महान ऋषि भर्तृहरि के अनुसार किसी भी सफल व्यक्ति में निम्न गुण प्राप्त होते हैं-
वास्तव में यह सच ही तो है कि सामान्य व्यक्तित्व, कमजोर वाक् शक्ति, आत्म विश्वास की कमी, आलस्य, कमजोर स्मरण शक्ति एवं पूर्वाभास की कमी ही तो वे कुछ बंधन हैं जो व्यक्ति को अपने पाश में जकड़े रहते हैं और वह सफलता प्राप्त करने के लिए चाहे कितने भी हाथ पैर मारते रहें पर अंत में वह असफल ही रहता है। ये सारे ही उपरोक्त गुण, जो भतृहरि ने कहे हैं, व्यक्ति के जीवन में पग-पग पर सहायक होते हैं। साक्षात्कार आदि में जहां व्यक्तित्व का आकलन होता है, उसका आत्म विश्वास, उसका बात करने का तरीका और दूसरों को प्रभावित करने का ढंग देखा जाता है, वहीं साथ ही साथ इस बात का अंदाजा भी लगाया जाता है कि सामने वाला व्यक्ति किस-किस क्षेत्र में पारंगत है और नवीनतम जानकारियों से वाकिफ है भी या नहीं। यदि व्यक्ति की मेधा शक्ति उन्नत हो, तो यह सब कितना आसान हो सकता है।
व्यापार के क्षेत्र में भी व्यक्ति को बाजार सम्बन्धी सभी नवीनतम जानकारियां होनी चाहिये, दूसरों को आश्वस्त कर अपना कार्य बनाने की कला और वाक् चातुर्य के साथ-साथ उसका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होना आवश्यक है। कई लोग साक्षात्कार या व्यापारिक वार्ताओं के दौरान हकलाने लग जाते हैं, नर्वस हो जाते हैं और हाथ में आई सफलता खो देते हैं।
यदि व्यक्ति मे पूर्वाभास शक्ति हो तो वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में मात नहीं खा सकता। वह पहले ही भांप लेता है कि अमुक साझेदारी उसके लिये उपयोगी रहेगी या नहीं, कहीं सामने वाला धोखा तो नहीं देगा, भविष्य में कौन-कौन सी घटनायें किस-किस प्रकार से घटित हो सकती हैं आदि। यदि व्यक्ति पहले से ही यह जान लें तो वह समय रहते ही उपयुक्त कदम उठा कर अभीष्ट फल प्राप्त कर सकता है।
राजनीति के क्षेत्र में भी व्यक्ति का प्रभावशाली होना अत्यन्त आवश्यक है, साथ ही स्थिति को तुरन्त भांप कर तदनुसार कदम उठाने का गुण उसके अन्दर होना चाहिये। इससे भी बढ़कर उसमें वाक् चातुर्य होना चाहिये, लोगों को प्रभावित करने की अद्भुत क्षमता उसके अन्दर होनी चाहिये और उसमें प्रबल आत्म विश्वास होना चाहिये। यदि इनमें से किसी एक की भी कमी होती है तो व्यक्ति श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ नहीं बन सकता और वह प्रायः असफल ही देखा जाता है।
फिल्म जगत, कला, संगीत आदि क्षेत्रों में भी इन्हीं गुणों का समावेश व्यक्ति को शीर्षस्थ स्थान पर पहुंचाने के लिये सहायक हो पाता है, अन्यथा वह एक सामान्य जीवन जीने के लिये बाध्य हो अपनी किस्मत को ही कोसता रह जाता है। इसके अलावा व्यक्ति में इतनी अधिक जीवट शक्ति होनी चाहिये कि वह अधिक श्रम कर अपनी उन्नति के मार्ग को प्रशस्त कर सके और जीवन में स्थायी सफलता प्राप्त कर सके। धन, वैभव, लक्ष्मी आदि केवल पुरुषार्थ एवं परिश्रम के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है।
भारतीय संस्कृति, कला के श्रेष्ठतम पुरूष माने गये हैं भगवान् श्रीकृष्ण, जो षोड़श कला युक्त पूर्ण पुरूष थे। जिन्होंने हमारी संस्कृति को नये आयाम दिये और स्पष्ट किया कि किस तरह से पूर्ण ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करके भी योगी ही नहीं योगेश्वर तक बना जा सकता है। वे केवल एक देश तक ही नहीं वंदनीय रहे वरन् उनकी स्तुति तो ‘कृष्णंवन्दे जगद्गुरूं’ कहकर की गई। उनके सम्पर्क में जो आया वह उनमें ही खोकर रह गया। उनका आकर्षण उनका माधुर्य को आदि काल तक हम स्मरण कर पुलकित हो जाते हैं।
भगवान् श्रीकृष्ण की मोहिनी तो इतनी प्रबल थी कि स्त्री-पुरूष तो क्या पशु, पक्षी तक उनके आकर्षण में बंधकर रह जाते थे। ‘‘भगवान श्रीकृष्ण की इस शक्ति का रहस्य तो योगेश्वर गुरूत्व रक्षेश्वर साधना में छिपा था जो उनके शिष्य जीवन काल में गुरूदेव सांदीपन ने अपने सम्मुख सम्पन्न करायी थी’’।
भगवान श्रीकृष्ण का जीवन अलौकिक लीलाओं से परिपूर्ण आदर्श जीवन के साथ ही मानवता के सभी चरम और परम सद्गुणों का पूर्ण विकास था। वे गान विद्या और नृत्यकला के निपुण ज्ञाता ही नही थे, वरन् अपने काल के श्रेष्ठ समाज सुधारक भी थे। महान् योगेश्वर तथा आदर्श राजनीतिज्ञ भी थे। उनकी राजनैतिक कुशलता व मानवतावादी पवित्र राजनीतिज्ञता की कहीं कोई उपमा नहीं है। उसमें आदर्श त्याग, न्याय, सत्य, दया, उदारता, यथार्थ लोक-हित तथा विलक्षण जन कल्याण का पूर्ण विकास है। उसमें कहीं भी व्यक्तिगत स्वार्थ, निम्न महत्वाकांक्षा, अभिमान, द्वेष, अधिकार-मद तथा भोग प्रधानता को स्थान नहीं है।
भगवान श्रीकृष्ण के पश्चात् उसी कड़ी में अगले जाज्ज्वल्यमान रत्न हैं- भगवान् बुद्ध। उनकी करूणा, उनकी अहिंसा, उनका प्रेम और विश्व बन्धुत्व का संदेश तो आज भी जीवन के उन मूल्यों को स्पष्ट करता है। जिनके अभाव में मानवता शब्द उच्चरित करना अधूरा है। भगवान बुद्ध के संपर्क में जो आया उनसे अभिभूत हुआ और उनके व्यक्तित्व से भीग कर सैकड़ों भिक्षुक निकले और संसार में छा गये। क्रूर से क्रूर मनुष्य ओर हिंसक से हिंसक पशु उनकी छाया पड़ने मात्र से ही शांत हो जाते थे। उनके इस व्यक्तित्व के पीछे वह विशिष्ट साधना ही थी जो उन्होंने किसी अज्ञात भारतीय योगी से प्राप्त की थी।
वर्तमान में भी ऐसे प्रभावी व्यक्तित्व हमारे आस-पास हैं, जिनमें नरेन्द्र मोदी जी का भी एक विशिष्ट स्थान है। वे एक सामान्य चाय बेचने वाले व्यक्ति थे पर अपनी क्षमता को निखारते हुए उन्होंने अपने व्यक्तित्व को इस ऊंचाई पर उठाया कि आज न केवल वे भारतवर्ष के प्रधानमंत्री हैं अपितु सारा संसार उन्हें सम्मान प्रदान करता है। उनके व्यक्तित्व में, उनकी वाणी में एक आकर्षण है जो उन्हें भीड़ से अलग खड़ा कर देता है। उनकी वाणी को सुनने के लिये लाखों संख्या में लोग उमड़ पड़ते हैं।
महात्मा गांधी देखने में अत्यन्त सामान्य, मात्र 48 किलो के अनाकर्षक व्यक्ति थे परन्तु उनकी अद्भुत जीवट शक्ति तथा बौद्धिक क्षमता के फलस्वरुप आज उन्हें सम्मान से राष्ट्रपिता के नाम से सम्बोधित किया जाता है। देखने में वह तो एक सामान्य से ही व्यक्ति थे पर उनका व्यक्तित्व बहुत विराट था।
ऐसे अनेकों उदाहरण दिये जा सकते हैं। इसलिए यह निश्चित है कि युग पुरुष पैदा नहीं होते अपितु बनते हैं और आप यदि चाहें तो स्वयं को ही इस स्थिति तक ले जा सकते हैं और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। पर अब प्रश्न यह है कि किस प्रकार से ऐसी सफलता जीवन में प्राप्त की जा सकती है?
और इन सभी श्रेष्ठ स्थितियों को आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते हैं—-हो सकता है कि आप में आत्म विश्वास की कमी हो, आपकी वाक् शक्ति या मेधा शक्ति कमजोर हो, आपका व्यक्तित्व आकर्षणहीन हो, आप में जीवट शक्ति की कमी हो तो आप स्थिति को सही तरीके से भांप नहीं सकते और इन बंधनों की वजह से आपको असफ़लता ही प्राप्त होती रहती है। परन्तु इसके लिये आपको हताश होने की आवश्यकता नहीं क्योंकि जन्म से ही कोई व्यक्ति महान नहीं होता, जन्म से ही कोई युग पुरुष नहीं होता। यह तो एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें एक खुरदरा, तेजहीन पदार्थ आग में तप कर स्वर्ण में परिवर्तित होता है।
भर्तृहरि का प्रारम्भिक जीवन तो अत्यन्त ही भौतिकता और विलासिता पूर्ण था परन्तु बाद में नाथ परम्परा में दीक्षित हो कर वे अत्यन्त उच्चकोटि के योगी भी बने। उन्होंने ही आगे कहा कि यदि व्यक्ति में ये गुण नहीं हैं तो हताश न हो क्योंकि सभी गुण मात्र एक ही साधना की तेजस्विता के माध्यम से प्राप्त किये जा सकते हैं और इसी साधना को योगेश्वर गुरूत्व रक्षेश्वर साधना कहा गया है। यह प्रयोग व्यक्तियों की कमियों के बंधनों को काट कर उनमें अद्वितीय चेतना, तेजस्विता एवं नवीन व्यक्तित्व का समावेश कर देता है जिससे वह आसानी से किसी भी क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त कर मान, सम्मान, यश, वैभव, धन, लक्ष्मी आदि का अधिकारी हो जाता है।
यह साधना नाथ परम्परा की एक अद्वितीय साधना पद्धति है, अतः उन्नति की आकांक्षा रखने वाले व्यक्ति को यह साधना सम्पन्न करनी ही चाहिये। इस प्रयोग को रक्षा बंधन के दिन ही सम्पन्न करने का विधान बताया गया है परन्तु यदि किसी कारणवश ऐसा सम्भव न होने पर किसी भी सोमवार से प्रारम्भ किया जा सकता है। यह प्रातः कालीन साधना है और इसमें योगेश्वर कृष्णमय शक्ति युक्त रक्षेश्वर यंत्र व रक्षेश्वर माला की आवश्यकता होती है। साधक ब्रह्म मुहुर्त में उठ कर स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त हो कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख हो कर श्वेत आसन पर बैठें।
अपने सामने बाजोट पर श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर यंत्र व गुरु चित्र को स्थापित कर उनका पंचोपचार पूजन करें। गुरु चित्र पर एक रक्षा सूत्र अर्पित करें। यह रक्षा सूत्र इस बात का प्रतीक है कि हे गुरुदेव! आप मेरी रक्षा का भार अपने ऊपर लेकर मुझे अभय प्रदान करें और जीवन की समस्त बाधाओं, शत्रुओं, रोगों आदि से मेरी रक्षा करें। फिर दूसरा रक्षा सूत्र यंत्र पर अर्पित करें जिससे कि आपके न्यूनता रुपी बंधन समाप्त हो व आप तीव्रता से सफलता की ओर अग्रसर हो सकें।
अब निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप 11 दिनों तक करें।
यह अद्भुत तेजस्विता युक्त बीज मंत्र है और इस मंत्र का जप करने पर इसमें निहित क्लीं बीज सभी दोषों, न्यूनताओं का विध्वंस कर व्यक्ति में तेजस्विता स्थापित करता है, ऐं बीज उसे वाक् चातुर्य, मेधा शक्ति एवं पूर्वाभास शक्ति से परिपूर्ण करता है, ह्रीं बीज उसको आकर्षक एवं मनोहर व्यक्तित्व के साथ अद्भुत जीवट शक्ति देने में सहायक होता है तथा गुं बीज सम्पूर्ण रुप से गुरु कृपा व आर्शीवाद प्रदान करने में सहायक होता है। इतने अद्वितीय मंत्र को प्राप्त कर यदि कोई व्यक्ति साधना न सम्पन्न कर सके तो यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है।
साधना समाप्ति के उपरान्त यंत्र एवं माला को किसी नदी, तालाब या जलाशय में विसर्जित कर दें। ऐसा करने पर यह साधना पूर्ण होती है। इस साधना को सम्पन्न करने के बाद कुछ ही दिनों में व्यक्ति स्वयं में होने वाले परिवर्तनों को अनुभव करने लगता है और वह सबका प्रिय हो कर तीव्रता के साथ अपने इच्छित क्षेत्र में उच्चतम स्थिति प्राप्त करने हेतु अग्रसर होने लगता है।
जीवट शक्ति की कमी होने पर व्यक्ति अथक परिश्रम के बावजूद भी संतुष्टि दायक सफ़लता प्राप्त नहीं कर पाता या उसका जो लक्ष्य होता है वह पूरा नहीं हो पाता और व्यक्ति को जो कुछ भी प्राप्त होता है उसी में गुजारा करना पड़ता है। ऐसे में ना ही वह सुखी होता है ना ही परिवार का कोई सदस्य। योगेश्वर गुरूत्व रक्षेश्वर दीक्षा व साधना सम्पन्न करने से साधक योगेश्वरमय गुरूत्व शक्ति से युक्त होकर अपनी क्षमता को निखारते हुये सफ़लता के उच्चतम सोपान पर पहुंचता ही है साथ में ही उसके भविष्य की योजनायें सुरक्षित होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं।
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