जब व्यक्ति अपने अंतिम समय में होता है, तो एक क्षण ऐसा आता है जब वह तंद्रा में चला जाता है और चित्रगुप्त के द्वारा उसके जीवन का सारा लेखा-जोखा उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति तैर जाता है। चित्रगुप्त यानि वे घटनायें भी, जो उसके सिवा किसी और को नहीं पता होती हैं, उसकी गोपनीय से गोपनीय बात भी चित्र रूप में स्पष्ट हो जाती है। और इन विभिन्न कर्मों में से वह अगले जीवन के लिये कर्म चयन करता है। अधिकतर छल, झूठ, कपट, काम, भय ,ईर्ष्या आदि से प्रभावित होता हुआ ही व्यक्ति देह त्यागता है। स्व चिंतन, भगवत् चिंतन का उसे ध्यान नहीं रहता।
कहा गया है, कि अन्तु या मतिः सा गतिः अंत समय में जैसे विचार एवं चिंतन होते हैं, उसी हिसाब से व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है। जब व्यक्ति विभिन्न इच्छाओं के साथ मरता है, तो कुछ देर तो उसे विश्वास ही नहीं होता, कि वह मर गया। उसकी देह उसके समक्ष होती है और वह अचम्भित सा देखता रहता है, क्योंकि उसकी कई अपूर्ण इच्छायें होती हैं, जिनकी पूर्ति लिये उसे भौतिक शरीर की आवश्यकता होती है। इसलिये वह अपनी देह के आस-पास ही मंडराता रहता है और जब देह जला दी जाती है, तो हताश हो जाता है और इच्छाओं की पूर्ति हेतु भटकता रहता है।
अब या ऐसे समय में कोई सशक्त मार्गदर्शक हो जो उस आत्मा का मार्ग दर्शन कर आगे की ओर बढ़ायें और उनके जीवन में श्रेष्ठ गतिशीलता प्रदान कर सके। आप उसके प्रिय होने के नाते अपने आत्मीय के लिये विशेष क्रिया करें कि उसका सही मार्गदर्शन हो सके और वह आगे के सुकर्मों में प्रवेश कर सके।
आत्मायें भौतिक सामग्री नहीं खा सकतीं। वे तो मात्र उनकी गंध ग्रहण करती हैं। ठीक उसी प्रकार वे आपकी बातों को सुन कर अच्छी या बुरी तरंगे ग्रहण करती हैं। अतः आपको चाहिये कि अपने दिवंगत प्रिय के नाम का संकल्प लेकर, उसके लिये ऐसी दिव्य साधना व दीक्षा सम्पन्न करें जिसके मंत्रों की तेजस्वी तरंगे उसे सीधी प्राप्त हो सकें। उसका सही मार्ग दर्शन हो सके, वह इधर-उधर न भटके और आपको जीवन में पूर्ण शांति और अनुकूलता प्रदान करें।
पितरों के लिये पूजन, साधना व दीक्षा सम्पन्न करने के दो मुख्य लाभ है। प्रथम आपके पूर्वज या पितृ के कारण ही आपको यह भौतिक शरीर की प्राप्ति हुई है, यह मानव देह प्राप्त हुई। यह आपके ऊपर उनका ऋण है, पितृ ऋण है और अगर आप साधना के माध्यम से उनके पुनर्जन्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं तो जीवन में सुस्थितियां आती ही हैं। जब तक पितृ का पुर्नजन्म नहीं होगा उसका सही मार्ग दर्शन नही होगा उनकी इच्छायें अतृप्त रहेंगी इस दशा में उसे देह की तलाश रहती है। जिसकी मदद से वह इच्छाओं को भोग सके, ऐसा ना होने पर वह अपने ही वंशज को पीडि़त, दुःखी, अनेक प्रकार से परेशान करते हैं। जिससे हमारे जीवन की प्रगति, उन्नति, उत्साह, धन आगमन, कार्य सफलता बाधित होती है। और हमें अनेक भौतिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिये यह प्रत्येक के लिये आवश्यक है कि वह इन आत्माओं को शांति दिलाने का प्रयत्न करें। जिससे जीवन में पितृरूपी बाधाओं का सामना ना करना पडे़। इस हेतु आप पितृ अमावस्या तक फोटो द्वारा या व्यक्तिगत रूप से दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
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