इस कडी में हम यह अद्भुत अचरजभरी साधना अक्षय पात्र साधना विधि प्रस्तुत कर रहे हैं-
पाण्डवों के ज्येष्ठ भ्राता महाराज युधिष्ठिर पूर्णतः सद्विचार रखने वाले और सदाचारी थे, धर्म के क्षेत्र में उन्होंने धर्म का त्याग नहीं किया, फि़र भी प्रारब्धवश राजा होने के नाते जुए में अपना राज्य, धन, ऐश्वर्य सब कुछ गवां बैठे, यहां तक कि अपनी पत्नी भी दांव पर लगा दी और उसे भी हार गये। फ़लस्वरूप उन्हें बारह वर्षों का बनवास भोगना पड़ा। इन बारह वर्षों में उन्होंने कठिन से कठिन दुःख झेले, उनके साथ उनके चार भाई अर्जुन, भीम, नकुल,सहदेव और पत्नी द्रोपदी भी थी जो कि पूर्ण सती थी।
युधिष्ठिर का यह स्वभाव था कि बिना ब्राह्मणों को भोजन कराये वे स्वयं भोजन नहीं करते थे। बनवास के समय तो उनके खुद के भोजन के लिए भी परेशानी उत्पन्न हो रही थी, फि़र अन्य ब्राह्मणों को भोजन कहां से कराते? उनके साथ ब्राह्मणों और सन्यासियों का पूरा दल रहता था। अतः एक दिन उन्होंने हाथ जोड़कर ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि इस समय मैं बनवास भुगत रहा हूं, इसलिए अब मेरे लिए संभव नहीं हो रहा है कि मैं आप सब को उचित भोजन कराऊं, अतः आप सब मेरा साथ छोड़ कर अपने अपने स्थान को लौट जाएं।
ब्राह्मणों ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि जब सुख में आपके साथ रहे तो दुःख में भी हम आपके साथ रहेंगे। मगर आप चिन्ता न करें, हम प्रयत्न करके कोई ऐसी साधना विधि ढूंढ़ निकालेंगे जिससे कि आपको भोजन का कष्ट जीवन में कभी भी व्याप्त नहीं होगा। तब उनमें से विद्वान महायोगी स्वामी धौम्य ने अक्षय पात्र साधना का मूल रहस्य समझाते हुए युधिष्ठिर से कहा कि आप इस साधना को सम्पन्न करें। इस साधना के द्वारा जीवन में कभी भी भोजन, वस्त्र और आवास की कमी नहीं रहती और उन्होंने इससे सम्बन्धित पूर्ण विधि समझा दी।
यह साधना अत्यन्त ही रहस्यपूर्ण है, क्योंकि जब महर्षि धौम्य के कहने के अनुसार युधिष्ठिर ने सूर्य से सम्बन्धित अक्षय पात्र साधना की, तो धौम्य ने विशेष मुहूर्त में बनाकर एक अक्षय पात्र युधिष्ठिर को दिया जो कि तांबे की बटलोई के आकार का था। इसकी विशेषता यह थी कि इस पात्र का निर्माण उस समय किया गया जब सूर्य स्वयं अपने नक्षत्र पर आरूढ़ थे। ऐसे विशेष मुहूर्त में उस अक्षय पात्र का निर्माण कर उसके सूर्य साधना में निर्दिष्ट अठारह संस्कार सम्पन्न किये जो कि अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये संस्कार ही इस अक्षय पात्र के आधार हैं।
इस अक्षय पात्र पर युधिष्ठिर ने महर्षि धौम्य के निर्देशानुसार साधना सम्पन्न की। इस साधना के द्वारा भगवान सूर्य युधिष्ठिर के सामने प्रकट हुए और उनके मन के भावों को समझ कर बोले –
तेत्तेऽभिलजितं किचितत्वं सर्वमवाप्स्यसि ।
अहमन्नं प्रदास्यामि सप्त पव च ते समाः ।।
(महा- वन- 3/71)
हे धर्मराज ! तुम्हारा जो भी अभीष्ट है, वह तुमको अवश्य ही प्राप्त होगा। तुमने जिस अक्षय पात्र को सामने रख कर यह साधना सम्पन्न की है, इससे मैं बारह वर्षों तक निरन्तर अन्न देता रहूंगा। इसके माध्यम से आप जिस पदार्थ की भी याचना करेंगे, वह मैं पूर्ति करता रहूंगा। फि़र वह पदार्थ चाहे भोजन, खाद्य पदार्थ, वस्त्र, धन, द्रव्य, स्वर्ण आदि कुछ भी हो।
यह अक्षय पात्र युधिष्ठिर के पास वर्षों तक रहा। इसकी विशेषता यह थी कि इच्छा करते ही इसमें भोज्य पदार्थ प्राप्त हो जाता था और वह अक्षय रहता था। इसके माध्यम से युधिष्ठिर सैकड़ों ब्राह्मणों को भोजन कराने में समर्थ होते थे। जब तक युधिष्ठिर स्वयं भोजन नहीं कर लेते तब तक उसमें प्राप्त भोजन पदार्थ समाप्त नहीं होता था।
यही नहीं अपितु युधिष्ठिर ने इस अक्षय पात्र के माध्यम से धन, द्रव्य और मन की जो भी इच्छा करते थे वे सब प्राप्त होती युधिष्ठिर ने वापिस संगठित होकर धन, द्रव्य से सम्पन्न हो युद्ध में कोरवों को हरा कर पूर्ण विजय प्राप्त की।
महाभारत में इसी प्रसंग में यह भी लिखा है कि यदि कोई व्यक्ति या साधक संयमित रह कर धौम्य द्वारा बताई हुई इस साधना को सम्पन्न करेगा तो उसे अक्षय पात्र साधना के द्वारा श्रेष्ठ पदार्थ प्राप्त होंगे और जीवन में किसी भी प्रकार की कोई न्यूनता नहीं रहेगी।
आधुनिक सिद्धाश्रम के योगियों ने इस बात को स्पष्ट किया है कि इस कलियुग में भी अक्षय पात्र साधना अपने आप में महत्वपूर्ण है और तुरन्त चमत्कारिक ढंग से प्रभाव देने वाला है। यदि कोई साधक मनोयोग पूर्वक इसे सम्पन्न करे तो इस अक्षय पात्र के माध्यम से साधक जिस वस्तु, पदार्थ, स्वर्ण, वस्त्र या रत्न की कामना करता है, वह तुरंत प्राप्त होता है और जीवन भर वह अक्षय पात्र उसके लिए उपयोगी बना रहता है।
साधना के लिए तीन चीजों की आवश्यकता है – मोती शंख, जिसे अक्षय पात्र कहते हैं, अक्ष्य लक्ष्मी यंत्र और विद्युत माला। ‘‘श्रद्धा युक्त भाव’’ से यह साधना आपको करनी है। इस साधना को किसी भी बुधवार के दिन प्रारम्भ किया जा सकता है। यह 11 दिन की साधना है, जिसे मध्य रात्रि या मध्याह्न मे ही सम्पन्न करना चाहिए।
श्री गणेश पूजन
समस्त विघ्नों के नाश एवं पूर्ण सफ़लता हेतू भगवान गणपति का पूजन करें ’
ऊँ गं गणपतये नमः। गणपतये आवाहयामि नमः। स्थापयामि पूजयामि
नमः। स्नानं समर्पयामि नमः। गन्धं समर्पयामि नमः। पुष्पं समर्पयामि नमः।
धूपं दीपं च दर्शयामि नमः। नैवेद्यं निवेदयामि नमः।
दोनों हाथ जोड़ें तथा सम्पूर्ण मंगल के लिए प्रार्थना करें –
गजाननं भूत गणाधिसेवितं कपत्थि जम्बू फ़लं चारू भक्षणम् ।
उमा सुतं शोक विनाश कारकं, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ।।
श्री गुरु पूजन
फि़र श्रद्धायुक्त हो, हाथ जोड़कर गुरुपूजन करें –
अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्,
तत्पदंदशिर्तं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ।
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया,
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु: साक्षात् परबह्म्र तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।
ऊँ श्री गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि नमः
संकल्प
फि़र दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें, कि मैं (अमुक नाम, अमुक गौत्र) इस साधना को इस उद्देश्य (अपना उद्देश्य बोलें) से कर रहा हूं । मेरी मनोकामना पूर्ण हो और जल जमीन पर छोड़ दें।
फि़र ‘मोती शंख’, ‘अक्षय यंत्र’ एवं ‘विद्युत माला’ का पूजन कुंकुम, अक्षत तथा दूर्वा (दूब) से करें। शंख को जल से स्नान कराएं, फि़र कुंकुम से उस पर 21 बिंदियां लगाकर यंत्र पर स्थापित करें। फि़र विद्युत माला से निम्न मंत्र का 21 माला मंत्र जाप करें
विद्युत माला से इस मंत्र का जप करना चाहिए और कम से कम 21 माला जप करें, फि़र दोबारा से गुरु पूजन करें, 1 माला गुरु मंत्र जप करें, ताकि जो आपने मंत्र जप किया है उसकी पूर्ण सिद्धि आपको मिल जाए, चाहे आपसे कोई त्रुटि हो गई हो, मगर फि़र भी वह पूर्णता के साथ आपके जीवन में उतर जाए—-
इस साधना के लिए आवश्यक है कि अक्षय पात्र रूपी मोती शंख को एक ताम्र पात्र में रखें अर्थात् तांबे के कटोरे में या प्याली में रखें। 11 दिन तक 1 माला मंत्र जप करना है और एक मंत्र बोल कर एक चावल का दाना अक्षय पात्र पर चढ़ा दें। यह आवश्यक नहीं है कि अक्षत उस अक्षय पात्र मोती शंख के भीतर ही जाएं, अक्षत पात्र में मोती शंख से स्पर्शित होना आवश्यक है।
पहले दिन मंत्र जप के पश्चात् इस ताम्र पात्र को किसी कपड़े से ढ़क दें। फि़र दूसरे दिन पुनः यही क्रिया एक माला मंत्र जप के साथ करें। इस प्रकार 11 दिनों तक मंत्र जप के पश्चात् एक नये लाल वस्त्र में मोती शंख और चावल के दाने डाल दें। यह कपड़ा रुमाल जितना ही बड़ा होना चाहिये तथा बांधा कर गांठ लगा दें। फि़र इस अक्षत युक्त मोती शंख को ऐसे स्थान पर रखें जहां आप अपने गहने रखते है, इसे आप अपनी दुकान की तिजोरी में रख सकते है या किसी ऐसे विशेष स्थान पर जो आपके लिए विशेष है । पूजा स्थान में भी रख सकते है। जब भी कोई विशेष मुहूर्त आये तो इस साधना को पुनः सम्पन्न कर सकते है।
लेकिन ध्यान रहे कि नित्य प्रति इस बंधे हुए वस्त्र की गांठ खोलना उचित नहीं है। इस साधना के सैकड़ौं अनुभव मेरे मानस में है। मैंने अपने जीवन में पांच गृहस्थ शिष्य और चार सन्यासी शिष्यों को यह साधना सम्पन्न करवाई है और सभी के सभी साधक इस साधना में सफ़लता पा सकते है। आज उनके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव दुःख, दैन्य या दरिद्रता नहीं है। अक्षय पात्र को सामने रख कर केवल एक बार इस मंत्र स्तोत्र का उच्चारण कर वे जिस पदार्थ की याचना करते हैं या इच्छा प्रकट करते हैं, उनकी वह इच्छा उसी दिन पूरी हो जाती है।
मैंने इस साधना के द्वारा यह भी देखा है कि यह अक्षय पात्र केवल अन्न, वस्त्र, स्वर्ण या द्रव्य ही प्रदान नहीं करता, अपितु इसके अलावा जीवन की यदि कोई समस्या, बाधा या अड़चन आ जाती है तो उस समस्या का निराकरण भी यह करता है। कठिन से कठिन बीमारी को दूर करने में यह साधना अपने आप में अद्वितीय है।
एक बार मेरा पुत्र बीमार हो कर अस्पताल में मरणासन्न हो गया और डाक्टरों ने हाथ झटक दिये थे। मुझे इस मंत्र स्तोत्र पर पूरा भरोसा था। ऐसी स्थिति में मैंने उसके सिरहाने बैठ कर इस अक्षयपात्र स्तोत्र का मात्र पांच बार पाठ किया तो पुत्र चैतन्य हो गया और चौबीस घंटे बाद तो वह पूर्ण स्वस्थ हो कर घर लौट आया।
इसके माध्यम से मैंने अपनी मां का आथोरायड रोग पूर्ण रूप से ठीक किया है। मैं नित्य एक गिलास जल भर कर इस मंत्र स्तोत्र का पांच बार पाठ कर वह जल मां को पिला देता था एक महीने के भीतर-भीतर वह पूर्णतः स्वस्थ हो गई और आश्चर्य यह है कि असंभव सी लगने वाली बात, उसका ‘आथोरायड रोग’ हमेशा के लिए समाप्त हो गया। डाक्टर भी इस घटना से चर्मत्कृत हो गये थे।
1- यदि कोई व्यापार पर तांत्रिक प्रयोग कर दे या आप पर तांत्रिक प्रयोग हो गया हो, या आपको लगता हो, कि मैं बहुत कमजोर हो गया हूं, ऐसी स्थिति में इस अक्षय पात्र में जल भर कर 45 मिनट तक उपरोक्त मंत्र जप कर वह जल शरीर पर छिड़क दें, तो निश्चय की तांत्रिक प्रभाव जड़ से ही समाप्त हो जाएगा।
2- अगर कोई आपको तंग कर रहा हो, कोई शत्रु परेशान कर रहा हो, टेन्शन पैदा कर रहा हो, चाहे गर्वमेन्ट अधिकारी हो, चाहे पार्टनर हो, चाहे नौकर हो, कोई भी हो, तो शत्रुता के नाश के लिए यह भी प्रयोग किया जाता है। अक्षय पात्र को स्थापित कर संकल्प लें, कि मेरा यह कार्य होना चाहिए और यह व्यक्ति मुझे दुःख दे रहा है और उसकी दुश्मनी मुझसे समाप्त हो जाए। फि़र अक्षयपात्र में एक-एक अक्षत मंत्र जप करते हुए डालते जाएं। यह 51 बार तक करें। फि़र उन चावलों को उबाल कर बाहर दक्षिण दिशा की ओर फ़ेंक दें, इस प्रक्रिया से आपकी कठिनाई समाप्त हो जाएगी।
3- अगर कभी कोई रोग हो तो अक्षय पात्र को स्थापित कर उसमें पानी भर उपरोक्त मंत्र का जप कर 21 बार अक्षय पात्र में भरें जल को पूरे शरीर पर लगाएं। ऐसा नित्य करने से भयंकर से भयंकर रोग भी खत्म हो जाता है। इसके अलावा भी कई प्रयोग है क्योंकि अक्षय पात्र का मतलब है कि जीवन में जो कुछ भी क्षय हो, वह अक्षय हो जाए, पर ये मेन प्वॉइण्ट है जो इस में दिए गए है।
उस व्यक्ति के जीवन आर्थिक उन्नति के साथ-साथ यश, मान, अपूर्व स्वास्थ्य प्राप्त होने लगता है। उसके अन्दर आध्यात्मिकता की सुगन्ध व्याप्त होती रहती है और वह मनुष्य जीवन के सभी पुरूषार्थों -धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। वास्तव में ही अक्षय पात्र साधना जीवन में बेजोड़ और गोपनीय साधना है। यदि साधक नित्य एक बार अक्षय पात्र के सामने इस स्तोत्र का एक बार पाठ कर ले तो उसके जीवन में किसी प्रकार की कोई न्यूनता, नहीं रहती। वास्तव में ही यह एक गोपनीय, महत्वपूर्ण और अद्भुत साधना है।
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