नव वर्ष का अभ्युदय करे सूर्य और चन्द्र ग्रहण के साथ जीवन में कुछ अवसर बार-बार नहीं आते हैं, योग्य व्यक्ति उन अवसरों का भलीभांति उपयोग कर अपने जीवन में सफलता के द्वार खोल देते हैं, बीता हुआ समय कभी वापिस नहीं आता, जब अवसर बीत जाता है, तो मूर्ख व्यक्ति पछताते रहते हैं। ग्रहण काल का अवसर जीवन का श्रेष्ठ अवसर होता है, जिस तरह से अक्षय तृतीया और विजय दशमी का दिवस साधनाओं के लिये अबूझ होते है उससे भी अधिक श्रेष्ठतम काल ग्रहण का काल माना गया है।
हमारे सौरमण्डल में पृथ्वी के अस्तित्व को कायम रखने के लिए सूर्य का सर्वोपरि स्थान है। यदि सूर्य न हो, तो इस पृथ्वी पर प्रकृति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से ही सम्पूर्ण धरा आलोकित है, जिसके प्रकाश में व्यक्ति के जीवन से अंधकार को समाप्त कर उसे नवीन चेतना, जागृति से भर देने की क्षमता है। सूर्य के तेज के फलस्वरूप ही मनुष्य जीवन में चलायमान रहता है।
विवाह, यात्रा, मांगलिक कार्यों, व्यापारिक और शारीरिक तथा मानसिक रोग, खेद, उदासीनता, अपमान, मंदाग्नि आदि रोगों का अध्ययन कुण्डली में सूर्य की स्थिति के अनुसार किया जाता है। इस कारण सूर्य साधना को सम्पन्न करने से साधक में आकर्षण, सम्मोहन क्षमता में वृद्धि होती है। ग्रहण काल में साधना करने से विवाह, यात्रा, तथा मांगलिक कार्यों और व्यापार वृद्धि में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। श्रेष्ठ विजय काल का यह समय जो कि ग्रहण काल के रूप में आता है। ऐसे समय में छोटी-सी साधना भी सवा लाख मंत्र-जप वाले अनुष्ठान के बराबर होती है, क्योंकि जो फल सवा लाख मंत्र-जप करने से प्राप्त होता है, वही ग्रहण काल में 5 माला या 11 माला मंत्र-जप करने पर ही प्राप्त हो जाता है।
ग्रहण काल अज्ञानियों के लिए अशुभ और ज्ञानियों के लिए शुभ होता है, इसीलिए श्रेष्ठ साधक या योगी इस क्षण का लाभ उठाने के लिए बहुत पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं, जिसे वे निश्चित समय पर साधना कर जीवन में सफलता एवं सम्पन्नता प्राप्त करे श्रेष्ठ मानव बन सकें।
जिसने आनन्द ही प्राप्त नहीं किया, वह आनन्द का क्या वर्णन करेगा, जिसे सुन्दरता का संसर्ग ही प्राप्त नहीं हुआ, वह सुन्दरता का बखान नहीं कर सकता, जिसने गृहस्थ सुख नहीं भोगा वह गृहस्थ जीवन की सभी स्थितियां योग्य, पत्नी, सुन्दर आवास, वाहन सुख, संतान सुख, कार्य सुख नहीं भोगा वह गृहस्थ जीवन को नारकीय जीवन कैसे लिख सकता है, जिस प्रकार शक्कर, मधु को चखे बिना उसके स्वाद का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार जीवन के सभी सुखों को भोगे बिना उनकी परिपूर्णता का ज्ञान भी नहीं बताया जा सकता, आनन्द को पूर्ण रूप से भोगने वाला व्यक्ति ही पूर्ण व्यक्ति है और वही योगी है।
अतः जीवन को यह प्रथम उद्देश्य एवं कर्तव्य है, कि अपना लक्ष्य निर्धारित करे और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चाहे कितनी ही साधनाएं क्यों न करनी पड़े, कितनी ही बार प्रयत्न क्यों न करना पड़े अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त करना है, और एक लक्ष्य प्राप्त करने के बाद नूतन नया लक्ष्य बनाये ऐसा दृढ़ निश्चय ही उन्नति का मूल मार्ग है। जीवन में दुख संकट, परेशानियां, बाधाएं, रोग, पीड़ा तो आयेगी ही, इन स्थितियों के बीच साधना को सम्पन्न करने से ही सिद्धि एवं सफलता के द्वार खोल सकती है, और जब एक सफलता का द्वार खुलता जाता है, तो इतना अधिक उत्साह आता है कि दूसरा द्वार खोल सकें, सिद्ध साधक को जीवन में सुख, धन सौन्दर्य, यश, सम्मान पूर्ण रूप से प्राप्त हो जाता ही है।
सूर्य ग्रहण के समय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तेजस्वी ऊर्जा का संचार होता है यही ऊर्जा तो साधना में सिद्धि की सीढ़ी होती है। इस वर्ष सूर्य ग्रहण 20 मार्च सांय 5:13 से 7: 35 तक।
सियार सिंगी प्रकृति का मानव को रहस्मय वरदान है। यह जंगल में स्वतः प्राप्त होती है और यह लक्ष्मी का प्रतीक है। बिरले भाग्यशाली लोगों के घर में ही इस प्रकार की आश्चर्यजनक चैतन्य सिंयार सिंगी पायी जाती है।
ग्रहण काल में साधक को चाहिए कि पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठ जाय तथा अपने सामने सिंयार सिंगी को रख दें। निम्न मंत्र की ‘लक्ष्मी तेजस्विता शक्ति माला’ से 5 माला जप करें तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और उसे जीवन में आर्थिक दृष्टि से अभाव नहीं रहता।
जब मन्त्र जप समाप्त हो जाय तब साधक को चाहिए कि वह उस सिंयार सिंगी को अपने सन्दूक जहां पर गहने आदि रखे जाते हैं वहां रख दें। तो व्यापार में उन्नति होती रहती है। यदि स्वयं बेरोजगार होता है तो वह नौकरी प्राप्त करने समर्थ हो पाता है तथा यश, मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव सम्पत्ति आदि से उत्तरोत्तर उन्नति करता रहता है।
इस ग्रहण के अवसर पर शत्रु मर्दन साधना सम्पन्न करनी चाहिये जिससे शत्रु पूर्ण वशीकरण युक्त दास स्वरूप बनता है। मुकदमों में सफलता प्राप्त होती है, तथा सर्वत्र विजय होती है, साधना में प्रयोग होने वाली सामग्री तांत्रेक्त शत्रु मर्दन यंत्र, शत्रुसंहार सिद्धि माला, सिद्धि दायक सूर्य गुटिका
सूर्य ग्रहण में पीले आसन पर पीली धोती पहिन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाए और तांत्रोक्त शत्रु मर्दन सिद्ध यंत्र को पहिन लें सूर्य गुटिका का सामान्य पूजा करें और शत्रुसंहार सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें।
जाप पूरा होने पर सामग्री को गोपनीय स्थान पर रख दें तो उसी समय से शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त होनी प्रारम्भ हो जाती है और मुकदमों में स्थिति अनुकूल बन जाती है।
जब ग्रहण होता है, सम्पूर्ण वायुमण्डल में एक ऐसा कम्पन एवं शक्ति समा जाती है, यह शक्ति ही साधना में सफलता प्राप्ति प्रदायक है सामान्य समय में की जाने वाली एक माला मंत्र जाप ग्रहण के समय की जाने वाली सौ माला मंत्र जप के बराबर है।
चन्द्र ग्रहण वैशाख पूर्णिमा, 04 अप्रैल 2015 के दिन होगा। इस दिन चन्द्रमा अपने पूर्ण प्रभाव के साथ क्रियाशील रहेगा, यह अत्यन्त प्रभावशाली ‘खग्रास चन्द्रग्रहण’ है। अतः इस विद्युत समान प्रभाव वाले चन्द्रग्रहण के विशेष अवसर पर प्रत्येक साधक को पूर्ण श्रद्धा, विश्वास के साथ इस समय का सदुपयोग कर साधना सम्पन्न करनी चाहिए।
अप्सरा साधना के संबंध में विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियां व्याप्त है, जो कि पूर्ण रूप से गलत है अप्सरा साधना तो अपने आप में पूर्ण उच्च स्तर की साधना है, जो कि जीवन में प्रेम, सौन्दर्य, रस और आनन्द की कारक है। यह लीलावती अप्सरा सिद्ध होने के बाद साधक के वश में पूरे जीवन भर बनी रहती है, वैदिक काल से ही उच्चकोटि के ऋषियों, राजाओं, योगियों ने इस साधना को सिद्ध किया है। इस साधना में सिद्धि प्राप्त हो जाने के पश्चात् साधक के चेहरे पर एक विशेष प्रकार का तेज, उत्साह एवं यौवन आ जाता है, रोग एवं बाधाएं उससे दूर रहती हैं।
साधना सिद्ध होने पर लीलावती अप्सरा प्रेमिका अथवा प्रिया रूप में जीवन भर साधक के सामने उपस्थित रहती है और साधक के सभी कार्यों पूर्ण करने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में सहायक रहती है। अतः साधना प्रारम्भ करने से पूर्व ही यह चिन्तन अवश्य होना चाहिए कि मैं लीलावती अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिसे वह पूरे जीवन मुझे हर प्रकार का सहयोग एवं सुख प्रदान करे।
लीलावती अप्सरा साधना पूर्ण रूप से सिद्धि प्राप्त करने का तात्पर्य जीवन में कई प्रकार के भौतिक सुखों में वृद्धि, यौवन, सुख सौन्दर्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है, साधक 3:30 सांय से रात्रि 9:52 के मध्य स्नान कर सुन्दर वस्त्र धारण करें, और पीले आसन पर उत्तर की ओर मुख कर बैठें, पूजा स्थान में घी के दीपक तथा अच्छी खुशबू वाली अगरबत्ती अवश्य जलायें, सामने ‘लीलावती अप्सरा यंत्र’ लाल चावलों पर स्थापित करें, साथ ही सामने सुन्दर ‘अप्सरा चित्र’ भी हो।
साधक लीलावती अप्सरा का ध्यान करें कि चन्द्रमुखी पीले वस्त्र को धारण करने वाली अमृत भाषिणी, सुगन्धित द्रव्यों के विलेप से सुगन्धिात शरीर वाली कान्तिमय, लीलावती अप्सरा मुझे सिद्धि प्रदान कर पूरे जीवन भर प्रेमिका रूप में ग्रहण करे मेरे जीवन को धन्य बनाये। ध्यान कर ‘लीलावती माला’ यंत्र पर अर्पित करें, यंत्र तथा माला के चारों ओर पुष्पवर्षा करते हुए ध्यान करते रहे। उसके पश्चात् लीलावती मंत्र पूरे चन्द्र ग्रहण के समय जितनी माला शुद्ध रूप से जप सकते हैं उतनी जप अवश्य करें।
चन्द्र ग्रहण की समाप्ति के साथ-साथ और मंत्र जप पूरा होते-होते साधक को अप्सरा प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देगी, तब साधक को चाहिये कि वह अप्सरा से अपने जीवन में पूर्ण सहयोग देने का वचन अवश्य ले ले साधक को अप्सरा वचन अवश्य देती है। माला को गले में धारण करे और 11 बार मंत्र का उच्चारण मात्र से अप्सरा उपस्थित हो जाती है।
आयुर्वेद के माध्यम से ही नहीं बल्कि तंत्र द्वारा भी आश्चर्यजनक सौन्दर्य प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त सौन्दर्य गुटिका प्राप्त कर ले और ग्रहण काल में उस गुटिका के सामने सौन्दर्य माला से मंत्र जप प्रारम्भ करें, पूर्ण ग्रहण काल तक मंत्र जप करना अनिवार्य होता है।
यह प्रयोग आजमाया हुआ है और इस प्रयोग को आप अपने जीवन की समय समय पर अनेक कामनाओं की पूर्ति हेतु विशेष ग्रहण काल में दीक्षा प्राप्त करने से सर्व कामना सिद्धि की प्राप्ति होती है और सांसारिक जीवन धन-यश, सुख-समृद्धि से युक्त होता है। जिसके माध्यम से आपके जीवन में आ रही बाधाओं से आपको निजात मिल सकेगी। इस हेतु यदि आप ग्रहण काल में किसी कारण वश साधना सम्पन्न नहीं कर पायें तो अपना फ़ोटो भेज कर इच्छानुसार दीक्षा प्राप्त कर सकते है।
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