख जीवन के दो पहिये होते है केवल दुःख से या सुख से जीवन चल नहीं सकता। अगर हम सुख की कामना करते है तो दुःख भोगना ही पड़ता है। अगर हम आज दुःखी है तो सुख भी निश्चित रूप से प्राप्त होगा ही। कोई भी दुःख, कष्ट या समस्या इस नश्वर मय मंडल में स्थिर रूप में रहता ही नहीं है। ईश्वर कृत यह संसार हर क्षण परिवर्तनशील है और इस हेतु मानसिक तौर पर मजबूत व्यक्ति कभी कुछ समस्या हो जाने पर अपनी परिस्थितियों से घबराते नहीं है वरन द्विगुण उत्साह और शक्ति के साथ परिस्थितियों का मुकाबला करते है, और अपनी जिम्मेदारी से भागने के बजाय उसे अच्छे से समझते हैं और निभाने की कोशिश करते हैं। वे हमेशा जानते हैं कि जिंदगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती है। कभी-कभी ऐसे डाउनफॉल आते ही हैं। ऐसी परिस्थितियों से हमें सीख मिलती है। हम मानसिक रूप से भी परिपक्व हो जाते हैं।
मानसिक शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति विशेष अपनी स्वतंत्रता हर परिस्थिति में बचाये रखते हैं। क्योंकि परतंत्रता के रूप में वह व्यक्ति रहता ही नहीं है। किसी भी परिस्थिति में ऐसे व्यक्ति किसी को दोषी नहीं मानते है। कर्मयोग को स्वीकार करते हुये हर परिस्थिति के लिये स्वयं को जिम्मेदार मानते हैं। क्योंकि हम जो भी कर्म किये है उसी का फल हमे भोगना पड़ता है। सारे ब्रह्माण्ड ईश्वर के एक ही नियम पर परिचालित होता है- वो है कर्म सिद्धान्त। ऐसे मानसिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति अपने भावनाओं को पूर्ण रूप से नियंत्रण में रखते हुये अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहते है।
किसी को खुश करने का प्रयास नहीं करते है। एक बात तो हर कोई जानता है कि एक समय पर आप हर किसी को खुश नहीं रख सकते। मानसिक क्षमता संबन्ध व्यक्ति इस बात को पालन भी करते हैं। इस दुनिया में अधिकांश व्यक्ति अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद भी और भी अधिक इच्छाओं से युक्त होकर संतुष्टि भाव को प्राप्त करते नहीं हैं। सब कुछ होते हुये भी हमेशा मन में एक अपूर्णता का, अभाव का, दरिद्रता का भाव लिये हुये जीते रहते हैं। ऐसे पुरूष किसी द्रव्य और पदार्थ के प्राप्त होने के बाद भी अभाव से पीडित रहते है। इस हेतु मानसिक शक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति ऐसे व्यक्तियों के खुशी के लिये कुछ विशेष करने की आवश्यकता समझते नहीं है। वरन जिसको जरूरी है उसके लिये जीवन में कुछ करना उसी नियम को सही मानते हुये कर्म करते रहते है और किसी की निंदा या अपवाद वाक्यों से पीडि़त होते नहीं है और हमेशा हर माहौल में अपने आप को खुश रखना जानते हैं।
सारे विश्व की प्रकृति में क्षण-क्षण परिवर्तन आता ही रहता है, प्रकृति पूर्ण रूप से गतिशील है। इस हेतु प्रकृतिदत्त यह शरीर भी हमेशा गतिशील रहता है और शरीर मन में भी अनेक-अनेक परिवर्तन समय अनुसार होता रहता है। अगर हम अकर्मण्यता भाव के साथ बैठ जाते है तो गतिशील प्रकृति के कारण शरीर में अवस्थित शक्ति रूपी प्रकृति कहीं न कहीं हमें धकेलती रहती है। इस हेतु समीक्षा में पाया गया है कि अवकाश के समय में ज्यादा तर चोरी, डकैती, झगड़ा, हंगामा हत्या आदि समाज में ज्यादा घटित होता है। इस हेतु प्रकृति के साथ ताल मिलाते हुये कर्म करना सभी के लिये अनिवार्य है। मानसिक दृष्टि से परिपुष्ट व्यक्ति दुनिया के इस परिवर्तन क्रिया रूपी गतिशील प्रकृति को समझते है और जीवन में पुराने रूढि़वादी नियम को तोड़ते हुये हमेशा नित्य नवीन चिंतन तथा कार्यों से युक्त होते है। वो कभी परिवर्तन से नहीं डरते, बल्कि वो तो हमेशा सकारात्मक बदलाव के लिये तैयार रहते हैं। उन्हें पता होता है कि परिवर्तन हमेशा कुछ नया लाता है।
हिन्दु धर्म में पाप और पुण्य को अपनाया गया है। आज कोई व्यक्ति पाप कार्य कर रहा है तो कल वह बदलकर पुण्यवान व्यक्ति भी बन सकता है। पाप के लिये प्रायश्चित है, प्रायश्चित करने से पाप से मुक्ति हो जाती है। परन्तु जीवन में भूल नहीं करना चाहिये किसी भी कार्य में अगर हम कुछ भूल करते है तो वही भूल के लिये क्षमा होती नहीं है और ब्रह्माण्ड इतिहास में वह अमिट बनकर रह जाता है। इस हेतु मानसिक तौर पर मजबूत व्यक्ति कभी गलती करते ही नहीं है। किसी कारण वश अगर गलती हो भी जाती है तो दुबारा ऐसा करने की सोच भी नहीं रखते। उनके व्यवहार में एक गंभीरता होती है, वे अपनी हर पिछली गलती से सबक लेते हैं और उस गलती को जिंदगी में दोबारा कभी नहीं दोहराते। वो गलतियों से दूर हो कर आगे के भविष्य के बारे में सोचते हैं।
हमें आत्मबल बढ़ाने के लिये निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिये उपरोक्त अन्य सिद्धान्तों को जीवन में अपनाकर महापुरूषों के जीवन से प्रेरणायें लेकर शुभ विचारों से युक्त संकल्प लेकर हम स्वयं का एवं समाज का भी भला कर सकते हैं। योग, प्राणायाम, मंत्र जप साधनायें आदि मानसिक बल को बढ़ाने में अत्यधिक सहायक होते हैं।
निधि श्रीमाली
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