इनके लिये तारिणी नाम का भी उपयोग किया जाता है, -चण्डि चण्डे नमस्तुभ्यं तारिणि वरवर्णिनि। जो भक्तों को संसार के बन्धनों, जगत् के संकटों और विपदाओं, धनहीनता जैसे दुःखों से मुक्त करती है वही ‘भगवती तारा’ है, जिसका सरल सा अर्थ जीवन के सभी विपदाओं से तारने वाली।
जब महामाया संतप्त, दुःखी संसार की रक्षा करने के लिये उत्सुक हुई तो उन्होंने काली, तारा आदि दस रूप धारण किये। इन्हीं दस रूपों से आगे चलकर अनन्त रूप प्रकट हुये और संसार को अनेक विपत्तियों से बचाकर धन-धान्य-समृद्धि से युक्त किया।
नील तंत्र में महामाया के रूप का वर्णन-
वह धधकती हुई अग्नि की प्रखर ज्वाला में रहती है। उसके शरीर का गठन दृढ़ तथा अत्यन्त हष्ट-पुष्ट है। शव की गर्दन पर उसका बायां पैर और टांगों पर दाहिना पैर सुस्थित है। वह सुस्थिर एवं मौन होकर खडी़ है। इसी रूप में वह भक्तों के कष्ट, विपदा, शोक, चिन्ता का हरण करती हैं।
दुःख, विपदायें और भौतिक जीवन की अनेक समस्यायें मनुष्य को अग्नि की उग्र लपटों के समान बराबर जलाया करती हैं। विपदाओं से घिरा व्यक्ति अपने परिवार का पालन पोषण सही ढंग से नहीं कर पाता, यह उसके जीवन की पहली आवश्यकता है कि वह अपने घरेलू जीवन की समस्याओं से पार (निजात) हो सके, ऐसे समय में माँ जगदम्बा के ‘तारा’ स्वरूप की साधना मंत्र जप, दीक्षा, साधना सम्पन्न करने से सभी विपदाओं पर सरलता से विजय प्राप्त होती है। इसीलिये भगवती तारा को विपदा विदारिणी कहा गया है।
भारत भूमि के प्रत्येक भाग में अनेक पवित्र, पापनाशक तथा प्रभावशाली चैतन्य तीर्थ स्थल, सिद्धपीठ विद्यमान हैं। भारत का ही एक प्रदेश पश्चिम बंगाल जो प्राचीन समय से तांत्रिक सिद्ध स्थल है, यहां की भूमि अनेक देवी शक्तिपीठों के कारण सिद्ध और चैतन्य है।
महाशक्तियों के इसी तेजमय भूमि पर तारा वैभव लक्ष्मी शक्ति साधना महोत्सव 16-17 जनवरी को आसनसोल W.B में सम्पन्न होगा। जिससे गृहस्थ जीवन की सभी विपदाओं से मुक्त होकर धान, सुख, समृद्धि, सम्पन्नता की ओर अग्रसर हो सकेगें। साथ ही जीवन में लक्ष्मी, आरोग्यता को चिर स्थायित्व रूप से स्थापित करने हेतु हवन, अंकन, रूद्राभिषेक की श्रेष्ठतम क्रियायें शिव स्वरूप परम पूज्य सद्गुरूदेव कैलाश जी के जन्मोत्सव की चैतन्यता में सम्पन्न होगा।
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