इस वर्ष होली के अवसर पर ग्रह-संयोगों से मेल खाती हुई विशेष साधनायें।
किसी भी त्यौहार को मनाने का सही अर्थ यही है कि सबसे पहले तो घर से दरिद्रता दूर की जाये एवं सुख-सौभाग्य युक्त जीवन बने, इसके बिना न तो पर्व का कोई अर्थ है और न ही आगे की किसी साधना का। नूतन वर्ष को सही रूप में उल्लासमय बनाने के लिए लघु मोती शंख लेकर इसी पर संक्षिप्त साधना करनी है।
25 फरवरी से होलिका दहन की रात्रि तक के समय 8 बजे से 10 बजे के मध्य इसे केशर से पूरी तरह रंग कर पीले चावलों की ढेरी पर स्थापित कर विद्युत माला से निम्न मंत्र की केवल एक माला मंत्र जप नित्य करना है, साधना पूर्ण होने पर सभी साधना सामग्री को होलिका की अग्नि में आहूत कर देनी है। यह अत्यंत ही तीक्ष्ण तथा सम्पूर्ण रूप से दरिद्रता का विनाश करने वाला है।
दरिद्रता के विनाश के बाद दूसरी प्रमुख आवश्यकता है कि न तो साधक के शरीर में कोई बीमारी या क्षीणता रहे, और न ही उसकी पत्नी और बच्चों के साथ किसी प्रकार की कोई शारीरिक कष्ट बाधा हो। होली की रात्रि तांत्रोक्त दृष्टि से चैतन्य होने के कारण ऐसी बाधा निवारक साधनाओं में सफलता शीघ्रता से मिलती है।
तांत्रोक्त नारियल लेकर (परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग-अलग तांत्रोक्त नारियल आवश्यक है) उसे सिन्दूर से पूरी तरह रंग लें और स्वयं को भी तांत्रोक्त नारियल पर लगे सिन्दूर से तिलक कर अपनी बीमारी बोले तथा परिवार के लिए भी प्रयोग करने पर उनकी भी बाधाएं बोलकर, परिवार का मुखिया ‘वैजयंती माला’ से निम्न मंत्र का जप करें, इसमें अलग-अलग सदस्यों के लिए मंत्र जप आवश्यक नहीं है। एक ही माला से मंत्र जाप करने से प्रत्येक को साधना का प्रभाव प्राप्त हो जाता है।
मंत्र जप के पश्चात् माला और सभी तांत्रोक्त नारियल को होलिका-दहन की रात्रि मे ही जाकर अग्नि में समर्पित कर दें और लौट कर हाथ पांव धो लें। यह प्रत्येक जटिल एवं पीड़ाकारक व्याधियों का भी अचूक प्रयोग है।
समाज ऊपरी तौर पर भले ही सभ्य और आधुनिक कहा जाने लगा है लेकिन अंदर ही अंदर जिस प्रकार से तीव्र घात-प्रत्याघात चलते रहते हैं, उनके बाद तो यह आवश्यक है कि होली की रात्रि में ऐसा प्रयोग कर जहां पर एक ओर सुरक्षा-चक्र बना लिया जाए वहीं ऐसा प्रयोग करने से यदि कोई तांत्रिक प्रयोग, व्यापार बंध, बुद्धि-स्तम्भन, गर्भ बंधन जैसे काले प्रयोग करे या करवायें गये हो तो वे भी पलट कर विपक्षी के पास लौट जाते हैं।
तीन तांत्रोक्त फल जो कि भूत वर्तमान भविष्य की तांत्रिक क्रियाओ से निवारण से युक्त होते है और बाधा निवारण गुटिका को लेकर भूमि पर रखें तथा प्रत्येक फल के आगे एक तेल का दीपक जला कर काल मुक्ति माला से निम्न मंत्र की 9 माला मंत्र जप करें।
यह मंत्र जप होली की रात्रि में पूर्ण हो जाना चाहिए। साधक दस बजे के बाद इस साधना में कभी भी बैठ सकता है और दूसरे दिन सुबह सभी सामग्री कहीं सुनसान स्थान पर गहरा गड्ढ़ा खोद कर दबा दे और उस पर पत्थर रख दें। इससे व्यापार बंध, स्तम्भन आदि क्रियाओं से मुक्ति मिल जाती है।
घर में अभिशप्त आत्माओं की उपस्थिति जीवन में ऐसा अभिशाप है जिससे पूरा का पूरा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है और स्थिति यहां तक बिगड़ते देखी गई है कि पीडि़त व्यक्ति घबरा कर आत्महत्या करने के विचार करते रहते है। ऐसे समस्त दोषों और पितृ दोषों की समाप्ति यदि पूर्ण रूप से संभव सकती है। तो केवल होली की ही रात्रि पर, अन्यथा इसका निवारण अत्यंत कठिन ही होता है। होली की रात्रि में किया जाने वाला यह प्रयोग अपने विधान से सरल है। एक ‘भैरव गुटिका’ को स्थापित कर उसका धूप, दीप, सिन्दूर व गुड़ के नैवेद्य से पूजन कर तथा उसी के ठीक बगल में एक ‘मधुरूपेण रूद्राक्ष’ स्थापित कर उसके चारों ओर ‘5 सुपारी’ स्थापित करें। मधुरूपेण रूद्राक्ष का पूजन केवल पुष्पों से कर सभी सुपारी पर सिन्दूर का तिलक करें एवं अभिशाप मुक्ति माला से निम्न मंत्र की 5 माला मंत्र जप करें।
मंत्र-जप करते समय तेल का दीपक लगा लें। यदि मंत्र जप के मध्य आहट व फुसफुसाहट आरम्भ हो तो भयभीत न हो तथा मंत्र-जप करते रहें। मंत्र-जप के उपरांत भैरव गुटिका को स्थापित रहने दें, शेष सामग्री को काले वस्त्र में बांध कर विसर्जित कर दें तथा भैरव गुटिका का पूजन नियमित करते रहें।
जीवन में सभी सुख हों किन्तु शत्रु-बाधा बनी रहे तो उससे अधिक दुखदायी कुछ भी नहीं होता। हर समय आशंका बनी रहती है कि पता नहीं अगले पल क्या हो? प्रत्यक्ष शत्रु से तो एक बार फिर भी निपटा जा सकता है लेकिन जहां कोई छिपकर वार करने की चेष्टा में हो तो वहां समस्या और भी अधिक गंभीर हो जाती है। वहां लड़े भी तो किससे? ऐसी ही समस्याओं और विशेष कर पीठ-पीछे घात लगाकर, कुचक्र रचकर वार करने वालों के लिए समापन के लिये होलिका-दहन की मध्य रात्रि में लाल वस्त्र पहन कर अपने सामने शत्रु बाधा निवारण यंत्र स्थापित कर लें। यह यंत्र ताम्र पात्र पर अंकित अथवा ताबीज रूप में भी हो सकता है। इस पर लाल डोरा बांध, विद्युत माला से निम्न मंत्र की 3 माला जप करें।
मंत्र जप के उपरांत वही बैठे-बैठे पहले से लाकर रखी नीम की 108 पत्तियों से एक छोटे हवन-कुण्ड में अग्नि प्रज्ज्वलित कर अपने प्रमुख शत्रु (या कई शत्रुओं और गुप्त शत्रुओं की दशा में ‘समस्त ज्ञात-अज्ञात’ शत्रुओं) की बाधा-निवारण हेतु संकल्प कर उपरोक्त मंत्र से 108 आहूतियां दे। आहुति के पश्चात् प्रातः हवन-कुण्ड की राख, माला व यंत्र सभी सामग्री गुरु चरणों में अर्पित कर दे। ऐसा करने से तीव्र से तीव्र शत्रु शांत होता है और कई बार तो दूसरे ही दिन वह क्षमायाचना या सुलह-समझौते जैसे स्वर में बात करने लग जाता है।
यह एक ऐसा विलक्षण प्रयोग है जो होली की रात्रि में ही सिद्ध किया जा सकता है। जहां-जहां होली की रात्रि का उल्लेख होता है वहां साधना की दृष्टि से अर्थ ‘होलिका- दहन’ की रात्रि से होता है, क्योंकि अगला दिन तो ‘धुलेंडी’ के नाम से जाना जाता है। तांत्रिक इस विशेष रात्रि को जहां बहुत दिनों से सोचा गया कोई प्रयोग सम्पन्न करके सफलता प्राप्त करते हैं, वहीं एक प्रयोग ऐसा भी करना चाहिए जिससे होली की इस चैतन्य रात्रि का प्रभाव आगे भी मिलता रहे। वे कुछ सिद्धि फलों को लेकर इसी रात्रि में इस प्रकार चैतन्य कर लेते हैं कि भविष्य में वे जिस भी साधना में साथ रखें जायें, सफलता मिलती रहे। इसमें संख्या की कोई सीमा निर्धारित नहीं है फिर भी एक बार कम से कम पांच सिद्धि फलों को चैतन्य करना आवश्यक है, जो भविष्य में पांच साधनाओं में सफलतादायक बन सकते हैं।
साधक होली की रात्रि में ग्यारह बजे के आस-पास सभी सिद्ध फलों को पीला वस्त्र बिछाकर चावलों की ढेरी पर स्थापित कर साधना सिद्धि माला से निम्न और सर्वथा दुर्लभ मंत्र की पांच माला मंत्र-जप करें।
निम्न मंत्र जप के उपरान्त सभी सिद्धि फलों को एक डिब्बी में सुरक्षित बंद कर लें और भविष्य में उनको अलग अलग साधनाओं में प्रयुक्त कर सकते हैं। इस अवसर पर जिस साधना सिद्धि माला से मंत्र जप हो वह पहले किसी साधना में प्रयुक्त न हुई हो इसीलिये नूतन चैतन्य साधना सिद्धि माला लेना आवश्यक रहता है।
होली के अवसर पर एक विशेष लक्ष्मी साधना भी वर्णित है उसे ‘अटूट लक्ष्मी साधना’ की संज्ञा दी गई है। इस साधना को सम्पन्न करने के बाद साधक को जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं देखना पड़ता। यदि दैवयोग से कोई स्त्रोत बंद भी हो जाए तो कोई न कोई दूसरा स्त्रोत अविलम्ब प्राप्त हो ही जाता है। साथ ही लक्ष्मी के समस्त स्वरूपों की प्राप्ति और जीवन में उनको चिरस्थायी बनाए रखने की भी यही साधना है। देश के कुछ उद्योगपति परिवारों की सम्पन्नता और ऐश्वर्य का रहस्य यही साधना है जिसे वे प्रतिवर्ष होली के अवसर पर करते ही है भले ही कोई अन्य साधना न करें।
इस साधना में लक्ष्मी प्राकाम्य नामक एक समुद्री पदार्थ की आवश्यकता पड़ती है, जो देखने में शंख जैसा होता है। तांत्रोक्त लक्ष्मी साधनाओं में इसका प्रभाव आश्चर्यजनक माना गया है। इसे होली की रात्रि में ठीक अर्ध-रात्रि के समय पीले चावलों की ढेरी पर स्थापित कर पूर्ण रूप से लक्ष्मी मान, उसी प्रकार से पूजन कर, लक्ष्मी प्राकाम्य माला से निम्न दुर्लभ मंत्र की एक माला मंत्र जप करना होता है।
इस मंत्र जप के पश्चात् लक्ष्मी प्राकाम्य को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें तथा होलिका की पवित्र अग्नि में उपरोक्त मंत्र से लक्ष्मी प्राकाम्य माला के एक-एक मनका तोड़ कर आहुति दे दें। अगले वर्ष जब यह साधना पुनः करें तो पहले का लक्ष्मी प्राकाम्य पवित्र नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
होली की रात्रि तो सम्मोहन वशीकरण, यक्षिणी साधनाओं, अप्सरा साधनाओं की ही विशेष रात्रि है और कोई भी साधना सम्पन्न क्यों न की जाए, सफलता मिलती ही है। फिर भी यदि इस दिवस विशेष को ध्यान में रखकर कोई साधना सम्पन्न की जाए तो सफलता की संभावनाएं कई गुना बढ़ जाती है। होली एक प्रकार से पूर्व वर्ष की विदाई और नववर्ष के स्वागत का अवसर है और ऐसे में प्रेम-सम्बन्धी, विवाह सम्बन्धी या दाम्पत्य जीवन में मधुरता घोलने की, आगामी वर्ष को रसमय बनाने की यही साधना कही गई है।
यह केवल प्रेमी-प्रेमिका के सम्बन्धों को लेकर नहीं बल्कि विवाहित स्त्री-पुरूषों के लिए भी है, जिससे उनके जीवन में नीरसता और जड़ता समाप्त हो सके। इस साधना के लिए आवश्यक है कि साधक पहले से एक मधुरता वशीकरण यंत्र प्राप्त कर ले जो सम्मोहन मंत्रें से सिद्ध हो तथा मधुरेण माला से जिसको सम्मोहित करना है उसके नाम का संकल्प कर 1 माला मंत्र जप करें।
यदि विवाहित दम्पत्ति में पति-पत्नी दोनों ही एक दूसरे के लिए यह प्रयोग सम्पन्न कर लें तो उनके जीवन में विशेष मधुरता आ जाती है। इसके लिए उन्हें अलग-अलग दो मधुरता वशीकरण यंत्र प्राप्त करने होंगे, यद्यपि माला का संयुक्त रूप से प्रयोग कर ले।
दूसरे दिन मधुरता वशीकरण यंत्र और माला को किसी आम या अशोक की जड़ में दबा दें। यह सम्मोहन-वशीकरण से भी अधिक मधुरता और प्रेम रस घोलने का सिद्ध सफल प्रयोग है। होलाकाष्टक में तांत्रोक्त साधनाओं को आत्मसात कर अपने जीवन में सुस्थितियों को निर्मित करने हेतु आप अपने किन्ही पांच मित्रों या रिश्तेदारों को पत्रिका सदस्यता बनाने पर आपको दो साधना सामग्री पैकेट और अष्ट सिद्धि नव निधि दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी। जिसके माध्यम से आने वाला नूतन वर्ष आपके लिये अनुकूल और सफ़लता प्रदायक बन सकेगा।
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