भारतीय समाज में 16 संस्कारों में अत्यन्त महत्वपूर्ण विवाह संस्कार होता है। जिसके आधार पर व्यक्ति का सुखमय जीवन निर्भर होता है। आनन्द, हर्ष, आमोद-प्रमोद, मान-मनुहार, समर्पण, प्रेम, विश्वास से गृहस्थ जीवन सभी सुखों से युक्त होता ही है।
और ये सब प्रारम्भ होता है। एक हृदय से दूसरे हृदय के मिलन पर जिसे पाणिग्रहण संस्कार कहते हैं, जो सभी संस्कारों में सर्वोत्तम है। परन्तु वर्तमान में जिस प्रकार लोगों के वैवाहिक जीवन में तनाव, कलह का वातावरण है, जिनमें अनेक घटना, दुर्घटना, पीड़ा, कोर्ट-कचहरी जैसे अनेक कारण समस्यायें पिछले कुछ वर्षों से सामने आई हैं, ये भारतीय समाज और स्त्री-पुरूष के आनन्दमय, सुखमय जीवन के लिये अन्यतम भीषण संकट है। जिनके कारण एक नहीं कई परिवार बिखर जाते हैं। यदि वे थोड़ा धैर्य, संयम से कार्य करें साथ ही अपने जीवन साथी से आत्मिक व मानसिक जुड़ाव व सम्पर्क बनायें तो ऐसे संकटों से निजात पाया जाता सकता है।
इसके लिये आवश्यक है कि पति-पत्नी का सम्बन्ध भावनात्मक हो, एक-दूसरे के विचारो का सम्मान व सहमति से दाम्पत्य जीवन को आनन्दमय बनाया जा सकता है। सामान्यतः आपसी मनमुटाव के बाद पति-पत्नी को मौन धारण नहीं करना चाहिये। क्योंकि पहले मौन कुछ ही समय का होता है। फिर लम्बा समय होने के कारण तीसरे व्यक्ति का प्रवेश जीवन में उदासीनता व बिखराव की स्थिति तथा अविश्वास उत्पन्न करता है।
मानव जीवन में मनुष्य बिना किसी जीवन साथी (स्त्री या पुरूष) के अधूरा ही माना जाता है। तन्हा और अकेला व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन अवसाद, तनाव, उदासीनता से घिरा रहता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में आनन्द, प्रेम, ममत्व, करूणा का अभाव देखने को मिलते है। इसलिये गृहस्थ आश्रम में प्रवेश तो करना ही चाहिये साथ ही गृहस्थ धर्म के सभी कर्तव्यों का पालन करने वाला ही श्रेष्ठ कहलाता है। विवाह जीवन में सुनिर्माण की नींव होती है। भावी जीवन के सुखद निर्माण के लिये इस संस्कार रूपी ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है। जिससे पति-पत्नी आजीवन मित्रवत, एक-दूसरे के सहयोगी बने रहें, सुख-दुख में साथ चलें न कि एक ही छत के नीचे रहते हुये शत्रुवत् जीवन व्यतीत करें।
अपने जीवन में गृहस्थ को आदर्श रूप में स्थापित कर आनन्द, हर्ष, प्रेम, करूणा के कई वर्ष व्यतीत कर चुके पूज्य सद्गुरूदेव हम सभी शिष्यों के लिये प्रेरणा स्वरूप हैं, शिष्य सदैव अपने गुरू के आदर्शों पर चलकर उनके ही स्वरूप की चेतना को आत्मसात करने की क्रिया करता है। अपने गुरू की भांति सुन्दर श्रेष्ठ संस्कारों से अपने वैवाहिक जीवन आबद्ध करने की क्रिया 06-07 जुलाई को कैलाश सिद्धाश्रम दिल्ली में सम्पन्न होगा। सावित्री शक्ति सुहाग रक्षा दीक्षा और शिव-गौरी दाम्पत्य सुख चेतना शक्ति दीक्षा से वैवाहिक जीवन सुदृढ़ और सफ़ल होगा। साथ पति-पत्नी का आत्मिक और मानसिक जुड़ाव परस्पर स्थापित हो सकेंगा।
महाप्रसाद की व्यवस्था सूर्यास्त से पूर्व प्रदान की जायेगी। आप सपरिवार आत्मीय भाव आमंत्रित हैं। आर्शीवाद प्राप्त कर आनन्द तत्व की प्राप्ति कर सकें।
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